SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२ श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि- स्मारक -ग्रंथ इस प्रकार ये सात नियंत्रण- दवाव हैं। इन्हीं नियंत्रणों के डर से प्रत्येक प्राणी असदाचारण करते डरता है और स्वपर को सचरित्री बना सकता है। जो इन नियंत्रणों की अवहेलना करते-कराते हैं, उनको अपनी सचरित्रता से हाथ धोने पड़ते हैं। साथ ही अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है और यातनाएँ भी भुगतना पड़ती हैं, इसलिये अगर दुनियां में सरित्री बन कुछ इज्जा जमाना या कमाना है तो उक्त नियंत्रणों का वास्तविक रूप से परिपालन करते रहना चाहिये । ४४ धन की अपेक्षा स्वास्थ्य, उसकी अपेक्षा जीवन और उसकी अपेक्षा आत्मा प्रधान है। शरीर को तंदुरस्त रखने के लिये प्रकृति के अनुकूल कम खाना, झगड़े के समय गम खाना और प्रतिक्रमणादि धर्मानुष्ठानों में उपवेशन एवं अभ्युत्थान करना चाहिये । जीवन और आत्म-विकास के लिये चुगलबाजी, निंदाखोरी, चालबाजी, कलहबाजी आदि खराब आदतों को हृदय भवन से निकाल कर दूर फेंक देना चाहिये और उनको शुद्ध आचार-विचारों, शुभाचरणों तथा विशुद्ध वातावरण में संयोजित करना चाहिये । यही निर्दोष मार्ग उनका भलिभाँति विकास करनेवाला माना गया है । ४५ उत्तम कुल में जन्म, धर्मिष्ठ परिवार, निर्वाहयोग्य लक्ष्मी सुपात्र पत्नी, लोक में इज्जत, सद्गुरुओं का योग और शास्त्रश्रवण में रुचि इतनी बातें प्राणियों को पूर्व पुण्योदय के बिना नहीं मिलतीं । जो पुरुष या स्त्री इनको पा करके जीवन सफल या सार्थक नहीं कर लेता, उसके समान अभागा दुनियां में दूसरा कोई नहीं है। ऐसा शास्त्रकार महर्षियों का मन्तव्य है जो सोलह आना सत्य समझना चाहिये । ४६ दुःख - संतप्त जीवों को देख कर जो उनके दुःखों को मिटाने के लिये यथाशक्य प्रयत्न करता रहता है, जो न किसी की निंदा करता है और न चुगलखोरी । जो न अपने ऐश्वर्य का मद करता है और न किसीको नीचा दिखाने का प्रयत्न । जो परखियों को माता एवं बहिन के समान समझता है और न मिध्यादृष्टियों के चंगुल में फंसता है । जो अपने अंग में मोह-माया को स्थान नहीं देता और न क्रोधावेश को । जो सदा अपने ध्यान में मग्न रहता है, किन्तु विषयी कषायी देवों का कभी शरण नहीं लेता । जो घरधंधों में उदासीन भाव से रहता है; परन्तु खोटे धंधों का आश्रय नहीं लेता । बस, ऐसा ही गुणसंपन्न व्यक्ति जैन श्रावक स्वपर के जीव का सुधार कर सकता है । ४७ जिस पुरुष में शौर्य, धैर्य, सहनशीलता, सरलता, सुशीलता, सत्याग्रह, गुणानुरागता, कषायदमन, विषयदमन, न्याय और परमार्थ रुचि इत्यादि गुण निवास करते
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy