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________________ 68 स्वर्ण-जयन्ती गौरव-ग्रन्थ गउडवहो के लेखक महाकवि वाक्पतिराज (8वीं सदी का पूर्वार्द्ध) ने प्राकृत-भाषा को आदिकालीन बतलाकर उसकी श्री-समृद्धि की प्रशंसा कर णवमत्थदंसणसंनिवेस-सिसिराओ बंध-रिद्धीओ। अविरल मणिमो आभुवण बंधमिह णवरं पययम्मि।। अर्थात् सृष्टि के प्रारम्भ से लेकर आज तक प्रचुर मात्रा में नूतन-नूतन अर्थों का दर्शन तथा सुन्दर रचना वाली प्रबंध-सम्पत्ति यदि कहीं है तो वह केवल प्राकृत-काव्यों में ही है। जन-जन के महाकवि एवं आद्य सट्टककार एवं संस्कृत के महाकवि राजशेखर (10वीं सदी) ने तो संस्कृत एवं प्राकृत की तुलना करते हुए अपनी कूर्परमंजरी सट्टक में यह जयघोष तक कर डाला है कि परुसो सक्कय-बंधो पाउअ-बंधो वि होई सुउमारो। पुरिस महिलाणं जेत्तिअमिहंतरं तेत्तिअमिमाणं।। अर्थात् संस्कृत-भाषा कर्कश और प्राकृत-भाषा सुकुमार होती है, पुरुष और महिला में जितना अन्तर होता है, उतना ही अन्तर संस्कृत एवं प्राकृत में होता है। लेकिन महाकवि जयवल्लभ ने अपने 'वज्जालग्ग' काव्य (13-14वीं सदी) में बहुत ही शालीन शब्दों में प्राकृत-भाषा की प्रशंसा करते हए कहा है। ललिए महुरक्खरए जुवईयण वल्लहे स-सिंगारे। संते पाइयकव्वे को सक्कइ सक्कयं पढिउं? अर्थात् जब ललित, मधुर, युवतियों का प्रिय तथा श्रृंगार-रस पूर्ण-प्राकृत-काव्य उपलब्ध है ही, तब संस्कृत-काव्य कौन पढे? प्राकृत-व्याकरण प्राकृत-भाषा सर्वत्र कितनी लोकप्रिय थी, उसकी जानकारी विभिन्न कालों में जो दर्जनों व्याकरण-ग्रंथ लिखे गये उनकी संख्या देखकर आश्चर्य होता है। उसकी जानकारी हेतु यहां तद्विषयक कुछ प्रमुख ग्रंथों की नामावली प्रस्तुत की जा रही हैक्र.सं. व्याकरण-ग्रंथनाम ग्रंथकार 1. प्राकृत लक्षण महर्षि पाणिनी कृत-(अनुपलब्ध) (ई. पू. 6वीं शती के आसपास)। ऐन्द्र प्राकृत व्याकरण (इन्द्र-कृत अनुलब्ध)। सद्दपाहुड (अनुपलब्ध)। कसायपाहुड में उल्लिखित आचार्य गुणधर (ई.पू. प्रथम शती के प्राकृत-व्याकरण ग्रंथ लगभग) (लेखक-नाम अज्ञात एवं अनुपलब्ध)। प्राकृत-लक्षण चण्ड (तीसरी-चौथी सदी) प्रकाशित। प्राकृत-प्रकाश वररुचि (500 ई.) प्रकाशित। लं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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