________________
वर्ण एवं जाति विषयक जैन सिद्धांत
321 है। जैन शास्त्रों में स्पष्ट लिखा है कि चारों गतियों में सम्यग्दर्शन की प्राप्ति हो सकती है। इसके लिए उच्च कुल का होना आवश्यक नहीं।
जैन धर्म में जो ग्रन्थ दर्शन, मुनि एवं श्रावक धर्म पर आधारित थे वह मूल सैद्धान्तिक ग्रन्थों की तरह ही जाति व्यवस्था का विरोध करते रहे। वर्ण-व्यवस्था एवं धर्म पर आधारित जनसामान्य के लिए जो चरित या पुराण साहित्य लिखा गया उसमें तत्कालीन जाति व्यवस्था का प्रभाव व समावेश था। यह कहा जा सकता है कि जैन साधकों से भिन्न गृहस्थों के लौकिक जीवन के निर्वाह के लिए अवश्य ही वर्ण-व्यवस्था की तत्कालीन आवश्यकता महसूस हुई होगी जिसके फलस्वरूप मूल जैन धर्म में इस व्यवस्था को स्वीकार्य नहीं किया गया किन्तु गुप्त काल के बाद उसको स्वीकृति प्रदान कर दी गई। इस तरह वैदिक आचारों का जैनीकरण कर दिया गया।
संदर्भ ग्रन्य १. तत्वार्थ सूत्र, सं. मोहनलाल शास्त्री, जबलपुर, १६५३. पृ. ८/१०/ २. वही, पृ. १५०/ ३. वही, पृ. १४७। ४. वही, ३/३७ एवं पदमपुराण ज्ञानपीठ प्रकाशन, बनारस. १६६७.२७/१४/ है वही, पृ.७१/ ६. जयशंकर मिश्र, प्राचीन भारत का सामाजिक इतिहास, दिल्ली, १६६२. पृ१०-१२। ७ लकरण्ड श्रावकाचार श्लोक २८ जबलपर १६१३/ ८. फूलचन्द्र शास्त्री, वर्ण, जाति एवं धर्म, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, बनारस, १६६३ पृ. १००/ ६ गोकलचन्द्र जैन, यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन, अमृतसर १६६७, पृ.१६/ १०. वही। ११ पदमपुराण १/१६६-६७ भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, बनारस. १६६७/ १२. स्वयंभू स्त्रोत, १२/11 १३. महापुराण ३५/४६/ १४. रत्नकरण्ड श्रावकाचार श्लोक ३१. ११ तत्वार्थ सूत्र, ८/४: हरिवंश पुराण १५/२७६ भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, बनारस, १६६६ / १५. देवी प्रसाद मिश्र, जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन, इलाहाबाद, १८ पृ. ३१ १६. फूलचन्द्र शास्त्री, पूर्वोक्त पृ३३ १७. महापुराण, १६/२४३-२४६, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, सं. पन्नालाल जी. १६६६ / १८ यशस्तिलक, उत्तर भाग, पृ. ३७६ सोमदेव सूरी, महावीर जैन ग्रन्थमाला, बनारस, १६७१) १६ पदमपुराण, १/१६-२००/ २०. फूलचन्द्र शास्त्री, पूर्वोक्त, पृ. ३४४/ २१. पदमपुराण, १/२०३। २२. योगेश चन्द्र जैन, जैन श्रमण स्वरूप एवं समीक्षा, मुक्ति प्रकाशन, अलीगंज, पृ. १६८/ २३. महापुराण, ४०/१२) २४. पदमपुराण १६/७६-८४/ २१. पदमपुराण, १/२०१४ २६. जगदीश जैन, जैन आगम साहित्य में समाज, बनारस. १६६५ पृ. २२४॥ २७. महापुराण, ४२/२७-२८/ २८ पदमपुराण ३/२१६-२१८ हरिवंशपुराण ६/३६. महापुराण ३८/६/ २६ यशस्तिलक, पूर्वोक्त, पृ. २३०॥ ३०. महापुराण १६/xt-24६, ४०/७०, ३८/२२, ३६/१६/ ३१. महापुराण, ३८/४-४६/ ३२. फूलचंद्र शास्त्री, पूर्वाक्त, पृ. ४३६ / ३३. वही। ३४. वही, पृ. ४३०। ३१. महापुराण, प्रस्तावना, पृ. ६३। ३६. रत्नकरण्ड श्रावकाचार श्लोक २७।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org