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तनाव : 'कारण एवं निवारण
अध्यात्म द्वारा तनाव मुक्ति
भौतिक विकास के फलस्वरूप उत्पन्न तनावों से त्रस्त मानव आज अध्यात्म की ओर अग्रसर हो रहा है। अब वह जान रहा है कि अध्यात्म अर्थात् धर्म की शरण में ही शांति संभव है आज वैज्ञानिक विकास पर अध्यात्म का नियन्त्रण आवश्यक है । ३२ धर्म में रत रहकर या अध्यात्म साधना द्वारा तनाव मुक्त हुआ जा सकता है। कहा भी गया है 'एको हु धम्मों ताणं अर्थात् एकमात्र धर्म ही तिंराने वाला है । १३
आत्मसन्तोष एवं आत्मजागृति द्वारा तनावमुक्ति
लोभ का त्याग किये बिना संतोष की प्राप्ति नहीं हो सकती है और सन्तोष ही शान्ति का एकमात्र उपाय है। कहा भी गया है - गोधन, गजधन, वाजिधन और रतनधन खान । जब आवे सन्तोषधन सब धन धूरि समान ।। सन्तोष के साथ-साथ आत्मजागृति का होना आवश्यक है। जब तक दृष्टि परिवर्तित नहीं होगी, तनाव मुक्ति संभव नहीं है । जब व्यक्ति अपने भीतर में स्थित हो जायेगा, भीतर छुपी अपार सुख राशि को प्राप्त कर लेगा तब वह तनाव से स्वतः मुक्त हो जायेगा। श्री योगीराज डॉ० बोधायन के अनुसार 'अपनी सारी परेशानी का कारण व्यक्ति स्वयं है । कोई दूसरा दुःख नहीं देता है । हम स्वयं दुःख को ग्रहण करते हैं। हमें स्वयं ही इसे त्याग कर तनाव दूर करने होंगे । ३४ आत्मा में अनन्त शक्ति होती है। सुख-दुःख उसी के द्वारा होते हैं। उत्तराध्ययनसूत्र में कहा भी गया है- आत्मा ही दुःख और सुख को देने वाला है। यही मित्र और शत्रु है। जो आत्मा है, वही विज्ञाता है और जो विज्ञाता है वहीं आत्मा है। सुख की आशा में दूसरे को जानने में रत रहना व्यर्थ है । अपने को जानना ही सुख है। भगवान् महावीर ने भी कहा जो एक आत्मतत्त्व को पहचान लेता है वह सब कुछ जान लेता है। जैन आगमों में तो आत्मा को ही परमात्मा माना गया है।"
अतः तनाव मुक्ति के लिए आत्मशक्ति को जागृत करना होगा। जब आत्मा के भीतर छुपे सुख को व्यक्ति प्राप्त कर लेगा तो तनाव•मुक्त ही नहीं वरन् परम पद अर्थात् मोक्ष को भी प्राप्त हो जायेगा ।
समता द्वारा तनाव मुक्ति
आत्मा-शक्ति को जान लेने के बाद समता का विकास तो स्वत: हो जाता है, क्योंकि समता आत्मा का ही गुण है । समतामय जीवन हो जाने पर तनाव स्वयं दूर भाग जायेंगे। संयमित व्यक्ति में रागद्वेष की भावना नहीं रहती है। उसके लिए सभी प्राणी समान होते हैं । वह किसी को किसी भी प्रकार का दुःख नहीं देना चाहता है। इस प्रकार राग-द्वेष कम हो जाने पर तनाव स्वतः ही खत्म हो जायेगा ।
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मन्दता व मन, वचन, काय के योगों पर नियन्त्रण होना ही ध्यान की सफलता है । मन की एकाग्रता ही ध्यान है । ३९ स्थिर चिन्तन, मन की सुलीन दशा और चित्त की एकाग्रता ही ध्यान है" क्योंकि तनाव का प्रमुख कारण मन है और मन को ध्यान द्वारा ही नियन्त्रित किया जा सकता है । महर्षि पतंजलि ने भी कहा है कि चित्तवृत्ति का निरोध ही योग हैं" और अपने अष्टांग योग में उन्होंने ध्यान को समाधि से पहले स्थान दिया है । ४२ जब ध्यान के द्वारा मन एकाग्र हो जायेगा तो जीवन स्वतः ही तनाव मुक्त हो जायेगा ।
कायोत्सर्ग द्वारा तनाव मुक्ति
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कायोत्सर्ग का प्रयोग तनाव मुक्ति का प्रयोग है कायोत्सर्ग में शरीर की शिथिलता व ममत्व के विसर्जन का अभ्यास किया जाता है, जिससे शरीर सर्वथा हल्का व तनाव रहित हो जाता है। मानसिक बोझ कम हो जाता है कायोत्सर्ग तनाव मुक्ति का अचूक प्रयोग है, जो इसका प्रयोग करता है वह तनाव मुक्त हो जाता है। ऐसा कभी नहीं होता है कि व्यक्ति कायोत्सर्ग करे और तनाव मुक्त न हो । ४३
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चार्ल्सवर्थ और नाथन ने भी कायोत्सर्ग को तनाव मुक्ति का एक महत्त्वपूर्ण प्रयोग बताया है। उन्होंने अपनी पुस्तक 'स्ट्रेस मैनेजमेंट' (Stress Management) में इसके बारे में विस्तृत चर्चा की है । ४४
प्रेक्षाध्यान द्वारा तनाव मुक्ति
तेरापंथ धर्म संघ के दशम आचार्य श्री महाप्रज्ञ ने जैन आगमों का मंथन करके ध्यान की एक अभिनव प्रक्रिया प्रेक्षाध्यान को जन-समूह के सामने प्रकाशित किया है। यह प्रक्रिया उपादान को जानने का अभ्यास है। जो व्यक्ति प्रेक्षाध्यान की प्रक्रिया से गुजरता है वहाँ चेतना को जगाने वाले उपादान का विकास करता है ।४५ तनावों से मुक्ति पाने के लिए वे सरल उपाय बताते है कि आज का जीवन ही तनावग्रस्त है । प्रतिक्षण तनाव उत्पन्न करने वाली घटनाएं घटती रहती हैं। उस तनाव को विसर्जित करने का एक मात्र उपाय है- दीर्घ श्वांस प्रेक्षा । यदि कोई व्यक्ति १५-२० मिनट तक दीर्घ श्वांस प्रेक्षा का प्रयोग करता है तो पूरे दिन भर का तनाव दूर हो जाता है। श्वांस के माध्यम से किस प्रकार तनाव रहित हुआ जा सकता है, इसकी चर्चा चार्ल्सवर्थ और नाथन ने भी की है।" प्रेक्षाध्यान बहिर्जगत् से अन्तर्जगत् की ओर ले जाने वाला प्रयोग है, जो तनाव से ग्रसित व्यक्ति, समाज व राष्ट्र के लिए परमावश्यक है ।
स्वाध्याय और सामायिक (समभाव) द्वारा तनाव मुक्ति
सत्साहित्य का अध्ययन करने से अच्छे विचार मन में आते हैं। अपने हित-अहित का ज्ञान होता है। स्वाध्याय से व्यक्ति स्वयं को पहचान कर तनाव मुक्त हो सकता है। आचार्य श्री हस्तीमल जी के
ध्यान और योग द्वारा तनाव मुक्ति
ध्यान से आत्मिक शांति प्राप्त होती है। विषय कषायों की अनुसार 'जीवन की विषमता और मन की अस्वस्थता से मुक्ति पाने का
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