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________________ श्री गुरुदेव के चमत्कारी संस्मरण । - १-सं० १९४० के माघ में गुरुदेव का विराजना अहमदाबाद में त्रिपोलिया दरवाजा के बाहर हठीभाई की बाड़ी के उपाश्रय में था, वहाँ निशि-ध्यान में आप को रतनपोलवाली नगरशेठ की सतखण्डी हवेली में अग्नि-प्रकोप का खड़ा होना दिखाई दिया और रतनपोल की शेठमार्केट जलती-जलती वाघनपोल के बाजू पर महावीर-जिनालय के पास जाकर शांत हुई। प्रातःकाल आप बाड़ी से निकल कर शहर में पांजरापोल के उपाश्रय में पधार गये। शेठियाओंने वहाँ पधारने का कारण पूछा। आपने अपने ध्यान में अग्नि-प्रकोप का जो दृश्य देखा था उसको कह सुनाया । बस आप के कथनानुसार ही नगरशेठ की हवेली से अग्नि का भयंकर प्रकोप खड़ा हुआ और सारी रतनपोल, शेठमारकीट और वाघनपोल जल कर भस्म हो गईं । यह आग का प्रकोप इतना भयंकर था कि अति कठिनाई से शांत किया गया था । आज भी अहमदाबाद में यह हवेली 'बलेली हवेली ' के नाम से प्रख्यात है। वाघनपोल के नाके पर श्री महावीरस्वामी का मन्दिर है। यह नगरशेठ का मन्दिर कहा जाता है । जलने के भय से इस में से महावीर प्रभु आदि की मूर्तियाँ उठाली गई थीं। उन प्रतिमाओं को फिर से स्थापन करने के लिये आत्मारामजी-विजयानन्दसूरिजी के पास शेठियाओंने मुहूर्त निकलवाया। वह मुहूर्त-पत्र शेठियाओंने गुरुदेव को भी बताया । उसे भलीविध देख कर आपने कहा कि यह मुहूर्त अच्छा नहीं है। इसमें बड़ा भारी दोष यह है कि मूलनायक वीर प्रभु को स्थापन करनेवाला व्यक्ति छः मास में मृत्यु को प्राप्त होगा। यह बात आत्मारामजी और शेठियाओंने लक्ष्य में न लेकर मूर्तियों को स्थापन कर दी । आखिर गुरुदेव के कथनानुसार प्रतिष्ठा-उत्सव में अनेक विघ्न होने के साथ प्रतिमा स्थापन करनेवाला छः मास में ही मृत्यु को प्राप्त हो गया। आप के कथन की सत्यता का भान लोगों को तब हुआ। २-सिरोही ( राजस्थान ) के नगर शिवगंज में मेघाजी मोतीजी और वनाजी मोतीजी के निर्माण कराये हुए आदिनाथ और अजितनाथ के जिनालयों के लिये और बाहर ग्रामों के लिये २५० जिन-बिम्बों की प्राण-प्रतिष्ठा करने का शुभ मुहूर्त सं० १९४५ माघ सुदि ५ का गुरुदेवने निश्चित किया था। तदनुसार समय पर विशाल मंडप आदि तथा प्राण-प्रतिष्ठा के योग्य समस्त सामग्री तैयार की गई और गुरुदेव की तत्वावधानता में ही १० दिनावधिक उत्सव प्रारम्भ हुआ। चारों ओर से दर्शकगण भी उपस्थित हुए । प्रतिदिन का क्रियाविधान भी सानन्द चालू हुआ। इस समय इर्ष्या से किसी यतिने सलगता हुआ पलीता मंडप के उपर फेंका, उससे मंडप को तो कुछ भी हानि नहीं हुई और उल्टा पलिताने फेंकनेवाले यति के कपड़ों को ही जला दिया और आगे फिर अनिष्ट करता --सा दिखाई दिया । उप
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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