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मानव व्यक्तित्व का वर्गीकरण
डॉ० त्रिवेणी प्रसाद सिंह
जैन दर्शन में मानव व्यक्तित्व के वर्गीकरण के विभिन्न हुआ होता है और नीचे भाग में सुकुचित होता है, उसी प्रकार जिस मानक प्रचलित रहे हैं। इनमें एक मानक शारीरिक संरचना के आधार संस्थान में नाभि के ऊपर का भाग विस्तार वाला हो और नीचे का पर भी है, हालाँकि शारीरिक संरचना के आधार पर भी मानव भाग हीन अवयव वाला हो उसे न्यग्रोधपरिमण्डल संस्थान कहते हैं। व्यक्तित्व के वर्गीकरण करने की विभिन्न शैलियां प्रचलित हैं, यथा- इसकी पुष्टि अकलंकदेव ने भी की है।२ शरीर की बनावट, शरीर का आकार-प्रकार, लिंग आदि। आधुनिक मनोवैज्ञानिकों में क्रेत्समर और शेल्डन ने शारीरिक संरचना (विशेष ३. सादि संस्थान से युक्त व्यक्तित्व के लक्षण:रूप से शरीर के आकार-प्रकार) को ध्यान में रखकर मानव-व्यक्तित्व जिस संस्थान में नाभि से नीचे का भाग पूर्ण और ऊपर का का वर्गीकरण किया और उस शरीर के आकार-प्रकार का मानव भाग हीन हो, उसे सादि संस्थान कहते हैं। स्वभाव के साथ सह सम्बन्ध खोजने का प्रयत्न किया है। जैन आगम सादि समेल (शाल्मली) वृक्ष को कहते हैं। शाल्मली वृक्ष ग्रन्थों में शारीरिक आधारों पर मानव व्यक्तित्व के वर्गीकरण के तीन का धड़ (तना) जैसा पुष्ट होता है वैसा ऊपर का भाग नही होता। प्रारूप प्रचलित रहे हैं। संहनन, संस्थान और लिंग। यद्यपि जैन दार्शनिकों ने एक मनोवैज्ञानिक के रूप में इन शारीरिक संरचनाओं ४. कुब्ज संस्थान से युक्त व्यक्तित्व के लक्षण का स्वभावगत विशेषताओं के साथ सह-सम्बन्ध को स्पष्ट करने का जिस व्यक्ति के छाती, पीठ आदि अवयव टेढ़े हों लेकिन कोई प्रयत्न नहीं किया, फिर भी वे एक दार्शनिक के रूप में इन हाथ, पैर, सिर, गर्दन आदि अवयव ठीक हों, वह कुब्ज संस्थान से शारीरिक संरचनाओं का आध्यात्मिक विकास के साथ सह-संबंध युक्त व्यक्तित्व वाला है। देखने का प्रयास अवश्य करते हैं। ये जैनों के संस्थान-सिद्धान्त मैं राजवार्तिक में पीठ पर पुद्गगल पिण्डोंवाले अर्थात् कुबड़ापन छ: प्रकार के हैं- समचतुरस्र संस्थान, न्यग्रोधपरिमण्डल संस्थान, वाले व्यक्ति को कुंब्ज संस्थान से अभिहित किया गया है।३ सादि संस्थान, कुब्जसंस्थान, वामन संस्थान और हुंडक संस्थान।
५. वामन संस्थान से युक्त व्यक्तित्व के लक्षण १. समचतुरस्त्र संस्थान से युक्त व्यक्तित्व के लक्षण
जिस व्यक्ति के छाती, पीठ, पेट आदि अवयव पूर्ण हों, यह शब्द सम+चतु:+अस्र से बना है। सम का अर्थ है पर हाथ, पैर आदि छोटे हों, उसे वामन संस्थान कहते हैं। समान, चतुः का अर्थ है चार और अस्र का अर्थ है कोणा पालथी. जैन परम्परा में सभी अंग-उपांगों के छोटा होने वाले व्यक्ति मारकर बैठने पर जिस शरीर के चारों कोण समान हों अर्थात् आसन को वामन संस्थान वाला बताया गया है।
और कपाल का अन्तर, दोनों जानुओं का अन्तर, वाम स्कन्ध और वाम जानु का अन्तर समान हो, उसे समचतुरस्र संस्थान से युक्त ६. हुण्ड संस्थान के युक्त व्यक्तित्व के लक्षण व्यक्ति कहते हैं।
. जिस व्यक्ति के शरीर के समस्त अवयव बेढब हों,वह हंक साथ ही जिस शरीर के सम्पूर्ण अवयव ठीक प्रमाण वाले संस्थान वाला व्यक्ति है। राजवार्तिक में जिस व्यक्ति के सभी अंग और हो, इसे समचतुरस्र संस्थान से युक्त व्यक्तित्व कहते हैं
उपांगों की रचना बेतरतीब, या हुंडक की तरह है उसे हंडक संस्थान दूसरे प्रकार से कह सकते हैं कि ऊपर, नीचे और मध्य में वाला व्यक्ति कहा गया है। इस संस्थान से युक्त व्यक्तित्व का कुशल शिल्पी द्वारा बनाये गये समचक्र की तरह समान रूप से शरीर उदाहरण हमें अष्टावक्र ऋषि में देखने को मिलता है। अवयवों की रचना होना। जैन परम्परा में शलाकापुरुषों की शरीर- आधुनिक मनोवैज्ञानिकों द्वारा शारीरिक संरचना के आधार रचना इसी संस्थान से युक्त होती है।
पर किये गये मानव व्यक्तित्व के वर्गीकरण को हम निम्न प्रकार
प्रस्तुत कर रहे हैं:.. २. न्यग्रोधपरिमण्डल संस्थान से युक्त व्यक्तित्व के लक्षण
क्रेत्समर के अनुसार मानव-व्यक्तित्व के चार प्रकार है। न्यग्रोध वट वृक्ष को कहते हैं। जैसे वट वृक्ष ऊपर फैला १. पुष्टकाय (Atheletic)
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