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________________ तनाव : कारण एवं निवारण डॉ० सुधा जैन वर्तमान में मानव भौतिक क्षेत्र में जितना प्रगति की ओर तनाव का पारिभाषिक अर्थ अग्रसर है, आध्यात्मिक क्षेत्र में उतना ही ह्रासोन्मुख है । जीवन के पी०डी० पाठक के अनुसार - तनाव व्यक्ति की शारीरिक प्रत्येक क्षेत्र में आत्मीयता, निर्भयता, सहिष्णुता, सामाजिकता आदि और मनोवैज्ञानिक दशा है । यह उसमें उत्तेजना और असंतुलन उत्पन्न मानवीय गुणों का अकाल सा पड़ता जा रहा है । आज चारों ओर कर देता है एवं उसे परिस्थिति का सामना करने के लिए क्रियाशील अराजकता, लुटपाट, हत्या, हड़ताल, पथराव, आगजनी आदि का बनाता है । एडवर्ड ए० चार्ल्सवर्थ तथा रोनाल्ड जी० नाथन के अनुसार साम्राज्य है, एक ओर वैयक्तिक जीवन विभिन्न कुंठाओं एवं हीन -तनाव के बहुत से अर्थ होते हैं । किन्तु अधिकतर लोग तनाव को भावनाओं से ओत-प्रोत है तो पारिवारिक, सामाजिक और राजनैतिक जीवन की मांगों के रूप में समझते हैं । पारिभाषिक रूप में इन मांगों जीवन में ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, तिरस्कार, प्रतिशोध आदि का बोलवाला को तनाव-उत्पादक (Stressors) कहते हैं। है। अमावस की रात्रि का घनघोर अंधकार जिस प्रकार सर्वत्र छाया रहता है, उसी प्रकार तनावों एवं विषमताओं का प्रभाव सर्वव्यापी होता जा तनाव की परिभाषा रहा है। वर्तमान युग को तनाव युग की संज्ञा दें तो कोई अतिशयोक्ति गेट्स अन्य के अनुसार- 'तनाव, असंतुलन की दशा है, नहीं होगी । मानसिक तनाव से प्रभावित होकर उसका (मानव) जीवन जो प्राणी को अपनी उत्तेजित दशा का अन्त करने हेतु कोई कार्य करने असंतुलित होता जा रहा है । इसलिए वह अपने असंयमित जीवन में के लिए प्रेरित करती है।' शिव नहीं बल्कि शैतान को प्रतिष्ठित कर रहा है। ऐसी परिस्थिति में ड्रेवर के मतानुसार-'तनाव का अर्थ है- संतुलन के नष्ट होने सहज ही प्रश्न उपस्थित होता है कि तनावों से सर्वथा ग्रसित एवं व्यथित की सामान्य भावना और परिस्थिति के किसी अत्यधिक संकटपूर्ण कारक जनजीवन को कैसे तनाव मुक्त कर सहज जीवन जीने का मार्ग दिखाया का सामना करने के लिए व्यवहार में परिवर्तन करने की तत्परता।' जाय। नार्मन टैलेण्ट के शब्दों में प्रतिबल (Stress) से ऐसे तनाव की समस्या के समाधान के लिए पाश्चात्य चिन्तकों ने दबाव का बोध होता है जिससे व्यक्तित्व के पर्याप्त रूप से कार्य करते विशेष रूप से काम किया है। परन्तु भारतीय समकालीन चिन्तकों ने रहने की योग्यता एक प्रकार से संकटग्रस्त हो जाती है।'६ भी भारतीय वाङ्मय में प्राप्त तथ्यों के आधार पर तनाव का विवेचन, रोजन एवं ग्रेगरी के अनुसार- 'प्रतिबल (Stress) से, विस्तृत विश्लेषण प्रारम्भ कर दिया है। उनमें जैन संत एवं चिन्तक युवाचार्य रूप से ऐसी बाह्य तथा आन्तरिक अनिष्टकारी व वंचनकारी स्थितियों का महाप्रज्ञ (वर्तमान में आचार्य) जी का नाम उल्लेखनीय है। उन्होंने जैन बोध होता है, जिनके प्रति व्यक्ति द्वारा समायोजन कर पाना अत्यधिक साहित्य के आधार पर तनाव को अपने ढंग से समझने और समझाने कष्टकर होता है । का प्रयास किया है। युवाचार्य महाप्रज्ञ के अनुसार 'तनाव' का शाब्दिक अर्थ __'जब किसी भी पदार्थ पर पड़ने वाले दाब से पदार्थ के विभिन्न शब्द कोशों में तनाव के पर्यायवाची शब्दों के रूप आकार में परिवर्तन हो जाता है तो उसे तनाव या टान कहा जाता है। में दबाव, दाब, भार, प्रभाव, तंगहाली, तंगी, विपत्ति, कष्ट, तकलीफ, इस प्रकार उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते टान, प्रतिबल, बल, जोर, महत्त्व, बलाघात, बलात्मक,स्वराघात, हैं कि तनाव व्यक्ति के सामान्य सुख-चैन पूर्ण जीवन में पैदा होने वाली प्रयत्न आदि शब्द प्राप्त होते हैं। अंग्रजी में भी तनाव के लिए प्रेशर गड़बड़ी या बेचैनी है। कोई भी परिस्थिति जो हमारी सामान्य जीवन धारा (Pressure), इफेक्ट (Effect), हार्डशिप (Hardship), डिस्ट्रेस को अस्त-व्यस्त कर दे, उसे हम 'तनाव उत्पन्न करने वाली' परिस्थिति (Distress) टेन्शन (Tension) मेकेनिक्स (Mechanics), इम्फेशिस कह सकते हैं। (Emphasis) इम्पोरटेंस (Importance) फोनेटिक्स (Phonetics) इम्पेलिंग फोर्स (Impelling Force) वेट फोर्ट (Weight effort) तनाव से उत्पन्न शारीरिक स्थितियाँ आदि मिलते हैं। पाश्चात्य चिन्तकों चार्ल्सवर्थ और नाथन के अनसार तनाव के परिणामस्वरूप व्यक्ति की निम्नलिखित स्थितियाँ देखी जाती हैं . Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012065
Book TitleBhupendranath Jain Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages306
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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