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श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक-प्रथ स्थित लोगोंने यतिको धिक्कारा । अन्त में वह यति गुरुदेव के चरणों में पड़ा तब कहीं पलिता से उसका छुटकारा हुआ। गुरुदेव के ज्योतिष-ज्ञान का तो इस से परिचय प्राप्त होता ही है। साथ ही उनका बढ़ा हुआ मंत्र-बल भी इस घटना से समझ में आ जाता है।
___३-सं० १९५१ की चैत्री ओलियों में मुनिमंडलसह गुरुदेव धार-जिले के कुक्षी नगर में विराजमान थे। ध्यानचर्या में आपको ज्ञात हुआ कि वैशाख वदि ७ के रोज अंबाराम ब्राह्मण के घर से अग्नि उठ कर कुक्षी के १५०० घरों को जला डालेगी। प्रात:समय जब माणकचन्दजी, चौधरी डूंगरचन्दजी, जालोरी रायचन्दजी आदि अग्रसर श्रावक आप के दर्शनार्थ आये, उन से आपने कहा-" कुछ दिनों के पश्चात् कुक्षी में आग लगेगी जो सहज बुझाई नहीं जा सकेगी।"
कुछ भावुकोंने अपना माल-असबाब ग्रामान्तर पहुंचा दिया। गुरुदेव कुक्षी से विहार कर राजगढ़ पधार गये। गुरुदेव उपरोक्त तिथि को जब ध्यान में बैठे हुए थे, उन्हें ध्यान में ही कुक्षी जलती हुई दिखाई पड़ी। दर्शनार्थ आये हुए चुन्नीलालजी खजाची से आपने यह समस्त वृत्तान्त कह दिया। जब तार से समाचार मंगवाये गये तो ज्ञात हुआ कि 'वैशाख वदि ७ को मध्यान्ह से चार बजे तक कुक्षी में १५०० घर जल कर भस्म हो गये और २५ लाख रूपयों की हानि हुई । अस्तु । बात सत्य निकली और गुरुवचनों के विश्वास पर जो लोग रहे उनका सब माल बच गया ।
४-धार-जिला के बड़ीकड़ोद गाँव में शेठ खेताजी वरदाजी उदयचन्दजीने एक भव्य जिनालय बनवाया था। उसके लिये गुरुदेवने वासुपूज्य आदि के जिन-बिम्बोंकी अंजनशलाका एवं प्रतिष्ठा का मुहूर्त सं० १९५३ वैशाख सुदि ७ का नियत किया था। आपकी अध्यक्षता में उसका दशदिनावधिक उत्सव और प्रतिदिन का विधिविधान आरम्भ हुआ। भारी समारोह से कार्य सानन्द हो रहा था। अकस्मात् चोरों की धाड़ने शेठ के यहाँ से ७०-८० हजार का माल लूटा और पलायन हो गये । रंग में भंग हो गया ।
शेठ उदयचन्दजी भारी चिन्ता से घिर गये । आपने कहा,-" शेठ ! कोई चिन्ता न करिये, चढ़ते भाव से प्रतिष्ठा-कार्य को संपन्न करिये । धर्म का प्रभाव महान् है, उसके प्रभाव से सब माल पुनः प्राप्त हो जायगा।" शेठने प्रतिष्ठा-कार्य अति सराहनीय रूप से संपन्न कराया। जिनबिम्बों को जिनालय में स्थापन किये और बृहच्छान्तिस्नात्रपूजा भणवा कर उसके मंत्र-पूत जल की धारा गाँव के चारों ओर देकर उत्सव परिपूर्ण किया । इधर धार से एक घुड़सवारने आकर कहा कि शेठ आप का जो माल गया था वह सब पकड़ा गया है,