SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 393
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१० श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि - स्मारक -ग्रंथ दर्शन और 1 गौओं को चुराकर सरस्वती, दृषद्वती नदियों के पार ले जाकर बलपुर की अद्रि में छुपा दिया । तब इन्द्र को बृहस्पति की शिकायत पर इन गौओं का पता लगाने और इन्हें लाने के लिये सरमा नाम की एक स्त्री को अपनी दूती बनाकर पणिलोगों के पास भेजा । यह सरमा शुनी जाति की एक अनार्य स्त्री थी । ये पण और शुनी जाति के लोग सरस्वती, दृषद्वती नदियों के पार कुरुक्षेत्र से दक्षिण की ओर अपने जनपदों में बसे हुए थे। पणिलोगों का जनप्रद पणिपद और शुनी जाति का जनपद शुनीपद से मशहूर था । इतना दीर्घ समय बीतने पर इन जनपदों के नगर आज भी अपने स्थान पर स्थित हैं और पानीपत व सोनीपत के नाम से प्रसिद्ध हैं। दोनों नगर एक दूसरे से २५ मील की दूरी पर कुरुक्षेत्र और देहली के मध्यभाग में स्थित हैं । बलपुर जहां गौओं को चुराकर रखा गया था वह संभवतः पानीपत तहसील का आधुनिक बला नाम का ग्राम है। उक्त सरमाने यद्यपि इन पणिलोगों को बृहस्पति की गौएं लौटा देने के लिये बहुत तरह समझाया और उन्हें इन्द्र का अपार पराक्रम तथा उसके सैनिक बल का भी डर दिखाया. परन्तु पणिलोगोंने कुछ भी पर्वाह नहीं की और उसे यह कह कर चलता कर दिया कि इन्द्र के पास सेना और आयुध हैं तो हमारे पास भी काफी संरक्षक सेना और तीक्ष्ण आयुध हैं । विना युद्ध किये ये वापिस नहीं हो सकतीं । इसी आख्यान की ओर संकेत करते ऋग्वेद १. ११.५. में कहा है- हे वज्रयुक्त इन्द्र ! तुमने गोहरणकर्ता बल नामक असुर की गुहा उद्घाटित की थी । उस समय बलासुर से पीड़ित देवलोगोंने निर्भय होकर तुम्हें प्राप्त किया था । इन्द्र की ब्रह्महत्या से मुक्ति की कथा महाभारत शान्तिपर्व अध्याय २८२ में कहा है कि वृत्र का वध होने पर उसके शरीर से ब्रह्महत्या निकली और उसने वृत्रहिंसक इन्द्र का पिछा किया | इस ब्रह्महत्या के कारण इन्द्र का तेज बिलकुल विनष्ट हो गया। इस ब्रह्महत्या को हटाने के लिये इन्द्रने बहुत प्रयत्न किया, किन्तु वह किसी भी तरह उसे दूर न कर सका। तब वह पितामह ब्रह्माजी के पास जाकर उनके चरणों में गिर पड़ा । ब्रह्माजीने इन्द्र को ब्रह्महत्या के दोष से मुक्त करने के लिये उसे ४ नियम दिलाये । १ - अग्नि में पशुओं की आहुति न देकर जौ तथा औषधियों की आहुति देना । २ - पर्व के दिनों में वृक्ष, वनस्पति और घास को न काटना । ३ - रजस्वला स्त्री के साथ मैथुन न करना । ४ - जल अर्थात् नदियों का संमान करना । जो कोई इन नियमों का उल्लंघन करेगा वह ब्रह्महत्या का दोषी होगा । इस कथा का ऐतिहासिक तथ्य यही मालूम होता है कि यद्यपि वृत्र का वध होने से इन्द्र के अनुयायी आर्यजन कुछ समय के लिये सिन्धुदेश के विजेता बन गये, परन्तु वे इस
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy