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________________ ५८ जैन विद्या के आयाम खण्ड-७ . मनोवैज्ञानिक विधि द्वारा तनाव मुक्ति पशुपालन, समाजसेवा आदि में रुचि लेकर अपने तनाव को कम करता मनोवैज्ञानिकों, ने तनाव कम करने के लिए प्रत्यक्ष एवं है। अप्रत्यक्ष दो प्रकार की विधियों का वर्णन किया है । कुछ मनोवैज्ञानिकों (II) पृथक्करण (Withdrawl) - इसके अन्तर्गत व्यक्ति के अनुसार-तनाव कम करने की ये विधियाँ, व्यक्ति को अपने वातावरण अपने आपको उस स्थिति से पृथक कर लेता है जिसके कारण तनाव से बहुत समय तक समायोजन करने या न करने के लिए उपयुक्त हो उत्पन्न होता है । जैसे- जब कोई किसी का मजाक उड़ाता है तो वह सकती हैं पर इनका उद्देश्य उसके कष्ट की भावना को सदैव कम करना उन लोगों से मिलना-जुलना ही बंद कर देता है। है ।२९ ये विधियाँ इस प्रकार हैं (III) प्रत्यावर्तन (Regression) - व्यक्ति अपने तनाव को कम करने के लिए वैसा ही व्यवहार करने लगता है जैसा वह पहले १.प्रत्यक्ष विधियों (Direct methods of tension Re- करता था। जैसे- जब घर में दो बालक हो जाते हैं, तब बड़ा बालक duction)- प्रत्यक्ष विधियों का प्रयोग विशेष रूप से समायोजन की माता-पिता का उतना ही प्रेम पाने के लिए छोटे बच्चे की तरह घुटनों किसी विशेष समस्या के स्थायी समाधान के लिए किया जाता है।३० से चलना, हठ करना आदि क्रियाएँ करने लगता है। ये निम्न हैं (IV) दिवास्वप्न (Day-Dreaming) - तनाव को कम (I) बाधा का विनाश या निवारण (Destroying or करने के लिए व्यक्ति कल्पना जगत् में विचरण करने लगता है। Removing the Barrier)- इसके अन्तर्गत व्यक्ति उस बाधा का (V) आत्मीकरण (Identification) - व्यक्ति इस विधि में निवारण करता है जो उसके उद्देश्य पूर्ति में बाधक बनती है । जैसे एक किसी महान् पुरूष, अभिनेता, राजनीतिज्ञ आदि के साथ एक हो जाने हकलाने वाला व्यक्ति अपने दोष से मुक्त होने के लिए मुंह में पान का अनुभव करता है । जैसे - बालक अपने पिता से व बालिका अपनी डालकर बोलने का प्रयास करके उसमें सफलता प्राप्त करता है। माता से तादात्म्य स्थापित करके उनके कार्यों का अनुकरण कर प्रसन्न (II) अन्य उपाय की खोज (Seeking another path)- होते हैं, जिससे उनका तनाव कम हो जाता है । उद्देश्य प्राप्ति में आने वाली बाधा का निवारण करने में जब व्यक्ति (VI) निर्भरता (Dependence) - तनावों को कम करने असफल हो जाता है, तो और किसी उपाय की खोज करने लगता है के लिए व्यक्ति अपने आपकों किसी दूसरे पर निर्भर कर अपने पूर्ण जिससे उसे सफलता मिल सके । उदाहरणार्थ पेड़ पर लगे फल हाथ जीवन का दायित्व उसे सौंप देता है । जिस प्रकार व्यक्ति महात्माओं के से नहीं तोड़ पाने के कारण बच्चे उसे डंडे से तोड़ लेते हैं। शिष्य बनकर उनके आदेशों व उपदेशों का पालन कर जीवन-यापन (III) अन्य लक्ष्यों का प्रतिस्थापन (Substitution of करते हैं। other Goals)- जब मूल लक्ष्य में ही सफलता प्राप्त नहीं हो पाती (VII) Bilfare F41149 (Rationalisation) - culih है तो व्यक्ति अपना लक्ष्य ही बदल देता है तथा दूसरे लक्ष्य को निर्मित वास्तविक कारण न बताकर ऐसे कारण बताता है जो अस्वीकारें न जायँ कर लेता है । जिस प्रकार बच्चे वर्षा के कारण खेल के मैदान में खेलने और इस प्रकार वह अपने कार्य के औचित्य को सिद्ध करता है, जिस नहीं जा पाते हैं तो घर में ही दूसरा खेल खेलने लगते हैं। प्रकार देर से आफिस आने पर व्यक्ति सही बात न बताकर बस नहीं (IV) व्याख्या व निर्णय (Analysis, Decision)- जब मिलने या ट्रेफिक जाम की बात कहता है। व्यक्ति के सामने दो समान रूप से वांछनीय, पर विरोधी इच्छाएँ होती (VIII) दमन (Repression)- इसमें व्यक्ति तनाव कम हैं तो वह पूर्व अनुभवों के आधार पर सोच-विचार कर अन्त में किसी करने के लिए अपनी इच्छा का दमन कर देता है । एक का चुनाव करने का निर्णय कर लेता है। जिस प्रकार एडवर्ड अष्टम (IX) प्रक्षेपण (Projection)- व्यक्ति अपने दोष को दूसरे के समक्ष वह इंग्लैण्ड का राजा रहे या मिसेज सिम्पसन से विवाह करे, पर आरोपित कर तनाव कम कर लेते हैं । जैसे मिस्त्री द्वारा बनाये गये का प्रश्न उभरा था। तब उन्होंने राजपद का त्याग कर मिसेज सिम्पसन मकान की दीवार यदि ढह जाती है तो वह कहता है कि सीमेन्ट ही से विवाह करने का निर्णय लिया था। खराब था। (X) क्षतिपूर्ति (Compensation) - एक क्षेत्र की कमी २.अप्रत्यक्ष विधियाँ (Indirect Methods of Tension को उसी क्षेत्र में या दूसरे क्षेत्र में पूरा करके व्यक्ति अपने तनाव को कम Reduction) - अप्रत्यक्ष विधियों का प्रयोग केवल दुःखपूर्ण तनाव को कर लेता है। जैसे- पढ़ने-लिखने में कमजोर बालक रात-दिन मेहनत कम करने के लिए किया जाता है। ये विधियाँ निम्न प्रकारेण हैं- करके अच्छा छात्र बन जाता है या खेलकूद में ध्यान देकर उसमें यश (1) शोधन (Sublimation)- जब व्यक्ति की काम प्रवृत्ति तप्त न होने प्राप्त कर लेता है। के कारण उसमें तनाव उत्पन्न करती है तब वह कला, धर्म साहित्य, Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012065
Book TitleBhupendranath Jain Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages306
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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