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________________ संस्कृति जीवन और अहिंसा। जो अहिंसा एक हाथी को मगधनरेश श्रेणिक का राजकुमार बना सकती है, जो अहिंसा राजा मेघरथ को तीर्थकरत्व प्रदान कर सकती है, जो अहिंसा धर्मरुचि अनगार के माध्यम से मुक्ति के द्वार खोल सकती है और जो अहिंसा शताब्दियों की भारतीयपरतन्त्रता की बेड़ियों को खण्ड-खण्ड कर सकती है वह अहिंसा आज के अशान्त मानव को शान्त क्यों नहीं कर सकती ! मानव के भीतर सोये सुख देवता को जगा क्यों नहीं सकती ! तीर्थकरत्व या ईश्वरस्व को सामने ला कर खड़ा क्यों नहीं कर सकती ! विश्वास रक्खो-आज भी अहिंसा में वही शक्ति है । आज भी अहिंसा मानव के क्लेशों और कष्टों का अन्त ला सकती है। आज भी अहिंसा दमतोड़ रही मानवता को जीवन प्रदान कर सकती है। किन्तु यह होगा तभी जब अहिंसा का आदर किया जाएगा. उसे जीबन का साथी बनाया जायेगा, उसकी आराधना में तन-मन अर्पण कर दिया जायेगा। किन्तु आज अहिंसा केवल कण्ठ पर निवास करती है । उसे जीवन में नहीं उतारा जा रहा । अहिंसा की समस्त मर्यादाओं को आज जीवन से प्रायः निकाल दिया गया हैं। इस लिये आज अहिंसा के चमत्कार हमें दृष्टिगोचर नहीं हो रहे हैं । वस्तुतः जीवनप्राप्त अहिंसा ही जीवन को अपने अपूर्व चमत्कार दिखाया करती है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का अहिंसक जीवन उस सत्य का वर्तमानकालीन एक ज्वलन्त उदाहरण है। ___ मानव स्थानकों में-मन्दिरों में -मस्जिदों में-गिर्जाघरों में और गुरुद्वारों में अहिंसा धर्म के सम्बन्ध में बहुत सुन्दर सुन्दर प्रवचन करता है। अहिंसा धर्म की जय के नारे भी लगाता है। किन्तु उसे जीवनांगी बनाने का यत्न नहीं करता कितने आश्चर्य की बात है ! जिस अहिंसा का जन्म ही हिंसा की आग पर पानी डालने के लिये हुआ था आज स्वार्थी मानव उसीका बहाना धारण कर जन-मानस में आग लगाने का यत्न करता है। और तो और संसार को सुखशान्ति का महापथ दिखानेवाला त्यागी वर्ग भी आज भटका फिरता है। सत्य-अहिंसा का महापाठ पढ़ानेवाला साधु समाज भी आज हिंसा का शिकार हो रहा है । आज साधुओं में लड़ाइयें होती हैं-क्लेश होते हैं। एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिये साधु महात्मा भी दण्ड पेलते दिखाई देते हैं । सुन्दर वस्त्र पहनना, भोजन खाना और मिथ्या आत्मप्रशंसा एवं आत्मश्लाघा करना ही आज साधु जीवन की प्रायः साधना बन गई है । तभी तो पण्डित नेहरुने कहा था कि भारत के ८५ लाख साधुओं में मुश्किल से हजार साधु साधुता के धनी होंगे । आज भी यदि साधु अपनी मर्यादा को और अपने अहिंसा व्रत को सुरक्षित रखने के लिये सन्नद्ध हो जाय तो वे अपने को सर्वनाश से बचा सकते हैं । अहिंसा के महा-पथ पर चले बिना जीवन-सुरक्षा और जीवनोन्नति का कोई मार्ग नहीं है।
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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