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________________ सत्य मार्गदर्शन । साध्वीजी भावभीजी अन्तेवासिनी श्रीमुक्तिश्रीजी राजेन्द्र मुनिपति से चला यह त्रिस्तुतिक नवपंथ है । यह कह रहे, नहिं जानते जो निगम-आगम-ग्रंथ हैं | सर्वज्ञ - अनुमोदित तथा सच्चा सनातन धर्म है । जैनागमों को देखिये जिनमें भरा यह यह सत्य है, इसका हुवा था लोप - सा कुछ बस चार स्तुति करने लगे हम विन-भय विकराल से || फिर ' सूरिवर राजेन्द्र ने इसका किया परिशोध है । मर्म है ॥ १ । काल से । " राजेन्द्रमत' कहना इसे यह तत्वहीन विरोध है ॥ २ ॥ यह तर्कसिद्ध वस्तु है कि सत्पुरुष असत्य एवं अप्रमाणिक वस्तु या मार्ग को ग्रहण नहीं करते । वे तो प्रत्येक मार्ग में प्राणीमात्र के कल्याण का भाव सन्निहित हो इस बात को प्रथम देखते हैं । गुरुदेव प्रभु श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजीने जब जावरा ( मध्यभारत ) में क्रियोद्धार कर के सत्साधुत्व को ग्रहण किया था, उस समय समाज का भावी तो तिमिराच्छादित लगता ही था; वर्तमान भी पाखंड़पूर्ण एवं अतिचारप्रिय था । देव और देवियों की मान्यताने बढ़ कर वीतराग भगवान् के महत्व को भी पीछे ढकेलना अपना मुख्य कार्य बना लिया था । गुरुदेव ने इस शैथिल्य को आगमिक और पूर्वाचार्य महर्षिकृत शास्त्रप्रमाणों से दूर करने का निश्चय किया । उन्होंने सोचा कि इस समय समाज जिस मार्ग पर चल रहा है, यह संघ के लिये हानिकर है । इससे समाज को बचाना मेरा परम कर्तव्य है । ऐसा निश्चय कर आपने ' श्रीत्रिस्तुतिक सिद्धान्त ' को पुनरुज्जीवित किया । इस सिद्धान्त के उदय होते ही समाज के भी अज्ञ नेत्र खुल गये और गुरुवर का प्रभाव तथा उनका यह प्रचारित ( उद्धारित ) मन्तव्य दिनानुदिन बढ़ने लगा, जिसके फलस्वरूप आज यह ' आर्य सत्य सनातन सिद्धान्त ' प्रकाशमान है । 1 यद्यपि इस सनातन सत्य सिद्धान्त को पुनः प्रचारित करने में गुरुदेव को अनेकानेक शास्त्रार्थ करने पड़े और शारीरिक परिषहों का सामना करना पड़ा, परन्तु जो जन्मसिद्ध युगप्रभावक धर्मवीर त्यागी हैं और हैं वीतराग के उपासक, वे कदापि हतधैर्य एवं चलित नहीं ( १४ )
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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