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________________ ३४८ श्रीमद् विजयराजेन्द्ररि-स्मारक मंच दर्शन और से बारह व्रत धारण कर अपने घर पर आते हैं तब आते ही वे अपनी धर्मपत्नी शिवानन्दा को व्रत धारण की बात कहते हैं और आदेश देते हैं कि-" हे देवानुप्रिये ! जिस प्रकार मैंने श्री श्रमण भगवान महावीर से श्रावक के बारह व्रत धारण किये हैं, उसी प्रकार तुम भी जा कर श्राविका का धर्म ग्रहण करो।" शिवानन्दा पति के कथन को सुन कर अत्यधिक प्रसन्न होती है और भगवान् के पास जा कर श्राविकाधर्म अंगीकार करती है । इस कथन या घटना से पता लगता है कि उस समय पति और पत्नी का धर्म एक होता था। वैयक्तिक घरेलू जीवन में धार्मिक विचार-मेद को स्थान नहीं था। पति का आज्ञापालन करना पत्नी अपना सौभाग्य समझती थी। ' देवानुप्रिय ' और ' देवानुप्रिये ' का सम्बोधन शिष्टता, पवित्रता और अगाध प्रेम का प्रतीक है। माता और धर्मपत्नियों के कर्तव्य-उस समय जन-जीवन में 'अधिकार' और 'कर्तव्य' दोनों का समन्वय था। अपने पतियों के साथ स्त्रियों का क्या धार्मिक सम्बन्ध होना चाहिये इसकी झांकी भी हमें इस सूत्र के अध्ययन से मिलती है। जब-जब देवोंने धार्मिक कृत्यों की परीक्षा के निमित्त असह्य उपसर्ग दिये तब-तब मा और पत्नीने पुत्र और पति को उद्बोधन देकर धर्म में दृढ़ किया । चुलनीपिता श्रावकने जब प्रतिज्ञा धारण कर पौषध किया तब देवने परीक्षा के निमित्त कई प्रकार के कष्ट दिये । अन्तिम उपसर्ग माता भद्रा के लिए था । तब मा की ममता और भक्ति के वशीभूत होकर उसने अनार्य पुरुष को पकड़ना चाहा । ज्योंहि वह पकड़ने उठा त्योंहि देव लोप हो गया और हाथ में खंभा आ गया। वह उसीको पकड़ कर जोर-जोर से चिल्लाने लगा। उसकी चिल्लाहट को सुन कर भद्रा सार्थवाही वहां आई और कहने लगी-"तेरी देखी घटना मिथ्या है । क्रोध के कारण उस हिंसक और पाप बुद्धिवाले पुरुष को पकड़ लेने की तुम्हारी प्रवृत्ति हुई है । इसलिये भाव से स्थूल प्राणातिपात-विरमणव्रत का भंग हुआ है । अयतनापूर्वक दौड़ने से पौषध का और क्रोध के कारण कषाय-त्यागरूप उत्तर गुण का भंग हुआ है । इसलिए हे पुत्र ! दण्ड, प्रायश्चित्त लेकर अपनी आत्मा को शुद्ध करो।" चुलनी पिताने अतिचारों की आलोचना की। इसी प्रकार जब सद्दालपुत्र अग्निमित्रा भार्या के निमित्त से अपने धर्म से च्यूत हुआ तब उसकी भार्याने उसे उद्बोधन देकर धर्म में स्थिर किया । इन उदाहरणों से यह पता चलता है कि नर और नारी का सम्बन्ध केवल दैहिक नहीं है, केवल सांसारिक अभिलाषाओं और वासनाओं की पूर्ति के लिए ही उनका गठबन्धन नहीं हुआ। अपितु धर्मपूर्वक जीवन-यापन के लिए । ___ भगवान् की भक्त पर कृपा-भक्त के लिए भगवान् ही सर्वस्व है, वही उसका रक्षक है। जब महाशतक की भार्या रेवती मांसाहारिणी और मद्यपान करनेवाली बन गई और
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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