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________________ संस्कृति विशिष्ट योगविद्या। ३९३ यम, नियम, आसन, प्राणायाम और प्रत्याहार ये योग के पांच अंग प्रथम अधिकारियों के लिये हैं । याने योग की प्रक्रिया से अनभिज्ञ व्यक्तियों के लिये अतीव उपयोगी हैं और अन्त के धारणा, ध्यान और समाधि ये तीन अंग मध्यम तथा विशिष्ट अधिकारियों के लिये अत्यावश्यकीय हैं। ७ ध्यान--यह योग का सप्तम अंग है । योग के यमादि सर्वांगों में यह विशिष्ट है । इस अंग को योगसर्वस्व भी कह दिया जाय तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। जैनागमों में ध्यान के चौर भेद दिखलाये हैं-आर्तध्यान, रौद्रध्यान, धर्मध्यान और शुक्लध्यान । __ आतध्यानः--दुःख के निमित्त या उस में होनेवाले सन्ताप को, मनोज्ञ वस्तु के वियोग एवं अप्रिय वस्तु के संयोग से चित्त में होनेवाली घबराहट को और मोहवश राज्योपभोग, शयन, आसन, वाहन, स्त्री, गन्ध, माला, मणि और रत्नमय आभूषणों में होनेवाली उत्कट अभिलाषा को आध्यान कहते हैं । अथवा दुःख के लिये या दुःख में होनेवाला ध्यान आर्तध्यान है । या आत याने दुःखी प्राणी का जो ध्यान वह आर्तध्यान है। आर्तध्यान के चार मेद है। (१) अनिष्टसंयोग-आर्तध्यानः--जो निज चित्त को प्रिय नहीं हैं या अनिष्ट हैं ऐसे शब्द, रूप, रस, गंध, स्पर्श विषयक तथा इनकी साधनभूत वस्तुओं का संयोग होने से उनके वियोग और उनका भविष्य में कभी संयोग नहीं होने के लिये प्रत्येक समय पुनः पुनः विचार करना अनिष्टसंयोग-आर्तध्यान है। (२) इष्टसंयोग-आर्तध्यान:-जो अपने मन को प्रिय-मनोज्ञ हैं या इष्ट हैं ऐसे पांचों इन्द्रियों से सम्बन्धित विषयों का संयोगे होने और संयोग होने पर भविष्य में कभी भी वियोग नहीं होने की चिन्ता-इच्छा करते रहना तथा चित्त को उन्हीं में मग्न रखना इष्टसंयोग-आर्तध्यान है। (३) रोगचिन्ता-आतध्यानः-नाना भाँति के बाह्य शारीरिक रोगों ( भयंकर या २२ चत्तारी झाणा पण्णत्ता । तं जहा-अट्टे झाणे, रोद्दे झाणे, धम्मे झाणे, सुक्के झाणे (श्रीस्थानांग सूत्र ४ स्था० १ उद्देशो) २३ अट्टज्झाणे चठविहे पण्णत्ते तं जहा-१ अमणुण्णसंपओगसंपउत्ते तस्स अविष्पओगसत्ति समण्णागए यावि भवई । २ मणुण्णसंपओगसंपउत्ते तस्स विप्पओगसत्तिसमण्णागए यावि भवई । ३ आयंकसंपओगसं. पउत्ते तस्स विप्पओगसत्ति समण्णागए यावि भवई। ४ परिजुसियकामभोगसंपउत्ते तस्स अविप्पओगसत्ति. समण्णागए यावि भवई ।
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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