SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्वर्ण-जयन्ती गौरव-प्रन्थ जिनेश्वर सूरि (11वीं सदी) कृत क्रोधादि कषायों तथा हिंसादि पांच पापों के दुष्फलों का वर्णन करने वाला ग्रंथ-निर्वाणलीलावती, जिनेश्वर सूरि (12वीं सदी) कृत कथाकोष-प्रकरण, जिनचन्द्र सूरि (12वीं सदी) कृत संवेग-भावना का कथाओं के माध्यम से निरूपण करने वाला ग्रंथ-संवेगरंग-शाला. महेश्वरसरि (12वीं सदी) कत णाणपंचमीकहा, जिसमें प्रसंग-प्राप्त एक कथानक-भविष्यदत्त-सार्थवाह के माध्यम से मध्यकालीन वैदेशिक व्यापार तथा उसकी समुद्री-यात्रा की कठिनाइयों का सुन्दर चित्रण किया गया है, वह विशेष महत्वपूर्ण है। देवभद्र अथवा गुणचन्द्र (12वीं सदी) कृत कहारयणकोस, जिसमें सरस एवं रोचक 50 प्राकृत-कथाएं प्रस्तुत की गई हैं। महेन्द्रसूरि (12वीं सदी) कृत महासती नर्मदा-सुन्दरी के सतीत्व का 1750 गाथाओं में निरूपण करने वाला मार्मिक कथा-ग्रंथ-नम्मयासुंदरी कहा, सोमप्रभ सूरि (13वीं सदी) कृत चारित्रिक-निष्ठा जागृत करने हेतु प्रणीत प्रेरक कथाग्रंथ-कुमारवालपडिवोह (कुमारपाल-प्रतिबोध), जिसमें 58 कथाएं वर्णित हैं, प्राकृत-वाङ्मय का गौरव-ग्रंथ माना गया है। नेमिचन्द्रसूरि (12वीं सदी) कृत उपदेशप्रद चरित्रप्रधान 146 कथानक वाला ग्रंथ आख्यानमणिकोष, आचार्य सुमतिसूरि (12वीं सदी) कृत जीवन के प्रशस्त एवं अप्रशस्त पक्षों का उद्घाटन कर उसे सरल, सात्विक एवं चरित्रनिष्ठ बनाने की प्ररेणा प्रदान करने वाले जिनदत्त के आख्यान संबंधी जिनदत्ताख्यान नामक कथाग्रंथ, रत्नशेखर-सूरि (15वीं सदी) कृत सिरिसिरिवाल-कहा, जिसमें चम्पानरेश राजा श्रीपाल का सिद्धचक्रविधान-पूजा के फल-स्वरूप कुष्ठरोग से पूर्ण स्वास्थ्य-लाभ की रोचक कथा वर्णित है और पूर्ण स्वस्थ होने के बाद वही श्रीपाल समुद्री-मार्ग से विदेश-यात्रा करता है तथा उसमें आने वाली दिल दहला देने वाली उसकी कठिनाइयों का मार्मिक चित्रण किया गया है। जिनहर्षसूरि (15वीं सदी) कृत तथा चित्रकूट (वर्तमान चित्तौड़, राजस्थान) में प्रणीत प्रेमकथा काव्य-रयणसेहरणिवकहा (रत्नशेखरनृपकथा) का कथानक इतिहासकारों के अनुसार महाकवि जायसी कृत पद्मावत के कथानक का पूर्वरूप माना गया है। वीरदेव-गणि (14वीं-15वीं सदी के आसपास) कृत महीवाल-कहा, जिसमें उज्जयिनी नरेश नरसिंह के राजकुमार महीपाल का कथानक वर्णित है। उसके पिता ने किसी कारण से रुष्ट होकर महीपाल को देश-निकाला दे दिया। अत: वह समुद्री-मार्ग से कटाहद्वीप जा पहुंचता है। कवि ने उसके साथ घटित अनेक घटनाओं का मार्मिक चित्रण इस ग्रन्थ में किया है। संघतिलकसूरि (15वीं सदी) कृत आरामसोहाकहा (आरामशोभा-कथा) का गद्य-शैली में कथानक बड़ा मनोरम है। इसे प्राकृत-साहित्य का एक लघु उपन्यास माना गया है। इसकी नायिका ब्राह्मण कन्या-विधुत्प्रभा अपनी सौतेली माता द्वारा बड़ी प्रताड़ित रहती है। एक बार वह अपनी गाएं चराने के लिये जंगल में जाती है। उसी समय एक देव उसकी परीक्षा लेने हेतु भयंकर नाग का रूप धारण कर विद्युतप्रभा के सम्मुख आकर व्यथित मन से प्राथना करता है कि गारुडिक लोग मुझे पकड़ने आ रहे हैं। वे मुझे पकड़कर ले जावेंगे। अतः हे पुत्री, उनसे मेरी रक्षा करो। मुझे अपनी गोद में छिपा लो। करुणा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy