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________________ ३२८ श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक-ग्रंथ दर्शन और वहां निरन्तर मैत्री, स्नेह और सहानुभूति की धारा प्रवाहित होती रहती है । ईर्ष्या, द्वेष, वैरविरोध, संकीर्णता एवं असहिष्णुता आदि विकारों का सर्वनाश हो जाता है। अहिंसक जीवन जहां कहीं भी होता है संसार उसे प्रकाशस्तम्भ के रूप से देखता है । अहिंसक का प्रत्येक पद संसार की उन्नति अथ च अभिवृद्धि के लिये ही उठा करता है उसके रोम-रोम से " सुखी रहे सब जीव जगतके, कोई कभी न घबरावे । वैर-पाप-अभिमान छोड़ जग, नित्य नये मङ्गल गावे ॥" यही अमर स्वर गूंजता रहता है। संसार का हित और कल्याण ही उसकी साधना होती है। अहिंसक जीवन सदा जगत को सुखी, निरापद एवं आध्यात्मिकता के समुच्च सिंहासन पर विराजमान देखना चाहता है । अहिंसा का सिद्धांत इतना लोकप्रिय सिद्धान्त है कि कुछ कहते नहीं बनता। संसार के सभी दर्शनों ने इसका स्वागत किया है । जैन दर्शन का तो कण-कण अहिंसा की आराधना कर रहा है । जैन दर्शन का ऐसा कोई विधिविधान नहीं है जहां अहिंसा के दर्शन नहीं होते । बौद्ध दर्शन भी इसके सम्बन्ध में मौन नहीं है । वैदिक परम्पराने " मा हिंस्यात् सर्वभूतानि " यह कह कर अहिंसा की महिमा को स्वीकार किया है । भारतीय दर्शनों के अतिरिक्त पाश्चात्य दर्शन भीः Thou shall not kill* __ यह कह कर भगवती अहिंसा को अपनी श्रद्धाञ्जलि अर्पित करता है। अहिंसा की अबाध गति है। उसके अपूर्व प्रभाव को झुठलाया नहीं जा सकता। अहिंसा सदा से सुख का स्रोत रही है । उसकी आराधना से मानवने लौकिक और पारलौकिक सभी प्रकार की सुख-शान्ति प्राप्ति की है। आज जो चारों ओर पारिवारिकसामाजिक-राष्ट्रीय और आध्यात्मिक वैरविरोध दृष्टिगोचर हो रहा है, ईर्षा-द्वेष आदि दोषों ने मानव-समाज को सत्वहीन बना डाला है, उसका सर्वतोमुखी पतन कर दिया है इसका मूल कारण यदि कोई है तो वह मात्र अहिंसा का अनादर है। यदि मनुष्य अहिंसा को अपना जीवनसाथी बना ले और सब की सुख-सुविधा का उचित ध्यान रक्खे, मन, वाणी और शरीर द्वारा किसी का भी अहित न करे तब राष्ट्रीय-सामाजिक-पारिवारिक और आध्यात्मिक कोई भी संकट सर नहीं उठा सकता और मानव सदा सुशान्ति के झूले पर झूलता रहेगा। • " तूझे किसी जीव को मारना नहीं" यह ईसा की १० आज्ञाओं में एक आशा है ।
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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