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________________ ४३२ श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक-ग्रंथ जिन, जैनागम मुनियों की प्रार्थना पर भद्रबाहुने कहा कि संघ मेरे पास कुछ साधुओं को भेज दें तो मैं उन्हें पूर्वी की वाचना दे दूंगा। तित्थोगालीपइन्नय में लिखा है-" श्रमण संघने अपने दो प्रतिनिधि भद्रबाहु के पास भेज कर कहलाया कि ' हे पूज्य क्षमाश्रमण ! आप वर्तमान में जिन तुल्य हैं, इस लिये पाटलिपुत्र में एकत्र हुआ ' महावीर का संघ ' प्रार्थना करता है कि आप वर्तमान श्रमण गण को श्रुत की वाचना दें।" - उत्तर में भद्रबाहुने कहा-" श्रमणो ! मैं इस समय तुम को वाचना देने में असमर्थ हूं और आत्मिक कार्य में लगे हुए मुझे वाचना का प्रयोजन भी क्या है ! " भद्रबाहु के उत्तर से नाराज होकर स्थविरों ने कहा-" क्षमाश्रमण ! निष्प्रयोजन संघ की प्रार्थना का अनादर करने से तुम्हें क्या दंड मिलेगा ! इसका विचार करो।' भद्रबाहुने कहा-" मैं जानता हूं, संघ इस प्रकार वचन बोलनेवाले का बहिष्कार कर सकता है।" स्थविर बोले- "तुम यह जानते हुए भी संघ की प्रार्थना का अनादर करते हो। अब हम तुम को संघ में शामिल कैसे रख सकते हैं ? श्रमण संघ आज से तुम्हारे साथ बारहों प्रकार का व्यवहार बन्द करता है ।" भद्रबाहु अपयश से डरते थे। इससे जल्दी संभल कर बोले-“ मैं एक शर्त पर वाचना दे सकता हूं।" - इसके पश्चात् उनके पास ५०० साधु भेजे गये और वहां वे दृष्टिवाद अंग का अध्ययन करने लगे। किन्तु एक-एक करके सभी साधु वहां से चले आये, केवल स्थूलभद्र ही रह गये। और उन्होंने दस पूर्वो का अध्ययन किया । इतने समय में भद्रबाहु का ध्यान पूरा हुआ और वे मगध में लौट आये और वहीं उनका स्वर्गवास हुआ । _ऊपर के विवरण से प्रकट होता है कि दुर्भिक्ष के पश्चात् पाटलीपुत्र में जो प्रथम बाचना हुई, तत्कालीन युगप्रधान भद्रबाहु के अभाव में हुई तथा उसके पश्चात् संघ का उनके साथ अच्छा खासा विवाद भी हो गया और संघने उन्हें बहिष्कृत भी कर दिया। किन्तु अपयश के भय से भद्रबाहु ढीले पड़ गये और उन्हें संघ की बात माननी पड़ी। इस तरह की घटना अपने समय के अन्य किसी युगप्रधान महापुरुष के साथ घटी हो, ऐसा मेरे देखने में नहीं आया। परिशिष्ट पर्व के अनुसार स्वर्गवास से पूर्व भद्रबाहु अपना युगप्रधान पद स्थूलभद्र को दे गये थे। अतः भद्रबाहु के पश्चात् स्थूलभद्र ही युगप्रधान हुए। किन्तु पट्टावलियों में
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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