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प्राकृत-भाषा की प्राचीनता एवं सार्वजनीनता
पुत्तो
प्राकृत-भाषा
अफगानी-भाषा गिरीसो
गीशा कइलासो (कैलाश)
कइलाश महत्तर (श्रेष्ठ)
मेहता
पुटु तात, पिदा (पिता)
तता मादा
नन प्राकृत-भाषा
सोमालिया-भाषा केरिसा (कैसा)
कइसा जलघट
जलहद वणिय
वनिया गिरीसा
गीसा इसी प्रकार प्राकृत-खट्टा (खट्वा)- हिन्दी-खाट का अंग्रेजी में कॉट तथा प्राकृत-चप्प का अंग्रेजी-शेपू जैसे अनेक शब्द खोजने से मिल सकते हैं।
ईराकी शासक का नाम था सद्दाम हुसैन। सद्दाम अर्थात् सत्+दाम अर्थात् जिसने मन एवं इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर ली हो। वस्तुतः उक्त सद्दाम भारत से ही निर्यातित प्राकृत शब्द है। अमेरिकी-ईराकी युद्ध के समय सभी ने पढ़ा ही होगा कि उक्त सद्दाम हुसैन के दो पुत्र थे, जिनके नाम थे उदय एवं कसय। इसी प्रकार खोजने पर विदेशों में अन्य समकक्ष अनेक शब्द मिल सकते हैं। प्राचीन महाकवियों द्वारा प्राकृत-भाषा का महिमा-गान
जैसा कि पूर्व में कहा गया है, अपनी सरल, सहज, स्वाभाविक गुणवत्ता एवं लोकप्रियता के कारण प्राकृत-भाषा ने भारत के बाहर कई एशियाई देशों के भाषिक परिवार पर भी अपना प्रभाव छोड़ा था। यूरोपीय एवं अमेरिकी देशों की भाषा एवं संस्कृति पर भी अपना प्रभाव छोड़ा ही था, तत्तद् देशों की भाषाओं के साथ भी व्युत्पत्ति मूलक तथा तुलनात्मक अध्ययन की आवश्यकता है। भाषा एवं सांस्कृतिक प्रभावों का आदान-प्रदान वस्तुतः प्राचीन काल से ही पर्यटकों के आवागमन के कारणों से हुआ है।
प्राकृत की सरलता, सरसता एवं लोकप्रियता देखकर तथा उसके माधुर्य और समृद्ध शब्द-सम्पदा की प्राकृत के प्राचीनतम महाकवि तथा (शक-संवत् के प्रवर्तक) सम्राट् सातवाहन-हाल (प्रथम सदी ईस्वी) ने अपनी गाहा-सत्तसई (गाथा-सप्तशती) में उसकी प्रशंसा करते हुए उसे अमृत-काव्य "अमिअं पाउअकव्वं" कहा है तथा शृंगार-रस के रसिक होते हुए भी, जो उसे जानते नहीं उसे सुनते नहीं, उनकी इस अज्ञानता पर कवि ने खेद व्यक्त करते हुए कहा है
अमिअं पाउअ कव्वं पढिउं सोउं अ जे ण जाणंति। कामस्स तत्ततत्तिं कुर्णति ते कह ण लज्जति।।
(गाथा-सप्तशती, गाथा-2)
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