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प्राकृत-भाषा की प्राचीनता एवं सार्वजनीनता
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अथवा सुधार होने लगता है अथवा यों कहें कि जब उसे व्याकरणिक अनुशासन में बद्ध कर दिया जाता है, तो वही बोली, भाषा अर्थात् 'संस्कृत' कहलाने लगती है। अंग्रेजी भाषा में भी शेक्सपीयर के पूर्व की अभिव्यक्ति का माध्यम अर्थात् बोली भी यदि भारतीय भाषा में कहें तो वह प्राकत ही थी. जबकि उसकी पश्चातवर्ती साहित्यिक अंग्रेजी अथवा परिष्कृत अंग्रेजी-भाषा भारतीय-भाषा में 'संस्कृत' थी। अर्थात् आज की साहित्यिक अंग्रेजी जितनी संस्कृत है, शेक्सपीयर की पूर्ववर्ती अंग्रेजी (स्वाभाविक बोली) प्राकृत थी ऐसा कहा जा सकता है। प्राकृत एवं संस्कृत की पूर्वापरता : जंगल पहले या वाटिका?
बीसवीं सदी के प्रारम्भ में प्राकृत तथा संस्कृत की पूर्वापरता को लेकर प्राच्य-भाषाविदों में विवाद चल रहा था। कुछ लोगों की मान्यता थी कि संस्कृत-भाषा, प्राकृत-भाषा की अपेक्षा प्राचीन है अर्थात् संस्कृत से प्राकृत का विकास हुआ। लेकिन इस प्रसंग में भाषाविदों ने उन विवाद-कर्ताओं से एक प्रश्न पूछा कि "सृष्टि में सबसे पहले जंगलों की उत्पत्ति हुई अथवा वाटिकाओं की?" तो उनसे स्पष्ट उत्तर मिला कि सबसे पहले तो प्राकृतिक-स्वाभाविक होने के कारण जंगलों की उत्पत्ति हुई और बाद में उसके अंशों का संस्कार करके तथा कांट-छांट कर उसे साज-संवार कर सुन्दर वाटिकाएं बना दी गई अर्थात् जंगल प्रकृति की आद्य स्वाभाविक देन है, जबकि वाटिका जंगल के एक हिस्से का मानव के प्रयत्न द्वारा सजाया-संवारा गया परवर्ती एक कृत्रिम सुन्दर हिस्सा। अतः यह स्वतः सिद्ध है कि जंगल आदिकालीन प्राकृत-स्वाभाविक है और बगीचा परवर्तीकालीन परिष्कृत संस्कृत। ठीक यही स्थिति प्राकृत एवं संस्कृत भाषाओं की उत्पत्ति की पूर्वापरता की मानी गई है। संस्कृत शब्द-प्रयोग पाणिनिकालीन है
संस्कृत-शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम महर्षि पाणिनी (ईसा पूर्व छठवीं सदी का उत्तरार्द्ध) ने किया जबकि भाषाविदों ने ऋग्वेद में प्राकृत की प्रचुर मात्रा में शब्दावली खोज ली तथा यह भी बताया कि ऋग्वेद-पूर्व-काल में जन-साधारण द्वारा किसी ऐसी बोली का प्रयोग किया जाता था, जो मानव-सृष्टि के प्रारम्भ से ही चली आ रही थी और उसमें परिस्थितिवश आवश्यक संस्कार कर उसमें ऋग्वेद का प्रणयन किया गया। इसीलिये ऋग्वेद की भाषा को संस्कृत नहीं, बल्कि उसे छान्दस्-भाषा कहा गया। इस छान्दस्-भाषा का विकास ऋग्वेद-पूर्वकालीन बोली अर्थात् प्राकृत से हुआ। पुनः इसी छान्दस् का संस्कार कर उससे लौकिक 'संस्कृत' का उदय हुआ। आचार्य नमिसाधु द्वारा प्रस्तुत प्राकृत शब्द की व्युत्पत्ति
(आचार्य रूद्रट कृत काव्यालंकार के सुप्रसिद्ध टीकाकार -) आचार्य नमिसाधु ने 'प्राकृत' शब्द की व्युत्पत्ति करते हुए लिखा है:- प्राक् पूर्व कृतं प्राकृतम् (2/2 टीका) अर्थात् पहले किया गया अथवा कहा गया। इसका स्पष्ट अर्थ यह है कि "प्राकृत" वह भाषा है, जो मानव-सृष्टि के प्रारम्भिक काल से व्याकरण आदि के संस्कारों से रहित होने पर भी स्वाभाविक रूप से सामान्य जनता के विचारों के आदान-प्रदान का स्वाभाविक
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