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________________ सम्पादकीय वक्तव्य अपने बड़ों का सम्मान करने की भावना जाग्रत प्रजा का शुभ लक्षण है। गुणीजनों के सम्मान करने की प्रवृत्ति वैसे तो चिरकाल से सभ्य समाज द्वारा आहत रही है। परन्तु फिर भी स्वातन्त्र्य प्राप्ति के पश्चात् यह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अधिक दिखाई देती है। विद्यमान पुरुषों का तो सन्मान किया ही जाता है। किन्तु दिवंगत महान् आत्माओं की जन्म और निधन तिथि को निमित्त बना कर उनका गुणगान किया जाता है, महोत्सवपूर्वक उनकी स्मृति मनाई जाती है और श्रद्धांजलियां अर्पित की जाती हैं। फलतः स्मारक और अभिनंदन ग्रंथों की इधर कुछ वर्षों से अच्छी वृद्धि हो रही है । जैन क्षेत्र में इस दिशा में अभी थोड़े ही ग्रंथ प्रकाशित हुये हैं और उनमें भी प्रामाणिक एवं उपादेय सामग्री कितनी आ पाई है यह बलपूर्वक नहीं कहा जा सकता । अत्युत्साह में कहीं २ तो विवेक की मर्यादा का भी उल्लंघन देखा गया है और कला और साहित्य का हाम और गौणस्थान भी । ऐसी स्थिति और मनोवृत्ति में स्मारक एवं अभिनंदन ग्रन्थ का आयोजन करके उसे मनोवांछित रूप से सम्पन्न करना अत्यन्त ही कठिन कार्य है। यह निश्चित है कि ऐसे ग्रंथों में लक्ष्य रूप से तो एक विशिष्ट पुरुष का अभिनन्दन और उनकी स्मृति ही होते हैं। परन्तु विद्वानों के ज्ञान एवं अनुभव के भण्डार होना भी इन ग्रंथों का स्थायी महत्व है। इनके द्वारा विविध विषयों की जानकारी से हमारी ज्ञानवृद्धि होती है यह सुस्पष्ट है। ___ प्रस्तुत ग्रंथ में जैनधर्म और संस्कृति, साहित्य और कला, इतिहास और पुरातत्त्व, विज्ञान और समाज संबंधी जैन दृष्टि से पूरी २ और युगोपयोगी सामग्री देना हमारा प्रधान लक्ष्य था और इसी निमित्त १२५ विषयों की विषय सूची भी हिन्दी तथा अंग्रेजी में प्रकाशित करके विषयनिष्णात विद्वानों को भारत और बाहर प्रदेशों में भेजी थी। सफलता की वह अभिलषित प्रतिमा तो प्राप्त नहीं हो सकी; परन्तु फिर भी इस में विविध विषयक जो कुछ और जितना कुछ आ सका है वह हमारे लक्ष्य की ही वस्तु है और वांछनीय व उपादेय है । इस दृष्टि से यह ग्रंथ अबतक प्रकाशित ग्रंथो में अपना एक विशिष्ट स्थान प्राप्त करेगा ऐसी हमको आशा है। जब आचार्य श्री विजययतीन्द्रसूरिजी ने आचार्य श्री राजेन्द्रसूरिजी के स्मृतिस्वरूप निधन-अर्धशताब्दी-महोत्सव के अवसर पर स्मारकर्मथ के सम्पादन-प्रकाशन का भार
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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