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________________ युद्ध और युद्धनीति । + युद्ध लड़े गये। मिथिला की राजकुमारी मल्ली १३ और कौशाम्बी की महारानी मृगावती १४ भी युद्ध का कारण बनीं कालकाचार्य की भगिनी सरस्वती को उज्जयिनी के राजा गर्दभिल्ल ने अपहृत कर अपने अन्तःपुर में रख लिया था, जिसके कारण कालकाचार्य ने ईरान के शाहों के साथ मिलकर, गर्दभिल्ल के साथ युद्ध किया १५ प्रायः एक राजा अपने पड़ोसी राजा पर आक्रमण करने का अवसर खोजता और यदि कोई बहुमूल्य वस्तु उसके पास होती तो उसे प्राप्त करने के लिए अपनी सारी शक्ति लगा देता । उज्जयिनी के राजा प्रद्योत और कांपिल्यपुर के राजा दुर्मुख के बीच एक बहुमूल्य दीप्तिवान महामुकुट को लेकर युद्ध छिड़ गया। इस मुकुट में ऐसी शक्ति थी कि उसे पहनने से राजा दुर्मुख दो मुंहवाला दिखाई देने लगता था। प्रद्योत ने इस मुकुट की माँग की, लेकिन दुर्मुख ने कहा कि यदि प्रद्योत अपना नलगिरि हाथी, अग्निभीरूरथ, महारानी शिवा और लोहजंघ पत्रवाहक १६ देने को तैयार हो तो वह उसे मुकुट दे सकता है। इस पर दोनों में युद्ध हुआ, प्रद्योत की विजय हुई और दुर्मुख बन्दी बना लिया गया। निरयावलिकासूत्र १७ में उल्लेख है कि चम्पा के राजा कूणिक का वैशाली के गणराजा चेटक के साथ सेचनक गन्धहस्ति और अट्ठारह लड़ी के बहुमूल्य हार को लेकर युद्ध हुआ था। उत्तराध्ययनटीका में वर्णन आता है कि राजा नमि का अपने भाई चन्द्रयश के साथ राज्य-प्रधान धवलहस्ति के लिए युद्ध हुआ। कथानुसार राजा नमि का हाथी खम्भा तुड़ाकर भाग गया था, चन्द्रयश ने उसे पकड़ लिया और माँगने पर नहीं दिया। चन्द्रयश ने कहा कि किसी के रत्नों पर उसका नाम नहीं लिखा रहता, जो उन्हें बाहुबल से प्राप्त कर ले वे उसी के हो जाते हैं। Jain Education International १६१ जैन आगम ग्रन्थ आचारांगसूत्र में तीन कारणों से हिंसा करने का उल्लेख है (१) प्रतिकार की भावना से अर्थात् यह सोचकर कि यह मेरे स्वजन आदि की हिंसा करता है, (२) प्रतिशोधवश, अर्थात् इसने मेरे स्वजनों को हिंसा की है, (३) आतंक तथा भयवश अर्थात् अमुक व्यक्ति मेरे स्वजन की हिंसा करेगा इस कारण भावी आतंक की संभावना से हिंसा करता है। २० इसके अतिरिक्त हिंसा के कुछ और कारणों का भी उक्त ग्रन्थ में उल्लेख हुआ है- (१) अपने इस जीवन के लिए, (४) पूजा आदि पाने के लिए, (५) सन्तान आदि के जन्मोत्सव पर, (६) मुत्यु सम्बन्धी कारणों और प्रसंगों पर, (७) मुक्ति की प्रेरणा आदि मिटाने के लिए। १९ आचारांग में कहा गया हैं कि सम्पूर्ण विश्व काम से पीड़ित है तथा स्त्री साक्षात् कामस्वरूप है। अतः कामी पुरूष स्त्रियों को भोग सामग्री मानकर कामवश उत्तेजित होकर अनेक प्रकार की हिंसा करते हैं । २२ स्त्री के निमित्त हुये युद्धों की चर्चा पूर्व में की जा चुकी है। जैन पौराणिक ग्रन्थों में मुख्यतः स्त्री, राज्य, कामना, सर्वोपरिता की भावना, देश नगर आदि में अशान्ति तथा अपमान आदि कारणों से युद्ध होने के उल्लेख मिलते हैं। पद्मपुराण, हरिवंशपुराण तथा पाण्डवपुराण में वर्णित अधिकांश युद्ध स्त्रियों के कारण हुए। पउमचरिय में हनुमान और महेन्द्र के बीच तथा लव-कुश और लक्ष्मण के बीच युद्ध का मुख्य कारण मातृ - अपमान था। कुछ पौराणिक युद्ध स्वाभाविक वैर के कारण हुए, जिनमें सिंहोदरलक्ष्मण २३, कृष्ण-कंस २४ तथा कृष्ण जरासंध २५ के युद्ध विशेष उल्लेखनीय हैं। उक्त साहित्य में युद्धार्थ जिन शस्त्रों का उल्लेख हुआ है, उनका साकार रूप बम, टैंक, राकेट तथा विमानों के रूप में द्रष्टव्य है । यद्यपि प्राचीन युद्ध-प्रणाली की व्यूह रचना एवं नियम आज उतने महत्व के नहीं रहे फिर भी उसका आधार बहुत कुछ परिमार्जित रूप में अब भी प्रयुक्त होता है। प्राचीनकाल में प्राय: सीमाप्रान्त को लेकर (राज्यविस्तार की इच्छा से) राजाओं में युद्ध हुआ करते थे। कभी-कभी विदेशी राजाओं का भी आक्रमण हो जाया करता था। चक्रवर्ती सम्राट बनने की अभिलाषा रखने वाला राजा अपने दलबल सहित दिग्विजय करने के लिए प्रस्थान करते थे और समस्त प्रदेशों पर अपना अधिकार जमा लेते थे। ऋषभदेव के पुत्र भरत की कथा जैनसूत्रों में मिलती है। भरत ने चक्ररत्न की सहायता से संपूर्ण भूखण्ड पर आधिपत्य स्थापित कर चक्रवर्ती पद प्राप्त किया था। १८ कभी-कभी स्वाभिमान की रक्षा के लिए भी युद्ध होते थे, चक्ररत्न के अहंकार से चूर जब भरत ने बाहुबली पर आक्रमण किया तब 'मैं और भरत एक ही पिता के हैं पुत्र ! ऐसे स्वाभिमान के कारण बाहुबली ने भरत के साथ युद्ध किया युद्ध के प्रकार और दृष्टियुद्ध, मल्लयुद्ध तथा खण्डयुद्ध आदि में भरत को परास्त कर अन्त में विरक्ति के कारण दीक्षा ग्रहण कर लिया । १९ गये हैं मानवीय हिंसा का व्यापक और वीभत्स रूप ही युद्ध है। (१) बाह्य युद्ध और (२) आन्तरिक युद्ध । जैनागम ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र में राजा कनकरथ की अत्यधिक राज्यलिप्सा का उदाहरण मिलता है-राजा कनकरथ को यह भय था कि यदि मेरा कोई पुत्र वयस्क हो गया तो संभव है कि वह मुझे सत्ताच्युत करके स्वयं राज्य-सिंहासन पर आसीन हो जाये। किन्तु उस काल में विकलांग पुरुष राज्य सिंहासन का अधिकारी नहीं हो सकता था। अवएव वह अपने प्रत्येक पुत्र को अंगहीन बना देता था। २६ जैनागम ग्रंथ आचारांगसूत्र में बुद्ध के दो प्रकार बतलाये For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012065
Book TitleBhupendranath Jain Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages306
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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