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________________ संस्कृति मरण कैसा दो ? भाव में देह त्याग किया जाता है । आत्महत्या में देह का दुरुपयोग है, जब कि समाधिमरण सभी प्रकार के वेग को शान्त कर स्वस्थ मन से आयुकाल की निकट अंत में समाप्ति समझ कर किया जाता है । २९५ आत्महत्या किसी कामना को लेकर होती है । उसमें क्रोध, लोभ या शोक, मोह कार होते हैं, जब कि समाधिमरण निष्काम होता है । इसमें सभी प्रकार के विकारों को नष्ट कर केवल आत्मशुद्धि का ही लक्ष्य होता है । समाधिमरण में ये पांच दूषण माने गये हैं । १. इस लोक में तन, धन, वैभव आदि सुखों की इच्छा करना, २ . इन्द्रादि पद या स्वर्गीय सुख की आशा करना, ३ . अधिक जीने की इच्छा करना, ४ . कष्ट से घबरा कर जल्द मरने की इच्छा करना, ५ . कामभोग - इन्द्रियसुखों की वांछा करना । समाधिमरण में वहाँ कोई कामना नहीं रहती, वहां शरीर को अक्षम समझ कर या शील धर्मादि की रक्षा के लिये अनिवार्य समझ कर पवित्र हेतु से आत्महित के लिये शरीर. त्यागा जाता है । अतः यह किसी तरह आत्महत्या नहीं कहा जा सकता । यह तो समाधिमरण या पंडितमरण है । मरण महिमा :- मनुष्य चाहे जैसी भी उच्च कुल, जाति या योनि में उत्पन्न हुआ हो, यदि जीवन का संध्यामरण अंधकारपूर्ण है तो उसका सारा परिश्रम और साधन - संकलन व्यर्थ है । उसका जन्म दुःखवृद्धि के लिये है । वास्तव में जीवन शिक्षाकाल है और मरण परीक्षाकाल | जीवन कार्यकाल है और मरण विश्रांतिकाल । जैन महर्षिओंने कहा है कि - जिसका मरण सुधरा उसका जीवन सुधरा समझो और मरण बिगड़ा तो जीवन बिगड़ा समझो; क्यों कि मरण की संध्या पार करके ही प्राणी जीवन के नवप्रभात की ओर जाता है। शास्त्र में भी कहा है: --- अन्तोमुहुत्तंमि गए, अन्तो मुहुत्तंमिसेस चेव । साहिं परिणयाहिं जीवा गच्छन्ति परलोयं ॥ उ. ३४ ॥ जिस लेश्या में जीव काल करता है, अन्तर्मुहूर्त शेष रहने पर जीव परलोक में भी उसी लेश्यास्थान में जाकर उत्पन्न होता है । अतः आत्महितैषियों के लिये मरण सुधार की ओर लक्ष्य देना अत्यावश्यक है । शास्त्र कहते हैं कि तनधारी प्राणीमात्र को मरना तो है ही, चाहे धैर्यपूर्वक कष्टों को शांति से सह कर मरे या कायर की तरह दीन होकर मरे । तन, धन एवं परिवार के लिये अकुलाते हुए मरे या सब से ममता हटा कर निराकुल भाव से मरे । सत्य
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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