SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ __श्रीमदू विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक मंच होनेवाले तमाम शब्दों पर खूब विवेचनपूर्वक प्रकाश डाला है जिसमें केवल 'ण' शब्द से प्रारंभ होनेवाले शब्दों पर ४२९ पृष्ठ दिये हैं और 'ढ' शब्द से शुरू होनेवाले शब्दों पर एक पूरा पृष्ठ दिया है। अब इस भाग में जो प्रधानतः विषय आये हैं उनको संक्षेप में नीचे दिया जा रहा है ताकि पाठकों को हर एक भाग के संबंध में ठीक २ जानकारी हो सके: 'जीव' शब्द पर जीव की उत्पत्ति, जीव के संसारी और सिद्ध के भेद से जीव के दो मेद, जीव का लक्षण, हाथी और मच्छर में एक समान जीव है इसका प्रतिपादन, आत्मा संबंधी तमाम विषय दिये हैं। 'जोइसिय' (ज्योतिष) शब्द पर जम्बूद्वीप में रहे हुए चंद्र-सूर्य की संख्या । संसार में एक ही चंद्र व एक ही सूर्य है ऐसा नहीं है। जितने सूर्य व चंद्र में उनकी संख्या, उनकी कितनी पंक्तियां हैं और किस तरह स्थित हैं. चंद्र आदि के भ्रमण का स्वरूप, उनके मंडल, चंद्र से चंद्र का, सूर्य से सूर्य का कितना २ अंतर है यह भी अच्छी तरह प्रतिपादित किया है। ' झाण' (ध्यान ) शब्द पर ध्यान का महत्व, इसके भेद, ध्यान के आसन और ध्यान मोक्ष का कारण है यह अच्छी तरह समझाया है। 'ठिई' (स्थिति) शब्द पर देवता, मनुष्य, तिच, नारकी जीवों की स्थिति समझाई है। इसके सिवाय पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति इन सबकी कितनी २ स्थिति हैं तथा जलचर, स्थलचर, नभचर आदि जीवों की कितनी २ स्थिति हैं इन सब विषयों पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला है। ‘णक्खत्त ' (नक्षत्र) शब्द पर नक्षत्रों की संख्या, इन की कार्यगति, चंद्रनक्षत्रयोग, कौनसा नक्षत्र कितने तारावाला है, नक्षत्रों के देवता, अमावस्या में चंद्रनक्षत्रयोग आदि विषय दिये हैं। ‘णम्मोकार ' ( नमस्कार ) शब्द पर नमस्कार की व्याख्या, नमस्कार के भेद, सिद्धनमस्कार, नमस्कार का क्रम आदि अनेक देखने योग्य विषय दिये हैं। 'णय ' (नय ) शब्द पर नय का लक्षण, सप्तभङ्गी, वस्तु का अनंत धर्मात्मकत्व, नयप्रमाणशुद्धि आदि दिये हैं । द्रव्यार्थिक नय और पर्यायार्थिक नय के मध्य में नैगमादि नयों का अंतर्भाव, नैगमादि ७ मूल नय हैं इन का संग्रह । 'सिद्धसेन दिवाकर ' के कथनानुसार ६ नय, ७०० नय, कौन दर्शन किस नय से उत्पन्न हुआ इस का सुंदर विश्लेषण आदि अनेक विषयों पर सुंदर विवेचन दिया है।
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy