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________________ संस्कृति उपासकदशाङ्ग सूत्र में सांस्कृतिक जीवन की झांकी। ३४९ उत्तरोत्तर उसकी प्रवृत्ति दुराचार की ओर बढ़ती गई तब वह अपने पति महाशतक को जिसने कि ग्यारह पडिमाओं को धारण करने के बाद अनशन व्रत ले लिया था, मदमाती हुई उपसर्ग देने लगी। शृंगारभरे हाव-भाव और कटाक्ष दिखाती हुई वह कहने लगी, " तुम्हें धर्म, पुण्य, स्वर्ग, मोक्ष आदि से क्या है, तुम मेरे साथ मनमाने भोग भोगो।" इस प्रकार वह काम के वशीभूत हो कर महाशतक को अपने धर्म से भ्रष्ट करने लगी। तब श्रावकने अपने अवधिज्ञान के द्वारा उसकी मृत्यु और नरक गति बतलाई जिससे वह डरकर चलती बनी । अनशन व्रत में सत्य कथन भी जो दूसरों को अप्रिय, कटु या पीडाकारी सिद्ध हो बोलना नहीं कलपता । इस की आलोचना के लिए महावीर स्वामीने अपने सुशिष्य गौतमस्वामी को महाशतक के पास भेजा और गौतमस्वामी से प्रेरणा पाकर महाशतकने अपने अतिचारों की आलोचना की। इसी प्रकार जब आनन्द श्रावक को परिणामों की विशुद्धता के कारण और ज्ञानावरणीय कमों का क्षयोपशम होने से अवधिज्ञान उत्पन्न हो गया और जिस के फलस्वरूप वह पूर्व, पश्चिम और दक्षिण दिशा में लवणसमुद्र में पांच सौ योजन तक और उत्तर में चुल्लहिमवाम पर्वत तक देखने लगा। इसी प्रकार ऊपर सौधर्म देवलोक और नीचे रत्नप्रभा पृथ्वी के लोलयच्युत नामक नरकावास को जानने और देखने लगा। गौतम स्वामीने कहा कि, "श्रावक को इतने विस्तारवाला अवधिज्ञान नहीं हो सकता। इस लिए हे आनन्द ! तुम इस बात के लिए दण्ड प्रायश्चित्त लो।" इस पर आनन्द की आत्मा बोल उठी, "क्या सत्य बात के लिए भी दण्ड लिया जाता है ! दण्ड तो आप स्वयं लीजिएगा ?" इस पर गौतमने भगवान् के पास जाकर सारा वृत्तान्त सुनाया । तब भगवान्ने कहा, "आनन्द का कथन सत्य है; अतः उससे जा कर क्षमा मांगो और प्रायश्चित्त लो!" इस घटना से यह सिद्ध होता है कि उस समय के श्रावक कितने कर्मनिष्ठ और सत्यनिष्ठ होते थे । वे अपने से बड़ों को भी उत्तर दे सकते थे और दण्ड के लिए विवश कर सकते थे। ऐसे ही धर्मप्रेमी श्रावकों पर भगवान् रीझते हैं, प्रसन्न होते हैं । सांस्कृतिक जीवन-उस समय के श्रावकों का जीवन संयमित, मर्यादित एवं धर्मनिष्ठ था । दैववाद और पुरुषार्थवाद का समन्वय उनके जीवन में प्रतिक्षण होता था । उस समय के राजा स्वयं धर्मप्रेमी होते थे। जितशत्रु राजा भगवान् के पदार्पण का समाचार सुनते ही राजसी ठाट-बाट से उनको वन्दन करने के लिए जाते हैं । श्रावक लोग भी नगर के बीच हो कर राजमार्ग से वन्दन करने के लिए जाते हैं । जाने के पूर्व क्या पुरुष, क्या स्त्री ! स्नान करते हैं, बहुमूल्य पर अल्प भारवाले परिधान पहनते हैं। लघुकरण रथ में बैठकर शिवानन्दा वन्दन के लिए प्रस्थान करती है । इस से उस समय की धार्मिक स्थिति और प्रभावना का पता चलता है ।
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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