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________________ ८२ श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक-ग्रंथ २०१० ज्येष्ठ सु. १ सोमवार को दशदिनावधिक उत्सव के साथ सम्पन्न हुवा था। इस प्रतिष्ठोत्सव में २५ सहस्र के लगभग जनता उपस्थित हुई थी। इस महामहोत्सव को इन पंक्तियों के लेखक ने भी देखा है। यहाँ यात्रियों के ठहरने के लिये मरुधरदेशीय श्री जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक श्री संघ की ओर से मन्दिर के तीनों ओर विशालकाय धर्मशाला बनी हुई है। मन्दिर में मूलनायकजी के दोनों ओर की सब प्रतिमाजी श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज के द्वारा प्रतिष्ठित हैं । मूल मन्दिर के चारों कोनों में जो लघु मन्दिर हैं, इन में विराजित प्रतिमाएँ वि. सं. १९९८ में बागरा में श्रीमद्विजययतीन्द्रसूरीश्वरजी महाराज के करकमलों से प्रतिष्ठित्त हैं, जो यहाँ २०१० के प्रतिष्ठोत्सव के अवसर पर विराजमान की गयी हैं। प्रत्येक जैन को एक बार अवश्य रेगिस्थान के इस प्रगट प्रभावी प्राचीन तीर्थ का दर्शनपूजन करना चाहिये। (३) श्री स्वर्णगिरि तीर्थ-जालोर यह प्राचीन तीर्थ जोधपुर से राणीवाडा जानेवाली रेल्वे के जालोर स्टेशन के समीप स्वर्णगिरि नाम के प्रख्यात पर्वत पर स्थित है। नीचे नगर में प्राचीनार्वाचीन १३ मन्दिर हैं। ऐसे भी उल्लेख मिलते हैं कि जालोर नवमी शताब्दी में अति स्मृद्ध था। वर्तमान में पर्वत पर किल्ले में ३ प्राचीन और दो नूतन भव्य जिनमन्दिर हैं । प्राचीन चैत्य यक्षवसति (श्री महावीर मन्दिर ), अष्टापदावतार ( चौमुख ), और कुमारविहार ( पार्श्वनाथ-चैत्य ) हैं। यक्षवसति जिनालय सबसे प्राचीन है। यह भव्य मन्दिर दर्शकों को तारंगा के विशालकाय मन्दिर की याद दिलाता है। इसको नाहड ( नामक राजा )ने बनवाया था ऐसा एक निम्न प्राकृत-पद्य से ध्वनित होता है नवनवइ लक्खधणवइ अ लवासे सुवण्णगिरि सिहरे । नाहड़निवकारवियं थुणि वीरं जक्खवसहीए ॥ १॥ याने जहाँ ९९ लक्ष रुपयों की संपत्तिवाले श्रेष्ठियों को भी रहने को स्थान नहीं मिलता था, किल्ले पर सब क्रोडपति ही निवास करते थे। ऐसे सुवर्णगिरि के शिखर पर नाहड(राजा) के बनवाये यक्षवसति में श्रीमहावीरदेव की स्तुति करो। कुमारविहार जिनालय को सं. १२२१ के लगभग परमार्हत् महाराजाधिराज कुमारपाल भूपालने कलिकालसर्वज्ञ श्रीमद् हेमचन्द्रसूरीन्द्र के उपदेश से कुमारविहार के गुणनिष्पन्न १ विशेष ज्ञातव्य बातों के लिये कविवर मुनि श्रीविद्याविजयजी महाराज की लिखित ' श्रीभाण्डवपुर जैन तीर्थमण्डन श्री वीर चैत्य-प्रतिष्ठा महोत्सव ' देखिये।
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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