SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२ २. कृशकाय (Asthenic) ३. तुंदिल (Pyknic) ४. मिश्रकाय (Dysplastic ) १. पुष्टकाय प्रकार का व्यक्तित्व पुष्टकाय प्रकार के व्यक्तित्व वाले मानव का शारीरिक गठन अच्छा होता है उनमें साहस, निर्भयता एवं सफलता की आकांक्षा प्रधान होती है। इसके साथ ही साथ उनमें क्रियाशीलता अधिक पायी जाती है। ये समाज में आवश्यक समायोजन करने में सफल होते हैं और अपना स्थान भी बना लेते हैं। जैन विद्या के आयाम खण्ड- ७ ३. तुंदिल प्रकार का व्यक्तित्व तुंदिल प्रकार का व्यक्तित्व वाले व्यक्ति के शरीर में तोंद की प्रधानता होती है। इस प्रकार के व्यक्तित्व वाले मनुष्य मिलनसार एवं मैत्रीयुक्त होते हैं। ये आरामतलबी और बातचीत में बहुत आनन्दलेने वाले होते हैं। इस कारण तुंदिल प्रकार का व्यक्ति लोकप्रिय बन जाता है। २. कृशकाय प्रकार का व्यक्तित्व कृशकाय प्रकार का व्यक्तित्व वाला व्यक्ति शारीरिक रूप से लम्बा और कुश होता है वह दूसरों का आलोचक होता है। लेकिन ३. लम्बाकारिता और व्यक्तित्व दूसरों द्वारा उसकी आलोचना करने पर उसे बुरा लगता है। ४. मिश्रकाय प्रकार का व्यक्तित्त्व मिश्रकाय प्रकार के व्यक्तित्व वाले लोगों में ऊपर वर्णित तीनों प्रकार गुणों का मिश्रण पाया जाता है क्रेत्समर का यह मत है कि अधिकतर मानसिक रोगियों के शरीर की बनावट मिश्रकाय प्रकार की होती है। अतः इस प्रकार के व्यक्तित्व में सामान्यता की सम्भावना पायी जाती है। शेल्डन ने भी व्यक्ति के शरीर की बनावट के आधार पर व्यक्तित्व का वर्गीकरण किया है। ये निम्न हैं १. गोलाकार २. आयताकार ३. लम्बाकार १. गोलाकारिता और व्यक्तित्व जिस शरीर की बनावट गोलाकार होती है, उसकी पाचन क्रिया बहुत अच्छी होती है और उसके समस्त व्यवहार में आराम पसन्दगी पायी जाती है। इससे प्रभावित व्यक्तित्व में अच्छे भोजन Jain Education International करने की रुचि की प्रधानता, गहरी नींद में सोने की इच्छा, मित्रता बढ़ाने की इच्छा, परिवार के प्रति अधिक लगाव दिखायी पड़ते हैं। शेल्डन ने इस तरह के व्यक्तित्व को विसेरोटोनिया शब्द का प्रयोग किया है। २. आयताकारिता और व्यक्तित्व शेल्डन ने आयताकार शरीरवाले व्यक्ति के व्यक्तित्व को सोमेटोटोनिया शब्द का प्रयोग किया है। इससे प्रभावित व्यक्ति के व्यवहार में शारीरिक शक्ति एवं गति की प्रधानता होती है। इस तरह के व्यक्तित्व वाले लोग व्यायाम के प्रेमी और साहसी होते हैं। ये व्यक्ति अपने जीवन के लक्ष्य के प्रति निष्ठावान रहते हैं और अपने लक्ष्य को छोड़कर किसी अन्य वस्तु से प्रेम नहीं करते हैं। शेल्डन ने लम्बाकारिता शरीर वाले व्यक्तित्व के लिए सेरोब्रोटोनिया शब्द का प्रयोग किया है। इस प्रकार के व्यक्तित्व वाले लोग मानसिक कार्यों में अधिक रुचि लेते हैं अर्थात् अन्य लोगों की तुलना में इनकी बौद्धिक क्षमता अधिक होती है। शारीरिक क्षमता की दृष्टि से इस प्रकार के लोग जल्दी थक जाते हैं। इन्हें एकान्त में रहना अधिक प्रिय है। ऐसे लोग मानसिक कार्यों से अधिक लगे रहते हैं। तथा इनमें थकान भी जल्दी आ जाती है।, उपर्युक्त वर्गीकरण के सम्बन्ध में उल्लेख है कि किसी भी व्यक्ति में शुद्ध रूप से एक ही प्रकार की बनावट नहीं पायी जाती है। बल्कि कुछ ऐसे भी व्यक्ति होते हैं जिनमें तीनों गुण पाये जाते हैं। लेकिन जिस व्यक्ति में जिस प्रकार की बनावट की अधिकता होती हैं उसी आधार पर उसके शरीर की बनावट का निर्धारण किया गया है। जैन दर्शन में शरीर संरचना के आधार पर समचतुरख, न्यग्रोध, स्वाति (सादि), कुब्ज, वामन और हुंडक ऐसे जो छह विभाग किये गये हैं, उनकी क्रेत्समर द्वारा किये गये व्यक्तित्व के चार प्रकार पुष्टकाय, कृशकाय, तुंदिल और मिश्रकाब से तुलना की जा सकती है। जैनों का समचतुरस्र शरीर संस्थान, क्रेत्समर के पुष्टकाय प्रकार से तुलनीय है, क्योंकि दोनों के अनुसार यही व्यक्तित्व का ऐसा प्रकार है, जिसमें शरीर को पूर्णतया सुसंगठित और सुडौल माना गया है। जैनों के अनुसार समचतुरस्त्र संस्थान में शरीर के प्रत्येक अंग अपने समुचित आकार-प्रकार में होते हैं। कोई भी अंग न तो मर्यादा से अधिक लम्बा-चौड़ा होता है और न मोटा और दुबला ही क्रेत्सर ने भी पुष्टकाय प्रकार के यही लक्षण बताये है। सुसंगठित और सुडौल शरीर व्यक्तित्व का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012065
Book TitleBhupendranath Jain Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages306
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy