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डॉ० भूपेन्द्रनाथ जैन : एक कर्मठ व्यक्तित्व
मोहनलाल खरीवाल* यह जानकर प्रसन्नता हुई कि पार्श्वनाथ विद्यापीठ अपनी हीरक जयन्ती अप्रैल में मना रहा है। श्रीमान् भपेन्द्रनाथ जी जैन अभिनन्दन ग्रंथ इस शुभ अवसर पर प्रकाशित हो रहा है, यह उन सभी लोगों के लिए संतोषप्रद है, जिन्होंने संस्था में रहकर अपना जीवन बनाया है। इस संस्था की स्थापना का इतिहास भी अनोखा एवं अभूतपूर्व है । प्रज्ञाचक्षु पंडित सुखलालजी के नेतृत्व में पंजाब के स्थानकवासी समाज ने एक ऐसी संस्था की स्थापना की, जिसमें सांप्रदायिकता का कहीं भी नामो निशान नहीं है। आज तक निकले ६० पी-एच०डी० इसके उदाहरण हैं । स्वर्गीय पूज्य हरजसरायजी के बाद इसका संचालन श्रीमान् भूपेन्द्रनाथजी ने अपने हाथ में लिया और कशलता पूर्वक इसका संचालन किया । आर्थिक दृष्टि से इसको संपन्न बनाने में इनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। जबजब भी संस्था आर्थिक अभाव में आई, उन्होंने अपने परिवार एवं मित्रों के सहयोग से उसको पूर्ण करने का भरसक प्रयत्न किया चूंकि यह संस्था किसी भी संप्रदाय से संबंधित नहीं थी, इसलिए अर्थ संग्रह में उन्हें खूब परिश्रम करना पड़ा। मुझे भी उनके साथ एक-दो बार रहने का मौका मिला और पत्र व्यवहार भी रहा । उनकी हर समय यही चिन्ता रहती है कि संस्था का सभी दृष्टियों से कैसे विकास हो ।
पूज्य पंडित दलसुखभाई मालवणिया एवं पूज्य पंडित शान्तिभाई वनमाली सेठ की मेरे प्रति बहुत सहानुभूति रही परन्तु तकनीकी कारषों से मेरा इस संस्था में प्रवेश मिलना संभव नहीं हुआ। फिर भी बीच का रास्ता का निकालकर मुझे एक कार्यकर्ता के रूप में चार वर्ष रखा और मेरे ऊपर सम्पूर्ण प्रेम और सद्भाव रखा । स्वर्गीय पूज्य हरजसरायजी के कार्य को उनके सुपुत्र ने उसी योग्यता से संभाला और संस्था को इस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया कि आज यह विश्वविद्यालय बनने की दहलीज पर खड़ी है। यह श्री भूपेन्द्रनाथ जी की ही योग्यता एवं उनके परिश्रम का फल है कि आज हम पार्श्वनाथ विद्यापीठ की हीरक जयंती मना रहे हैं । स्वर्ण जयंती पर आने का भी मुझे शुभ अवसर मिला था।
असाम्प्रदायिक संस्था को इस स्तर पर लाना एक कठिन ही नहीं, बल्कि असंभव है। जिन कार्यकलापों एवं उद्देश्य से संस्था की स्थापना की, संस्था आज भी उन्हीं पर अडिग है फिर चाहे उस पर कैसी भी मुसीबत आ जाए । वह लोहे के स्तंभ की तरह अडिग है।
मैं इस शुभ अवसर पर श्रीमान् भूपेन्द्रनाथ जी की चिरायु की कामना करता हूँ और ईश्वर से यही प्रार्थना करता हूँ कि उन्हें वह शक्ति प्रदान करे जिससे वे संस्था का संचालन सुचारु रूप से कर सकें।
मेरे हृदय में संस्था के प्रति इतनी श्रद्धा, समर्पण एवं आदरभाव है जिसका मैं वर्णन नहीं कर सकता । मैं एवं मेरा परिवार हमेशा इस संस्था के प्रति पूज्य भाव रखेगा । क्योंकि इस संस्था का मेरे पर बहुत उपकार है ।
___मैं तो लेखक हूँ और न ही विद्वान् । सिर्फ एक एकाउन्टेन्ट हूँ फिर भी संस्था से जुड़े रहने से मुझे बहुत लाभ मिला है। मैं चिर ऋणी हूँ संस्था का, संस्था के संस्थापकों एवं उसके संचालकों का ।
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