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________________ श्री अभिधान राजेन्द्र कोश और उसके कर्ता । किन से हानि होती है इसका अच्छा विवेचन दिया है । वीतराग का चारित्र न बढ़ता है और न घटता है । आहारशुद्धि ही प्रायः चारित्र का कारण है आदि विषयों पर विस्तृत रूप से वर्णन किया है। 'चेइय' (चैत्य ) शब्द पर चैत्य ( मंदिर ) का अर्थ, प्रतिमा की सिद्धि, चारण मुनिकृत वंदनाधिकार, चैत्य शब्द का अर्थ, ज्ञान नहीं होते हुए भी जो अपने सिद्धान्त का प्रतिपादन करने के लिये जबर्दस्ती ज्ञान अर्थ करते हैं उनका सिद्धान्त व तर्क से युक्तियुक्त खण्डन, चमरकृत वंदन, दैवकृत चैत्यवंदन, सावद्यपदार्थ पर भगवान की अनुमति नहीं होती और मौन रहने से भगवान की अनुमति समझी जाती है। क्योंकि किसी चीज का निषेध नहीं करना अनुमति ही होती है इस पर दृष्टान्त, हिंसा का विचार, द्रव्यस्तव में गुण, जिनपूजन से वैयावृत्य, तीन स्तुति, जिनभवन बनाने में विधि, प्रतिमा बनाने में विधि, प्रतिष्ठाविधि, जिनपूजाविधि, जिनस्नात्रविधि, आभरण के विषय में स्वमत का मंडन, चैत्य विषयक विषयों पर हीरविजयसूरिकृत उत्तर आदि विषयों पर खूब तार्किक रूप से प्रकाश डाला है । चेइयवंदण' (चैत्यवंदन ) शब्द पर तीन प्रकार की पूजा, तीन प्रकार की भावना, चैत्यवंदन, तीन वंदना, तीन या चार स्तुति, जघन्य वंदना, नमस्कार, सिद्धस्तुति, वीरस्तुति आदि विषय प्रतिपादित किये गये हैं । इस तीसरे भाग में जिन २ शब्दों पर कथायें और उपकथायें आगमों में मिलती हैं उनको भी उन शब्दों के साथ २ दे दिया गया है ताकि सब वस्तुएं एक ही स्थान पर मिल जाती हैं। अभिधान राजेन्द्र कोष का चौथा भाग . इस चौथे में भी आभार प्रदर्शन किया है। इस के पश्चात् घण्टापथः नाम से संस्कृत में १६ पृष्ठ की प्रस्तावना लिखी है। उपाध्याय श्री मोहनविजयजीने ग्रन्थ-निर्माण का क्या कारण है इस विषय को लेकर संस्कृत भाषा में १२ श्लोकों का एक अष्टक निर्माण किया है जो यहांपर मुद्रित किया है । यह अभिधान राजेन्द्र का चोथा भाग 'ज' अक्षर से प्रारंभ किया गया है और 'नौर्माल्या' इस शब्द पर इस भाग को समाप्त किया है। इस भाग में १४१४ पृष्ठ हैं। वैसे इस भाग में तीसरे भागके १३६३ पृष्ठ से आगे पृष्ठ नंबर १३६४ से प्रारंभ कर के २७७७ तक की पृष्ठसंख्या दी है। इस भाग में ज, झ, ट, ठ, ड, ढ, ण, त, थ, द, ध, न इन बारह अक्षरों से प्रारंभ
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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