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________________ ४१७ और जैनाचार्य तीर्थङ्कर और उसकी विशेषतायें । सारिणी पुण्य प्रकृतियां मिल कर तीर्थंकर के जीवन-चरित्र को अधिकाधिक रूप में आकर्षक और प्रभावक बना डालती हैं। जिससे सारा संसार प्रत्यक्ष में प्रभावित होता है और परोक्ष में कभी-कभी विश्वास प्रकट करके भी विस्मय तथा अज्ञान के वशीभूत हो आश्चर्य प्रकट करने लगता है । इतना ही नहीं कभी २ अविश्वास प्रकट करता हुआ असम्भव भी कह देता है। तीर्थकर-प्रकृति भावी तीर्थंकर के गर्भ में आने के पूर्व ही अपना अमित अतीव प्रशस्त प्रभाव प्रकट करना प्रारम्भ करती है। परिणामस्वरूप तीर्थंकर के गर्भकाल से अवतरण के काल पर्यन्त रत्नों की वर्षा होने लगती है और जन्म के समय तो नरक के नारकी तक एक क्षण को वैर और विरोध भूल कर महान् यातनापूर्ण जीवन से उन्मुक्त सरीखे हो जाते हैं। पृथ्वी के पुरुष और पशु तथा पक्षी ही नहीं बरिक स्वों के देवता भी तीर्थकर के जन्म से मुदित होते हैं। तीर्थङ्कर का व्यक्तित्व पुण्य के प्रताप से ही सब सहज सुलभ होता है। जब तीर्थंकर का पुण्य संसार में सर्वोपरि होता है तो उसका व्यक्तित्व कितना महान् और उच्च कोटि का होगा ! यह कहना तो दूर रहा, संकुचित तथा सीमितसी मानवीय प्रतिभा सहर्ष सहस्र बार प्रयत्न करने पर अनु. मान भी नहीं लगा पाती । तीर्थकर सामान्य कुलीन नहीं होते । वे अधिकाधिक प्रतिष्ठित सम्माननीय राजवंशज क्षत्रिय होते हैं । अतएव सुनिश्चित है कि उनका व्यक्तित्व असाधारण होता है । वज्रवृषभनाराच संहनन (xजो छहों संहननों में सर्वश्रेष्ठ है ) और समचतुरस्र संस्थान+ (जो छहों संस्थानों में सर्वोपरि है) तीर्थंकर के होता है, जिसके कारण तीर्थकर का शरीर वज्रमय होता है और जो अतीव क्षमता रखता है तथा जो अपने आप में सब कुछ कर सकने की सामर्थ्य रखता है। तीर्थंकर शारीरिक-मानसिक, सामाजिक-सामूहिक सम्पूर्ण शक्तियों से संयुक्त हो सर्वश्रेष्ठ और सर्वमान्य होता है । वह एक होकर भी अनेक व्यक्तियों को वश में ही नहीं करता, बल्कि अपने अनुकूल भी बना लेता है । इसी आधार पर तो विचारक तीर्थंकरों को *त्रेशठ शलाका पुरुषों में सर्वप्रथम स्थान देते हैं और जो तीर्थकर के व्यक्तित्व की महत्ता को देखते हुये उचित भी है। ४ वर्षभनाराचसंहनन, वज्रनाराचसंहनन, नाराचसंहनन, अर्धनाराचसंहनन, कीलकसंहनन और असंप्राप्तासपाटिकासंहनन ये छह संहनन माने जाते हैं। ___ + समचतुरस्रसंस्थान, न्यग्रोधपरिमंडलसंस्थान, स्वातिसंस्थान, कुब्जसंस्थान, वामनसंस्थान और हुंडकसंस्थान ये छः संस्थान माने गये हैं। * २४ तीर्थकर, १२ चक्रवर्ती, ९ नारायण, ९ प्रतिनारायण, ९ बलभद्र ये वेशठ शलाका पुरुष माने जाते हैं जिनके चरित्र प्रथमानुयोग सम्बन्धी शास्त्रों में मिलते हैं।
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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