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________________ 74 का सूक्ष्मातिसूक्ष्म विवेचन, वैशाली - गणराज्य के करोड़पति श्रीमन्तों की रोचक कथाएं आदि समकालीन राजनीति, अर्थनीति एवं समाजनीतियों की दृष्टि से विशेष महत्वपूर्ण हैं। इस साहित्य के विविध पक्षों पर पर्याप्त मात्रा में उच्चस्तरीय शोधकार्य भी हो चुके हैं तथा अभी-भी वह क्रम चल रहा है। प्राकृत - कथा - साहित्य - ( लगभग 20 से. मी. अधिक प्रमुख ग्रन्थ ) कथाएं मानव मनोविनोद तथा पथ - निर्देशिका के रूप में चित्रित की जाती रही हैं। उनका इतिहास भी उतना ही प्राचीन है, जितनी की मानव सृष्टि । प्राकृत कथाकारों ने विविध दृष्टिकोणों से उनका लेखन किया है। आचार्य उद्योतन सूरि (सातवीं सदी) ने कथाओं के निम्न प्रकार पांच भेद किये हैं(1) सकल-कथा अर्थात् जिस कथा के अन्त में अभीष्ट की प्राप्ति का वर्णन हो! यह कथा विस्तृत होती है। (2) खण्डकथा अर्थात् जिस कथा का मुख्य इतिवृत्त कथा के मध्य या अन्त के समीप में प्रस्तुत किया जाय। यह कथा लघु होती है। (3) उल्लाप-कथा अर्थात् ऐसी साहसिक कथा, जिसमें समुद्र यात्रा अथवा अन्य साहसिक यात्राओं या साहसी कार्यों की चर्चा रहे। इसमें असम्भव या दुर्घट कार्यों का वर्णन किया जाता है। (4) परिहास - कथा - जिसमें हास्य-व्यंग्य की घटनाओं द्वारा मनोरंजन किया जाय। (5) मिश्र कथा जिसमें अनेक तत्वों का मिश्रण कर जनमानस का मनोरंजन किया जाय। रोमांटिक धर्मकथाएं तथा प्रबन्धात्मक रचित कथाएं इसी कथा-श्रेणी में आते हैं। इन सब दृष्टियों से निम्न प्राकृत कथा - साहित्य विशेष महत्वपूर्ण है-(गुणाढ्य, प्रथम सदी) अनुपलब्ध (वि. सं. की तीसरी सदी) वड्ढकहा तरंगवा वसुदेव- हिण्डी समराइच्चकहा धूर्ताख्यान निर्वाण-लीलावती कथाकोषप्रकरण संवेगरंग- शाला णाणपंचमी - कहा कहारयणकोस नम्मयासुंदरी - कहा आख्यानमणिकोश जिनदत्ताख्यान पाइअकहासंगहो कुमारपाल - प्रतिबोध सिरिसिरिवालकहा Jain Education International - स्वर्ण जयन्ती गौरव-ग्रन्थ - I (संघदास - धर्मदास गणी, तीसरी चौथी सदी) (हरिभद्र, 8वीं सदी) ( हरिभद्र, 8वीं सदी) (जिनेश्वरसूरि, 11वीं सदी) (जिनेश्वरसूरि 11वीं सदी) (जिनचन्द्र, 12वीं सदी) ( महेश्वर सूरि, वि. सं. 12वीं सदी) (देवभद्रसूरि, वि. सं. 12वीं सदी) ( महेन्द्रसूरि, 12वीं सदी) ( नेमिचन्द्रसूरि, 12वीं सदी) (सुमतिसूरि, 12वीं सदी) ( अज्ञात, सम्भवत: 13वीं सदी) (सोमप्रभसूरि, 13वीं सदी) ( रत्नशेखर सूरि, 15वीं सदी) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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