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________________ प्राकृत-भाषा की प्राचीनता एवं सार्वजनीनता 75 रयणसेहरणिवकहा - (जिनहर्षसूरि, 15वीं सदी) रचना-स्थल-चित्रकूट-चित्तौड़ महीवालकहा - (वीरदेवगणि, 15वीं सदी) आरामसोहाकहा - (संघतिलकगणि, 15वीं सदी) आदि-आदि। . जैसा कि कहा जा चुका है प्राकृत-जैन-कथा-साहित्य केवल धार्मिक साहित्य ही नहीं है अपितु उसमें अर्थकथा, कामकथा आदि से संबंधित रोचक कथाएं भी लिखी गई हैं। जर्मनी के प्राच्यविद्याविद् डॉ. मोरिस विंटरनीज, ओटो स्टेन, डॉ. कालिदास नाग, डॉ. कालीपद मित्रा आदि ने इन कथाओं का अध्ययन कर उनकी प्रशंसा में समीक्षाएं लिखी हैं तथा बतलाया है कि प्राकृत जैन-कथाओं ने अपनी सरसता एवं रोचकता से युगों-युगों से सारे संसार के साहित्य को प्रभावित, प्रेरित एवं उत्साहित किया है। उनके द्वारा उसे ज्ञान-विज्ञान एवं मनोविज्ञान का अपूर्व विश्वकोष माना गया है। अर्धमागधी प्राकृत के आगम-साहित्य में शीलनिरूपक अनेक प्रासंगिक कथाएं आई हैं और उनके विविध भेद-प्रमेद भी बतलाए गये हैं किन्तु उन्हें यहां स्थानाभाव के कारण प्रस्तुत कर पाना सम्भव नहीं। स्वतंत्र कथाग्रंथ भी इतनी प्रचुर मात्रा में हैं कि उन सभी का परिचय दे पाना भी सम्भव नहीं किन्तु पूर्वोक्त में से कुछ प्रमुख उपलब्ध ग्रंथों का परिचय आवश्यक समझकर उसे कुछ आवश्यक टिप्पणियों के साथ यहां प्रस्तुत किया जा रहा है पालित्त (पादलिप्तसूरि-हाल-सातवाहन-नरेश के समकालीन तथा उनके राज-दरबारी कवि, प्रथम सदी) कृत तरंगवतीकथा, जिसका मूल भाग अनुलब्ध है किन्तु नेमिचन्द्रगणि कृत उसका संक्षित रूप-तरंगलोला उपलब्ध है, जिसकी 1642 गाथाओं में राजगही की सुन्दरी कन्या तरंगवती अपने जीवन की व्यथा-कथा और अनुभव औपन्यासिक-शैली में प्रस्तुत करती है। प्राकृत-साहित्य का इसे प्रथम रोचक उपन्यास माना गया है। वसुदेवहिण्डी को विश्वकथा-साहित्य में सर्वश्रेष्ठ कृति माना गया है। उसमें भ० श्रीकृष्ण के पिता वासुदेव के भारत-भ्रमणों का मार्मिक-शैली में वर्णन किया गया है। प्राच्य भारतीय पर्यटन-विद्या का यह अपूर्वग्रंथ माना गया है। इसके लेखक संघदास-धर्मदासगणि (तीसरी-चौथी सदी) हैं। - आचार्य हरिभद्र (8वीं सदी) कृत पुनर्जन्म-सिद्धान्त का विश्लेषक कथाग्रन्थ समराइच्चकहा महाराष्ट्री-प्राकृत का बड़ा ही रोचक कथा-ग्रंथ है। भाषा-शैली की दृष्टि से प्रस्तुत ग्रंथ का प्राकृत-साहित्य में वही महत्व है, जो संस्कृत-साहित्य में बाणभट्ट कृत कादम्बरी का। अन्तर केवल इतना ही है कि कादम्बरी प्रेमकथा है जबकि समराइच्चकहा एक धर्म-कथा। इसका महानायक है-उज्जैन का राजकुमार समरादित्य। इसके भव-भवान्तरों संबंधी नौ विस्तृत-कथाएं अग्निशर्मा एवं गुणसेन के माध्यम से प्रस्तुत ग्रंथ में चित्रित हैं। आचार्य हरिभद्र कृत दूसरा कथा ग्रंथ धूर्ताख्यान है, जिसमें पुराणों में वर्णित असम्भव एवं अविश्वसनीय बातों का प्रत्याख्यान पांच धूर्तों की कथाओं के माध्यम से किये गये हैं। व्यंग्योपहास्य की इतनी पुष्ट रचना अन्य किसी भाषा में मिलना दुर्लभ है किन्तु इन पांचों धूर्तों का व्यंग्य-प्रहार ध्वंसात्मक नहीं, रचनात्मक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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