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________________ भीमन् विजयराजेन्द्रसरि-स्मारक-ग्रंथ हमारे दुर्बल कंधों पर रखने का प्रस्ताव किया, तब अपनी मर्यादा और त्रुटियों का भा होते हुये भी हमने इस पवित्र कार्य को सहर्ष इस लिये स्वीकार किया कि दिवंगत महा आत्मा के प्रति इस निमित्त से अपनी श्रद्धाञ्जलि देने का एक शुभावसर मिला है औ इस प्रसंग से कुछ साहित्य सेवा हो सके नो अच्छी है । कार्य की सफलता तो उन दिवंग आत्मा के आशीर्वाद और उन्हीं की महत्ता के कारण हो ही जायगी। स्मारकग्रंथ संबंधी विचार-विमर्ष नो वि. सं. २००२ के चातुर्मास में बागरा आचार्य श्री विजययतीन्द्रसूरिजी, मुनिश्री विद्याविजयजी, शाह इन्द्रमल भगवानजी और श्री दौलतसिंह लोढ़ा के बीच हुआ था। किन्तु उस विचार को निर्णय व सक्रियरूप वि. सं. २०१० में आचार्य श्रीविजयराजेन्द्रसूरिजी की निधन-जयन्ती के अवसर पर सियाणा में मिला और उसका इस निमित्त कार्यारम्भ वि. सं. २०११ में बागरा में श्रीसंघ के रु. ११००१) और आहोर में श्रीसंघ के रु. १०००१) के दान के वचनद्वारा हो गया। फिर तो शीघ्र ही कार्य को सुचारूरूप से सम्पन्न करने का कार्य भी प्रारंभ कर दिया गया। इस निधि के कोषाध्यक्ष शाह उदयचन्द ओखाजी, आहोर बनाये गये। __ हममें से श्री दौलतसिंह लोढ़ा ही इसके प्रबंध सम्पादक बने । उन्होंने ही प्रारंभिक योजना बनाई, विषयसूची तैयार की, राजेन्द्रसूरि-संक्षिप्त जीवन प्रकाशित किया, विद्वानों से पत्र-व्यवहार किया, स्वयं यात्रा करके विद्वानों के पास जा कर भी लेख एकत्रित किये, वर्षभर से, कभी बीमार न हुये, ऐसे बीमार होते हुये भी भ्रमण करके फोटोग्राफी करवाई और अंत में भावनगर जा कर केवल दूध और फल पा छः मास पर्यंत रह कर मुद्रण संबंधी प्रूफ देखने आदि समग्र कार्य किया । विद्वानों से लेख प्राप्त करने में श्री नाहटाजी का लोदाजी को अधिक सहकार मिला व उनके परिचय से अधिक विद्वानों के लेख आये। उन्होंने व पं. दलसुखभाई ने लेखों का चयन और निरीक्षण आदि में यथासंभव सहयोग दिया। कार्य शीघ्रता से होना था। अत एव यह संभव न था कि सभी सम्पादक सब लेखों को और उनके प्रूफ आदि को देख सकते । अतः मम्पादनादि में कुछ त्रुटियां रह जाना संभव है तो इसका दोष हम सभी पर है। लोढ़ाजीने तो अपनी ममग्र शक्ति इसी में लगा दी है और उन्हीं के उत्साह का यह सुफल है। अभिनन्दन ग्रंथों, मामयिक पत्र-पत्रिकाओं और अखबारों की बाढ़ के जमाने में लेखकों को अवकाश का अभाव रहना स्वाभाविक ही है। अनेक विद्वान स्वीकृति देकर भी लेख नहीं भेज सके, बहुत विद्वानों के लेख पर्याप्त विलंब करके आये और कुछ के समय
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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