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________________ प्राकृत-भाषा की प्राचीनता एवं सार्वजनीनता 79 के प्राकृत-व्याकरणों की व्याख्या भी उपस्थित की गई है। इस शैली में प्रस्तुत यह कृति संस्कृत के भट्टिकाव्य और लक्षणादर्श एवं आचार्य हेमचन्द्र द्वारा लिखित प्राकृत के "कुमारवालचरियं" से मिलती-जुलती है। मालावार निवासी महाकवि श्रीकण्ठ (16वीं सदी) द्वारा लिखित कृष्ण-कथा से संबंधित सोरिचरित तथा केरल देशवासी महाकवि रामपाणिवाद (18वीं सदी) द्वारा लिखित कृष्णचरित संबंधी 280 पद्य प्रमाण-उसाणिरुद्ध एवं 233 पद्य-प्रमाण कंसवहो नाम की रचनाएं प्रसिद्ध हैं। अनुपलब्ध काव्य रचनाएँ आचार्य हेमचन्द्र कृत काव्यानुशासन में सर्वसेन कृत हरिविजय-काव्य, रावणविजय महाकाव्य तथा साहित्यदर्पणकार विश्वनाथ ने कुवलयाश्वचरित तथा ध्वनि-टीकाकार अभिनव गुप्त ने भट्ट इन्दुराज की एक प्राकृत-कृति के नामोल्लेख कर उनकी बड़ी प्रशंसा की है किन्तु दुर्भाग्य से वे रचनाएं वर्तमान में अनुपलब्ध हैं। मुक्तक-काव्य- (प्रमुख 16 रचनाएँ) प्राकृत के मुक्तक-काव्यों में शकसंवत् के प्रवर्तक महाकवि हाल (सातवाहन, प्रथम सदी) का नाम अग्रगण्य है। ये प्रतिष्ठान (पैठण) के राजा थे। प्रशासन एवं लेखनी दोनों में ही इन्हें प्रौढ़ता प्राप्त थी। कहा जाता है कि इन्होंने लोकप्रचलित पूर्वागत अथवा समकालीन एक करोड़ प्राकृत-पद्यों में से 700 सर्वोत्कृष्ट प्राकृत-गाथाओं का संकलन कर अपनी उक्त गाहासत्तसई अर्थात् गाथासप्तशती को तैयार किया था। इसका महत्व इसी से आंका जा सकता है कि ध्वन्यालोक, तल्लोचन, सरस्वती-कण्ठाभरण एवं काव्यप्रकाश जैसे महनीय ग्रंथों में भी उसकी गाथाओं को आदर्श रूप में उद्धृत किया गया है। महाकवि रुद्रट, वाग्भट्ट, विश्वनाथ, गोवर्धनाचार्य, बाणभट्ट एवं राजशेखर जैसे सभी समीक्षकों ने भी उक्त ग्रंथ की प्रशंसा की है। परवर्ती महाकवियों ने तो इसके अनुकरण पर संस्कृत में आर्यासप्तशती तथा हिन्दी में मतिराम-सतसई, बिहारी-सतसई, बृन्द-सतसई की रचनाएं ही कर डाली। . महाकवि हाल सातवाहन विद्वान कवियों के प्रति अनन्य स्नेहादर का भाव रखते थे। कहा जाता है कि पैशाची-प्राकृत के आद्यकथा-ग्रन्थ-बड्ढकहा के लेखक महाकवि गुणाढ्य तथा कातंत्र-व्याकरण के सधी विद्वान शर्ववर्मा इनके राज-दरबार की शोभा माने जाते थे। आचार्य जयवल्लभसूरि (13वीं-14वीं सदी के आसपास) ने पर्वोक्त गाहासत्तसई के अनुकरण पर वज्जालग्गं नामक ग्रंथ का संकलन किया था। इसमें वज्जा-शैली (अर्थात् समान विषयक गाथाओं का गुच्छक) की 48 वज्जाओं (वृज्याओं) की कुल 794 गाथाएं हैं। संकलन कर्ता ने स्वयं लिखा है कि विविध कवियों के द्वारा विरचित कविताओं में से मैंने मार्मिक गाथाएं चुनकर यहां संग्रहीत की हैं। इसके उद्धरण संस्कृत-कवि रुय्यक, जयरथ, सोमेश्वर, विश्वनाथ, हेमचन्द्र आदि अलंकार-शास्त्रियों की रचनाओं में मिलते हैं। दरिद्रता का वर्णन देखिये कवि ने कितनी मार्मिक शैली में किया है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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