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भूपजीके साथ बिताये क्षणों कीमधुर स्मृतियाँ
डॉ० कमल जैन* जिन विशिष्ट व्यक्तियों के संपर्क से जीवन। समृद्ध हआ है, जिनकी महक जीवन को निरंतर सुरभित करती रहती है, उन श्रेष्ठ मानवों की इस विशिष्ट परम्परा में आदरणीय श्री बी० एन० जैन जी भी हैं, जिन्हें हम भूप भाईसाहब कहते हैं। आप सफल उद्योगपति, अनेकानेक संस्थाओं के प्रणेता एवं आश्रयदाता, समाजसेवी, जैनधर्मदर्शन के प्रति गहन आस्था रखने वाले एवं मानवीय भावना से ओत-प्रोत हैं। आदर्शों से संपूरित भाईसाहिब का जीवन जन मानस को नई दिशा देने वाला है।
समाजसेवा, स्नेह, करुणा, सद्भावना आदि मानवीय संस्कारों के बीज इन्हें अपने अग्रजों से उत्तराधिकार में मिले हैं। यह इनके अग्रजों की दूर-दृष्टि ही थी जो उन्होंने विद्या की पुण्यस्थली काशी में जैन विद्यामन्दिर 'पार्श्वनाथ शोध संस्थान' की स्थापना करवाई। अपने पूर्वजों से प्राप्त गौरवमयी थाती को इन्होंने अक्षुण्ण रखा है। आपका दृढ़ विश्वास है कि प्राचीन जैन साहित्य की संपदा की सार संभाल न की गई तो वह काल कवलित हो जायेगी। बहुत से अमूल्य ग्रन्थ रत्न जो विस्मृति की धूल से धूसरित एवं उपेक्षित पड़े हैं, उनका उद्घाटन होना चाहिये । उनके संपादन एवं प्रकाशन हेतु आप सदैव प्रयासरत रहते हैं । जैन धर्म एवं दर्शन के अध्ययन के लिये विद्वानों को सामग्री हिन्दी या अंग्रेजी में उपलब्ध हो सके, इसके लिये विद्यार्थियों एवं शोधकर्ताओं को गवेषणात्मक तथा प्रामाणिक शोधग्रंथ लिखने हेतु प्रोत्साहन देते हैं । उन्हें विभिन्न सुविधायें और आर्थिक संबल प्रदान करते हैं । विचारों के आदानप्रदान को बौद्धिक विकास के लिये आवश्यक मानते हुये समय-समय पर विद्वत्वर्ग की गोष्ठियों को आयोजित करवाना भी आपकी विशेषता है। अपनी पारिवारिक, सामाजिक एवं व्यावसायिक व्यस्तताओं के बावजूद आप इन गोष्ठियों में भाग लेते हैं। जहां आपके प्रगतिशील विचार मुखरित हो उठते हैं । आपका ध्येय ऐसी सृजनात्मक शक्ति को जाग्रत करना होता है जिसके द्वारा समाज में सामाजिक और नैतिक दायित्वों के प्रति सजगता उत्पन्न हो सके । युग की आवश्यकताओं के अनुसार आचार-व्योहार में परिवर्तन होना चाहिये, ऐसी आपकी मान्यता है । काल की कसौटी पर चमकने वाला पुरातन भी आपको मान्य है । पुरातन और आधुनिकता का अद्भुत सामञ्जस्य है, आपके व्यक्तित्व में । आपके कर्मठ, दायित्व बोध से परिपूर्ण एवं प्रबन्ध-पट व्यक्तित्व के कारण ही आज पार्श्वनाथ विद्यापीठ इस उन्नति के शिखर पर पहुंचा है। आपकी योजनाबद्ध कार्यप्रणाली में व्यक्ति की मानसिकता के अनुसार कार्य निर्देशन की दृष्टि एवं योजनाओं को कुशलता से कार्यान्वित करवाने में आपकी विशिष्ट क्षमता है । सच तो यह है कि आपके सर्वतोमुखी व्यक्तित्व के बिना विद्यापीठ की जीवन्तता की कल्पना ही नहीं की जा सकती।
वात्सल्य की शीतलता से युक्त आपका व्यक्तित्व अनायास ही आगन्तुक को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है । मुझे और मेरे पतिदेव को जब-जब भाई साहब के सम्पर्क में आने का अवसर मिला है, हम उनके बहुमुखी गरिमा मंडित शालीन व्यक्तित्व से प्रभावित हुये हैं । आपके साथ बिताये हुये भावपूर्ण क्षणों के संस्मरण हमारे हृदय में गहरे उतर गये हैं । १२ दिसम्बर १९९४ में पार्श्वनाथ विद्याश्रम में शंकराचार्य के स्वागत समारोह में आपका आना हुआ, १४ दिसम्बर को मेरे पुत्र का विवाह था, मेरी हार्दिक इच्छा थी कि आप इस समारोह की शोभा बढ़ायें, पर आपके स्वास्थ्य और व्यस्तता को देखते हुये, कुछ असमंजस की स्थिति में थी। पर जब मैने आपको आंमत्रित किया तो अपने सहर्ष स्वीकृति देते हुये कहा कि बहन के घर तो मुझे आना ही है, आपके इन शब्दों में मुझे और मेरे परिवार को कितना प्रफुल्लित किया, उसे शब्दों में नहीं बता सकती। आपका स्नेह और आशीर्वाद मुझे सदैव मिलता रहा है।
निरपेक्ष भाव से अपने स्नेह की सुगन्ध चारों ओर बिखरने वाले इस कर्मयोगी का सहयोग जैन विद्या और पार्श्वनाथ विद्यापीठ से जुड़े हर व्यक्ति को और जैन समाज को मिलता रहे तथा आप स्वस्थ एवं दीर्घायु हों ऐसी, मेरी उस मंगलकारी भगवान से प्रार्थना
*पूर्व प्रवक्ता, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी ।
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