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स्वर्ण-जयन्ती गौरव-ग्रन्थ
शोधकार्य : संस्थान में प्राकृत और जैनशास्त्र की विभिन्न विधाओं यथा - जैन-दर्शन, इतिहास, साहित्य, कला आदि विभिन्न विषयों पर पी-एच. डी., डी.लिट् उपाधियों के लिए शोध कार्य कराया जाता है। दो शोध छात्रवृत्तियाँ भी प्रतिवर्ष छात्रों को दी जाती हैं। संस्थान के उत्कृष्ट शोध-प्रबन्धों को संस्थान द्वारा प्रकाशित भी किया जाता है।
काशन : संस्थान प्राकृत भाषा और साहित्य के मूल ग्रंथ, उनकी टीकाएँ, हिन्दी और अंग्रेजी अनुवाद तथा शोध अध्ययन ग्रंथों को प्रकाशित करता है। संस्थान के विद्वानों द्वारा सम्पादित ग्रंथों के अतिरिक्त देश के अन्य विद्वानों द्वारा किये गये कार्यों का भी प्रकाशन किया जाता है। प्रकाशन योग्य ग्रंथों के चयन हेतु सरकार द्वारा एक उच्च स्तरीय प्रकाशन समिति गठित है, जो संस्थान के उद्देश्यों के अनुरूप उत्कृष्ट प्रस्तावों पर विचार कर प्रकाशन हेतु अनुशंसित करती है। अभी तक संस्थान से कुल 77 ग्रंथों का प्रकाशन हो चुका है। इसमें 21 रिसर्च बुलेटिन भी शामिल हैं। इस श्रृंखला में प्राकृत और अपभ्रंश भाषा के मूल साहित्य के प्रकाशन को प्राथमिकता दी जायेगी। व्याख्यानमालाएँ : संस्थान के उद्देश्य के अनुरूप तथा समाज में प्राकृत और जैनशास्त्र के अध्ययन के प्रति रुचि जागृत करने के निमित्त संस्थान में व्याख्यानमालाओं का आयोजन किया जाता है। वैशाली के प्रति स्व. जगदीशचन्द्र माथुर के योगदान का स्मरण करते हुए संस्थान की अधिष्ठात्री परिषद् ने "जगदीशचन्द्र माथुर स्मृति व्याख्यानमाला" प्रारम्भ की है। इसका आयोजन संस्थान में प्रतिवर्ष भगवान महावीर के जन्म दिवस चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को वैशाली महोत्सव के प्रसंग में होता है। संस्थान के पूर्व निदेशक तथा जैन इतिहास के मर्मज्ञ विद्वान् डॉ. गुलाबचन्द्र चौधरी की पुण्य स्मृति में "डॉ. गुलाबचन्द्र चौधरी स्मारक व्याख्यानमाला" प्रारम्भ की गयी है। 2009 ई. में संस्थान के संस्थापक निदेशक डॉ. हीरालाल जैन की स्मृति में "डॉ. हीरालाल जैन स्मृति व्याख्यानमाला" एवं आचार्य कुन्दकुन्द की स्मृति में "आचार्य कुन्दकुन्द व्याख्यानमाला" प्रारंभ की गई हैं, जो क्रमशः 27 नवम्बर, 2009 एवं 23 फरवरी, 2010 को संस्थान में आयोजित हो चुकी हैं। जिनमें डॉ. राजाराम जैन, डॉ. जयकुमार उपाध्ये, डॉ. कमलेश कुमार जैन, डॉ. श्रीरंजन सूरिदेव, डॉ. प्रमोद कुमार सिंह, डॉ. देव नारायण शर्मा, प्रभृति मनीषियों के व्याख्यान सम्पन्न हो चुके हैं। इन व्याख्यानमालाओं के आयोजन से संस्थान की गरिमा बढ़ी है। आगे डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, प्रथम राष्ट्रपति के नाम से भी एक व्याख्यानमाला प्रारम्भ करने का प्रस्ताव है। उन्होंने प्राच्य भाषाओं और उनके साहित्य को संरक्षित करने हेतु राष्ट्र को प्रेरित किया था। संस्थान के विद्वानों एवं अन्य विद्वानों द्वारा एक मासिक व्याख्यानमाला का भी आयोजन किया जाता है। संस्थान में विशिष्ट विद्वानों का भी समय-समय पर आगमन होता रहता है, जिनके ज्ञान एवं अनुभवों का भी लाभ संस्थान के लोगों एवं अन्य स्थानीय लोगों को प्राप्त होता रहता है। पुस्तकालय : उपर्युक्त अध्ययन, शोध आदि विभिन्न प्रकार की अकादमिक गतिविधियों के संचालन हेतु संस्थान में एक आदर्श पुस्तकालय है, जिसमें प्रायः सभी विधाओं का जैन साहित्य, सभी वैदिक दर्शनों का साहित्य, बौद्ध साहित्य, तुलनात्मक अध्ययन विषयक
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