________________
58
स्वर्ण-जयन्ती गौरव-ग्रन्थ
जगदीश चन्द्र जी ने अपनी कर्मभूमि बम्बई को बनाया और रामनारायण रुइया कॉलेज में 30 वर्षों से अधिक समय तक हिन्दी, संस्कृत और प्राकृत के प्रोफेसर के रूप में कार्य किया। बाद में आप प्राकृत जैन इन्स्टीच्यूट, वैशाली (बिहार) में प्रोफेसर के पद पर अनेक वर्षों तक रहे। 1952-53 में पेचिंग (चीन) में भाषा विज्ञान और साहित्य विभाग में हिन्दी विषय के प्राध्यापक रहे। अहमदाबाद के एल.डी. प्राच्य विद्या संस्थान के तत्वावधान में आपने प्राकृत भाषा में रचित जैन कथा साहित्य के विकास पर अनेक महत्वपूर्ण भाषण दिये।
1970 में डॉ. जैन ने कील (जर्मनी) में भारतीय विद्या विभाग में आमंत्रित प्रोफेसर के रूप में 4 वर्षों तक कार्य किया। सन् 1980 में वे भारतीय दर्शन पर व्याख्यान देने ब्राजील गये। ज्ञानार्जन और ज्ञान प्रचार-प्रसार हेतु उन्होंने श्रीलंका, चीन, नेपाल, चेकोस्लोवाकिया, डेनमार्क, पूर्वी जर्मनी, फ्रांस, पोलेण्ड, रूस, पश्चिमी जर्मनी, स्वीडन, इंग्लैंड आदि अनेक देशों की यात्रा तथा वहां भारतीय संस्कृति एवं साहित्य के प्रचार-प्रसार के लिये अनेक महत्वपूर्ण कार्य किये।
डॉ. जैन ने भारतीय दर्शन, अर्वाचीन भारत का इतिहास और संस्कृति, हिन्दी साहित्य, प्राकृत भाषा और जैन विचारधारा से संबंधित अनेक शोध लेख एवं 50 से अधिक पुस्तकें हिन्दी और अंग्रेजी भाषा में लिखीं। आपने संस्कृत, प्राकृत, पाली, अपभ्रंश, गुजराती, मराठी आदि की पुस्तकों का अंग्रेजी में अनुवाद भी किया।
"लाइफ इन ऐंशियेंट इंडिया एज डिपिक्टेड इन जैन केनन्स" नामक आपका बहुचर्चित शोध प्रबंध रहा। इसी का हिन्दी रूपांतरण है "जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज"। इसमें जैन श्रमण संस्कृति के क्रमिक विकास का चित्र प्रस्तुत किया गया है। डॉ. जैन द्वारा रचित अनेक पुस्तकें जैसे "प्राकृत साहित्य का इतिहास", "पश्चिमी साहित्य समीक्षा एक सर्वेक्षण" आदि विभिन्न विश्वविद्यालयों द्वारा पाठ्यक्रम में निर्धारित हैं।
समय-समय पर आप अनेक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार / सम्मान पाते रहे थे। अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कार जैसे "सोवियत लैण्ड पुरस्कार","उ. प्र. शासन पुरस्कार", "ज्ञान भारती पुरस्कार","अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा पुरस्कार" आदि से भी आप न जैन गौरव डॉ. जगदीश चन्द्र पर 28 जनवरी 1998 को एक डाक टिकट जारी किया गया था। उनकी जन्म शताब्दी पर कृतज्ञ राष्ट्र श्रद्धांजली अर्पित करता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org