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तनाव : कारण एवं निवारण
१.मन्द पाचन क्रिया (Digestion Slows) - तनाव के पहुंचाने के लिए हृदय की धड़कन बढ़ जाती है। कारण पाचन क्रिया मन्द होने से रक्त का प्रवाह मांसपेशियों तथा ७.रक्तचाप बढ़ जाता है। मस्तिष्क की ओर बढ़ने लगता है, जो अपच की स्थिति से भी ज्यादा ८.विद्युत रासायनिक एवं स्त्रावों (Harmons) की ऊर्जा अधिक मात्रा खतरनाक है।
में उत्पन्न होने लगती है । लेकिन आवश्यकतानुसार कार्य न होने से
मांसपेशियों में तनाव के रूप में प्रतिबद्ध हो जाती है। २.तीव्र श्वांस (Breathing gets faster)- तनाव की ९. निरन्तर रक्तचाप उच्च रहने से दिल का दौरा या रक्ताघात स्थिति में श्वांस की गति तेज हो जाती है, क्योंकि मांस पेशियों को (Heart attack or Brain Haemorrhage) हो जाता है। अधिक ऑक्सीजन की जरूरत होती है।
१०.श्वांस की गति तीव्र रहने से दमा आदि श्वांस की बिमारियाँ
उत्पन्न होती हैं। ३.हृदय गति का बढ़ना (Hearts speeds up)- तनाव ११.एड्रीनालीन का स्त्राव बन्द होने से, हृदय की गति कम व के कारण हृदय की गति बढ़ जाती है, साथ ही रक्तचाप भी बढ़ता है। रक्तवाहिनियाँ शिथिल हो जाती हैं जिसके परिणाम स्वरूप बेहोशी आ
जाती है। ४.पसीना आना (Perspiration increases)- तनाव तनाव से उत्पन्न शारीरिक स्थितियों के सम्बन्ध में भारतीय की स्थिति में व्यक्ति के शरीर से अधिक मात्रा में पसीना आने लगता है। एवं पाश्चात्य चिन्तकों में जो संख्यात्मक भेद है, वह भेद कोई विशेष
अर्थ नहीं रखता । यदि देखा जाए तो चार्ल्सवर्थ और नाथन तथा ५.मांसपेशियों में कड़ापन (Muscles tense)- तनाव युवाचार्य महाप्रज्ञ द्वारा बतायी गयी उपर्युक्त शारीरिक स्थितियाँ एक दसरे के कारण मांसपेशियां प्रमुख कार्य के लिए कड़ी हो जाती हैं। में समावेशित हो जाती हैं।
६.रासायनिक प्रभाव (Chemicals action)- तनाव की तनाव के कारण स्थिति में रासायनिक पदार्थ रक्त में मिलकर उसका थक्का जमा देते हैं। तनाव उत्पन्न करने में कई तत्त्व काम करते हैं - सफलता,
असफलता, लोभ, क्रोध, द्वेष, ईर्ष्या, अत्यधिक महत्त्वाकांक्षा आदि। ७.शर्करा तथा वसा (Sugars and Fats)- तनाव की पाश्चात्य चिन्तकों ने भी प्रायः तनाव के दो कारण माने हैं१२वजह से रक्त में शर्करा तथा वसा की मात्रा बढ़ जाती है जो कि तीव्र १. आन्तरिक कारण- तनाव के आन्तरिक कारणों में शक्ति उत्पन्न कर उसे कार्य करने के लिए साधन का काम करती है। आन्तरिक प्रवृत्तियां तथा चिन्तन जो हमारे द्वारा अगमित होना चाहते
युवाचार्य महाप्रज्ञ ने भी इस सम्बन्ध में कहा है कि तनाव की हैं, को लिया गया है। निरन्तर स्थिति बने रहने पर शारीरिक गड़बड़ी उत्पन्न हो सकती है। २.बाह्य कारण- तनाव के बाह्य कारणों में वे सभी बातें इससे शरीर में स्थित दबाव तन्त्र निरन्तर सक्रिय रहता है। दबाव तन्त्र आती हैं जो तनाव उत्पन्न करती हैं, वे इस प्रकार हैं - के अन्तर्गत हाइपोथेलेमस (Hypothelemus), पीयूष ग्रन्थि (१) यातायात का अवरूद्ध होना। (Pituitary gland), एड्रीनल ग्रन्थियां (Adrenal glands) और (२) शहर का प्रदूषण या दूषित वातावरण । स्वायत नाड़ी संस्थान का अनुकम्पी विभाग (Sympathetic part of (३) कॉफी का पांचवाँ प्याला। Auto Nerves System) आते हैं । जिसके कारण शरीर में घटित (४) वे दुकानदार, जो जवाब न दें। होने वाली शारीरिक स्थितियाँ निम्न प्रकार की हो जाती हैं।१ -
(५) क्रोधित अधिकारी। १.पाचन क्रिया मन्द या बिल्कुल स्थगित हो जाती है ।
इनके अतिरिक्त भी कुछ बाह्य कारण और हैं, जो इस प्रकार २.लार ग्रन्थियों के कार्य-स्थगन से मुंह सूख जाता है। ३. चयापचय की क्रिया में तेजी आ जाती है।
(१) वे काम, जिनके सम्पन्न होने के आसार नहीं दिखाई देते है। ४. श्वांस तेजी से चलने लगती है तथा हांफने लगते हैं। (२) वे बच्चे, जो बातों पर कभी ध्यान नहीं देते ।
५.यकृत द्वारा संगृहीत शर्करा को अतिरिक्त रूप से रक्त प्रवाह में (३) वे व्यक्ति जो निरन्तर अपनी गलतियों को छुपाने में ही लगे छोड़ दिया जाता है, जिससे वह हाथ-पैर की मांस पेशियों तक पहँच रहते हैं। जाये।
तनाव के कारणों पर प्रकाश डालते हुए डॉ० होम्स ६.शरीर में अधिक रक्त की आवश्यकता वाले भागों तक उसे (Dr. Homes) और डॉ०आर०राहे (Dr.R. Rahe) ने भी जीवन
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