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मानव व्यक्तित्व का वर्गीकरण
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इसे जैन दर्शन और आधुनिक मनोविज्ञान दोनों ही स्वीकार करते हैं। किसी सीमा तक न्यग्रोध और स्वाति संस्थान के ही रूप हैं। क्रेत्समर जैनों के अनुसार तीर्थङ्कर, चक्रवती, वासुदेव आदि शलकापुरुष के अनुसार मिश्रकाय प्रकार में पुष्टकाय और कृशकाय प्रकारों के (महापुरुष) समचतुरस्र संस्थान वाले होते हैं। इसका अर्थ यह है कि मिश्रित लक्षण पाये जाते हैं। न्यग्रोध और स्वाति संस्थान में भी शरीर इनके प्रभावशाली व्यक्तित्व का एक कारण इनकी शारीरिक संरचना के आधे भाग को पुष्ट और आधे भाग को हीन मानकर मिश्रित क्रेत्समर ने पष्टकाय प्रकार के व्यक्तित्व में साहस, निर्भयता, सफलता, व्यक्तित्व की कल्पना की गयी है। मात्र यही नहीं जैनों ने स्वाति सामाजिक समायोजन आदि गुणों की जो चर्चा की है वे जैनों के संस्थान और न्यग्रोध संस्थान की जो चर्चा की है वह आनुभविक शलाकापुरुषों में भी पाये जाते हैं, इसलिए वे विशिष्ट व्यक्ति माने आधार पर सत्य प्रतीत होती है। जाते हैं।
जैनों का वामन संस्थान भी किसी सीमा तक क्रेत्समर के इस प्रकार दोनों ही परम्परायें एक दूसरे से भिन्न हैं, किन्तु तुंदिल प्रकार के निकट आता है फिर भी दोनों को पूर्णत: समान नहीं दोनों ने सफल व्यक्तित्व के लिए सुडौल और सुगठित शरीर को कहा जा सकता है। यद्यपि तुंदिल प्रकार और वामन संस्थान दोनों में समानरूप से स्वीकार किया है।
व्यक्तित्व को नाटा माना गया है। वामन संस्थान वाला व्यक्ति नाटा तो जैनों का न्यग्रोध परिमण्डल शरीर संस्थान किसी सीमा होता है किन्तु वह मोटा भी हो, यह आवश्यक नहीं। तक क्रेत्समर के कृशकाय प्रकार से तुलनीय हो सकता है। यद्यपि जैनों ने कुब्जक और हुंडक संस्थानों की जो चर्चा की है दोनों में यहाँ एक महत्त्वपूर्ण अन्तर है, वह यह कि कृशकाय प्रकार वह यद्यपि क्रेत्समर के व्यक्तित्व के प्रकारों की चर्चा के साथ तुलनीय का व्यक्ति लम्बा और छरहरे बदन का होता है जबकि न्यग्रोध संस्थान तो नहीं परन्तु आनुभविक आधार पर सत्य है। आनुभविक आधार वाला व्यक्ति लम्बा होकर भी पूर्णतया छरहरे बदन का नहीं होता है। पर कुब्जक और हुंडक संस्थान वाले अनेक व्यक्ति उपलब्ध होते हैं। जैनों के अनुसार न्यग्रोध परिमण्डल वाले व्यक्ति के शरीर का आधुनिक मनोविज्ञान में यदि इनके स्वभावों के सम्बन्ध में विशेष अधोभाग लम्बा और पतला होता है किन्तु उसके शरीर का ऊपरी अध्ययन किया जाय तो हमें अनेक मनोवैज्ञानिक तथ्य प्राप्त हो भाग अर्थात् वक्षस्थल, मुखमण्डल आदि सुगठित होते हैं। मनोवैज्ञानिकों सकते हैं। ने स्वभाव की दृष्टि से इसे अन्तर्मुखी और दूसरों का आलोचक शेल्डन नामक मनोवैज्ञानिक ने शरीर की बनावट के आधार बताया है। जैन परम्परा में न्यग्रोध परिमण्डल संस्थान वाले व्यक्ति के पर व्यक्तित्व को गोलाकार, आयताकार और लम्बाकार रूप में स्वभाव के सम्बन्ध में कोई विशेष सूचना हमें प्राप्त नहीं होती है। वर्गीकृत किया है। उनके आयताकार व्यक्तित्व के वर्ग की तुलना जैन वैसे जैनों का न्यग्रोध परिमण्डल शरीरसंस्थान क्रेत्समर के मिश्रकाय परम्परा के समचतुरस्र संस्थान से कर सकते हैं उन्होंने इस प्रकार के प्रकार के अधिक निकट है।
शरीर संरचना वाले व्यक्तित्व को उद्यमी और साहसी कहा है साथ ही क्रेत्समर का तुंदिल प्रकार का व्यक्ति जैनों के स्वाति उसे बलवान भी माना है। यही गुण हमें जैन परम्परा के समचत्रस्र संस्थान से तुलनीय है। जैनों के अनुसार स्वाति संस्थान से युक्त संस्थान से युक्त व्यक्तित्व में मिलते हैं। व्यक्ति के शरीर का नाभि से नीचे का भाग मोटा और ऊपर का भाग शेल्डन का गोलाकार व्यक्तित्व जैन परम्परा के स्वाति हीन होता है। 'धवला' में इस संस्थान की तुलना वाल्मीक से की संस्थान से तुलनीय माना जा सकता है, क्योंकि स्वाति संस्थान को गयी है। वाल्मीक नीचे से चौड़ा और ऊपर पतला होता है। क्रेत्समर वाल्मीक के आकार के समान बताया गया है, जो शेल्डन के के दिल प्रकार के व्यक्तित्व में भी हमें यही विशेषता मिलती है। गोलाकार व्यक्तित्व के समान माना जा सकता है। किसी सीमा तक अत: दोनों में बहुत कुछ समानता मानी जा सकती है। इस प्रकार की शारीरिक संरचना वाले व्यक्तित्व को जैनों के वामन
आधुनिक मनोविज्ञान इस प्रकार के व्यक्तित्व को मिलनसार, संस्थान वाले व्यक्तित्व के भी निकट माना जा सकता है। सामाजिक और आरामपसन्द कहता है। जैनों के अनुसार भी हम इस शेल्डन ने लम्बाकार शरीर संरचना की जो चर्चा की है वह प्रकार के व्यक्तित्व को बहिर्मुखी कह सकते हैं। बहिर्मुखी का मुख्य जैनों के न्यग्रोध संस्थान के निकट कही जा सकती है किन्तु दोनों में लक्षण जैनों ने बताया है वह है
अन्तर भी है। क्योंकि इस संस्थान वाले व्यक्ति के नाभि के ऊपर का 'सांसारिक भोगों में आनन्द लेना' । क्रेत्समर ने भी ऐसे भाग पुष्ट होता है। लम्बाकार व्यक्तित्व के समरूप कोई भी व्यक्तित्व व्यक्तित्व के सम्बन्ध में सामाजिकता और आनन्दप्रियता को स्वीकार हमें जैन परम्परा में उपलब्ध नहीं होता है। लम्बाकर व्यक्तित्व में किया है। अत: दोनों में बहुत कुछ समानता है।
__ मुख्यरूप से लम्बा और पतला दोनों बातें आ जाती हैं, जबकि जैनों क्रेत्समर ने जिस मिश्र प्रकार की चर्चा की है वस्तुत: वे में शरीर के वर्गीकरण में ऐसा कोई संस्थान नही हैं, जो लम्बा और
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