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प्रधान सम्पादकीय
ऐतिहासिक, राजनीतिक तथा धार्मिक दृष्टि से प्राचीन विदेह की राजधानी रही वैशाली नगरी का सातिशय महत्व है। वैशाली के निकटवर्ती कुण्डग्राम वर्तमान वासोकुण्ड में जैन परम्परा के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म हुआ था। डॉ. जगदीशचन्द्र माथुर के सत्प्रयत्न से वैशाली में भगवान महावीर के जन्म दिवस के उपलक्ष्य में 1944 ई. में वैशाली महोत्सव के आयोजन का श्रीगणेश किया गया। तब से अब तक वैशाली महोत्सव का आयोजन प्रतिवर्ष हो रहा है। वैशाली के विकास को दृष्टि में रखकर श्री माथुर ने वैशाली संघ नामक संस्था की स्थापना की थी। संघ ने आठवें वैशाली महोत्सव के अवसर पर 6-7 अप्रैल, 1952 को वैशाली में प्राकृत जैन इन्स्टीच्यूट की स्थापना हेत एक प्रसताव पारित किया था। यह प्रस्ताव बिहार सरकार तथा जैन समाज के गणमान्य लोगों को भेजा गया। तत्पश्चात् बिहार सरकार, दानवीर साहु शान्ति प्रसाद जैन एवं स्थानीय लोगों के सहयोग से 1955 ई. में बिहार सरकार ने प्राकृत जैनशास्त्र और अहिंसा शोध संस्थान की स्थापना की थी। दिनांक 23 अप्रैल, 1956 ई. को भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने वासोकुण्ड ग्राम में संस्थान भवन की आधारशिला रखी थी। शिलान्यास के अवसर पर बिहार के राज्यपाल श्री रंगनाथ रामचन्द्र दिवाकर, शिक्षामंत्री आचार्य बदरीनाथ वर्मा, साहु शान्ति प्रसाद जैन एवं अन्य अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। प्रारम्भ में यह संस्थान मुजफ्फरपुर में किराये के भवन में कार्यरत रहा। संस्थान का अपना भवन निर्मित होने के बाद मार्च, 1965 में संस्थान के सभी कार्य वासोकुण्ड में संचालित होने लगे। - संस्थान की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य प्राकृत भाषा और साहित्य को संरक्षण प्रदान करना तथा जैनविद्या की विभिन्न विधाओं का अध्ययन-अध्यापन, शोध तथा व्यक्ति और समाज में अहिंसा के प्रति जागरूकता उत्पन्न करना है। इन उद्देश्यों के पूर्ति के निमित्त संस्थान में प्राकृत और जैनशास्त्र विषय में स्नातकोत्तर अध्यापन, पी-एच. डी. एवं डी.लिट् उपाधियों हेतु शोध कार्य, प्राकृत भाषा और साहित्य से सम्बन्धित ग्रंथों का प्रकाशन, वैशाली इन्स्टीच्यूट रिसर्च बुलेटिन नाम से द्विभाषिक शोध पत्रिका का प्रकाशन, संगोष्ठियों तथा विशिष्ट व्याख्यान आदि का आयोजन निरन्तर होता है। स्नातकोत्तर अध्यापन : संस्थान में वर्ष 1956 से प्राकृत और जैनशास्त्र विषय में स्नातकोत्तर (एम.ए.) कक्षाओं का नियमित रूप से अध्यापन कार्य संचालित हो रहा है। यह संस्थान बी.आर.ए. बिहार विश्वविद्यालय मुजफ्फरपुर के स्नाकोत्तर प्राकृत एवं जैनशास्त्र विभाग के रूप में कार्य कर रहा है तथा इसका संचालन बिहार ससरकार के मानव संसाधन विकास विभाग द्वारा हो रहा है। यह पूर्णतः बिहार सरकारी संस्थान है। संस्थान में स्नातकोत्तर छात्रों के लिए पाँच छात्रवृत्तियों की भी व्यवस्था है।
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