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________________ १०४ श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक-ग्रंथ पहल विलासी यतिओं के जादू-टोनों से प्रभावित जनता सूरिजी के इस मर्म को समझ नहीं सकी, किन्तु धीरे-धीरे जनता यतियों के प्रभाव से हटने लगी और साधुओं में फिर त्याग और तपस्या का प्रभाव बढ़ने लगा । इस प्रकार उन्होंने जैन शासन की उन्नति में नई प्रेरणा दी। . राजेन्द्रसूरिजी का दूसरा महान कार्य था धर्म से पाखंडता का नाश करना । जो आदमी जैसा कार्य करेगा, वह वैसा ही भोगेगा। कर्मों का फल भोगना ही पड़ेगा, इस सिद्धान्त को उन्होंने साधारण आदमी के सामने रक्खा। उन्होंने प्रभु की उपासना का सच्चा महत्त्व बताया। आदमी का वर्तमान जीवन उलझन-भरा है। वह इस युग में व्यवहारिक पुद्गलों में इतना उलझ गया है कि उसे सोचने को समय ही नहीं मिलता कि वह किस ओर है । यही कारण है कि वह 'जीओं और जीने दो' सत्य, अहिंसा, सेवा और प्रेम के सिद्धान्तों को भूल कर अपनी सीमा को लांघ चुका है । फलस्वरूप विश्व संघर्ष का एक अखाड़ा बन गया है और विश्वशांति एक खतरे में पड़ गई है। वह भगवत्-पूजा और उससे होनेवाली शान्ति और सद्भावों की प्राप्ति को भूल गया है । भगवान की दिव्यमूर्ति को देखते ही भगवान् के वे सिद्धान्त 'सत्य, अहिंसा, सेवा और प्रेम ' दिमाग में प्रवेश करते हैं और बे आदमी को दूसरों की सीमाको लाँघने से रोकते हैं । सूरिजीने सच्ची पूजा, सच्ची उपासना और सच्चे धर्म का मर्म समझाया । ___ सूरिजी का साधु-जीवन त्याग और तपस्या का ज्वलंत उदाहरण है। कड़ी के कड़ी सर्दी में भी उन्होंने कभी ऊनी कपड़ों का प्रयोग नहीं किया । एक चादर और एक चोलपटा पहने वे कड़ाके की सर्दो गुजार देते थे। सच्चे साधु को आराम से क्या मतलब । सच्चे साधु के पास आराम के लिये समय ही कहां ! जबकि कार्य का एक विस्तृत क्षेत्र पड़ा है। उनका ध्येय तो इच्छाओं का दमन है। जबतक इच्छाओं का दमन नहीं होता, तबतक आत्मा चलायमान रहती है । ज्योंहि इच्छाओं पर विजय पा ली, आत्मा पांचो ज्ञान को प्राप्त कर लेगी । यह सच्ची मुक्ति है। इसके अलावा इन्होंने सबसे महान् कार्य जो किया है वह है साहित्य-उपासना । किसी भी समाज में जागृति व क्रान्ति फैलाने का श्रेय उसके साहित्य को है । वे साहित्य द्वारा समाज में शिक्षा, जागृति, सामाजिक सुधार करना चाहते थे। उन्होंने अपने साधु-जीवन का आधा भाग साहित्य-उपासना में लगाया । आप जैन दर्शन व साहित्य के प्रकाण्ड विद्वान् थे। लोगों में क्रान्ति की भावना पैदा करने में इनके साहित्य ने बहुत मदद की। अनेक गूढ़ सिद्धान्तों व नियमों का विश्लेषण कर इस महान-पुरुष ने जनता के भटके हुए मनको सच्ची वीतराग उपासना में लगाया। उनकी साहित्य-उपासना की सबसे बड़ी देन है 'राजेन्द्र
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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