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________________ 17 प्राकत-भाषा की प्राचीनता एवं सार्वजनीनता विद्युतप्रभा ने उस भयभीत नाग को अपनी गोद में छिपा कर सुरक्षित कर लिया। थोड़ी देर में उसकी खोज करते हुए गारुडिक लोग वहां आये। उस कन्या से उस नाग के विषय में पूछा, तो उसने उससे अपने को अनजान बताया। उनके चले जाने पर नाग उसकी गोदी से बाहर निकलकर आया और उसने अपना वास्तविक नागदेव स्वरूप धारण कर कहा-हे कन्ये, तुम्हारी करुणाभावना से मैं बहुत प्रभावित हूँ। अतः मुझसे कोई वरदान मांग लो। कन्या ने स्वयं अपने लिये तो कुछ नहीं मांगा किन्तु अपनी गायों के सुख-सन्तोष के लिये उससे वरदान में मांगा कि इसी रेतीले-प्रदेश को सुन्दर-सुन्दर झरनों वाला तथा हरा-भरा प्रदेश बना दो, जिससे हमारी गायों को सुख साधन मिल सके। देव प्रसन्न होकर उस प्रदेश को हरा-भरा सुन्दर प्रदेश बना देता है और कहता है कि यह प्रदेश निरन्तर तुम्हारे साथ-साथ ही चला करेगा तथा जब तुम अपने घर पहुंचोगी तो तुम इसे छाते के समान कर घर में एक किनारे में रख भी सकोगी। उसी समय उसका नाम भी विद्यतप्रभा से बदलकर आरामशोभा अर्थात् "वाटिका की शोभा धारण करने वाली" घोषित कर वह वहां से विलीन हो जाता है। यह कथानक अभूतपूर्व, अत्यन्त प्रभावक और मन मोहक बन पड़ा है। ऐसा कथानक सम्भवतः अन्यत्र दुर्लभ ही होगा। इसी प्रकार की अन्य रोचक एवं शिक्षा-प्रद कथाओं में पंडित धणवाल-कहा, गचल-कहा. रोहगत्त-कहा, सभमति-कथा, मल्लवादी-कथा, भद्रबाहु-कथा, सिद्धसेन दिवाकर-कथा, नागदत्त-कथा, मेतार्यमुनि-कथा, संग्रामसूर-कथा, चन्द्रलेखा-कथा, मलयसुन्दरी-कथा आदि-आदि प्राकृत कथाएं हैं, जिनके कारण प्राकृत कथा-साहित्य समृद्ध एवं ख्याति को प्राप्त हुआ है। यह तो ज्ञात, उपलब्ध एवं प्रकाशित कथा-साहित्य का कथन है, बाकी अभी तक अप्रकाशित और अज्ञात कितना कथा-साहित्य अज्ञात स्थानों में पड़ा हुआ प्रकाशदान हेतु तरस रहा होगा, उसकी व्यथा-कथा शायद आगामी पीढ़ी सुन सके तभी उसका उद्धार सम्भव है। प्राकत काव्य-साहित्य- (प्रमुख ग्रन्थ लगभग 67 से भी अधिक) __प्राकृत-काव्यों की प्रचुरता देखकर ऐसा विदित होता है कि जैन एवं जैनेतर-कवियों में उनके लेखन में मानो होड़ ही लगी हो। चाहे पौराणिक रामकथा या महाभारत-कथा हो या अन्य, सभी विषयों को लेकर विभिन्न विधाओं में, विभिन्न कालों में उनका प्रणयन किया गया। कुछ काव्य द्वयर्थक, पंचार्थक अथवा सप्तार्थक भी लिखे गये हैं। जैन कवियों के ये अधिकांश काव्य चरित-नामान्त पाये जाते हैं। अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से उनका वर्गीकरण निम्न प्रकार किया जा सकता हैशास्त्रीय महाकाव्य- (कुल ग्रन्थ लगभग 12) सेतुबंध (अपरनाम रावणवहो) महाकाव्य ., यह महाराष्ट्री-प्राकृत का सर्वोत्कृष्ट महाकाव्य माना गया है। इसके 15 आश्वासों (सों) की 1290 गाथाओं में सीता की खोज में राम की वानर-सेना द्वारा श्रीराम के लंका जाने के लये सेतुबंध बनाये जाने का आलंकारिक शैली में वर्णन किया गया है। प्राकृत-साहित्य का निस्सन्देह ही यह गौरव ग्रंथ है। सेतुबंधन-प्रक्रिया में नल एवं नील जैसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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