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डाक टिकट से सम्मानित डॉ. स्व. जगदीश चन्द्र जैन
डॉ. कपूरचन्द जैन*
जैन धर्म / दर्शन / संस्कृति / प्राकृत भाषा तथा भारतीय साहित्य के विश्वविश्रुत विद्वान् डॉ. जगदीश चन्द्र जैन का जन्म मुजफ्फरनगर (उ. प्र.) के ग्राम बसेड़ा में सन् 1909 में हुआ था। बाल्यकाल में ही आपको पित-शोक का सामना करना पड़ा, अतः बचा आर्थिक कठिनाइयों में गुजरा। प्रारम्भिक शिक्षा पूरी करने के पश्चात् आपने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में संस्कृत, जैन साहित्य और आयुर्वेद का अध्ययन किया। उस समय देश परतंत्र था और देश को आजाद कराने की भावना प्रत्येक नौजवान को आंदोलित कर रही थी। जगदीश चंद्र जी भला कैसे पीछे रहते? सन् 1929 में अपनी पढ़ाई छोड़ महात्मा गांधी द्वारा चलाये जा रहे सत्याग्रह आंदोलन में कूद पड़े। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के संपर्क में आये और शांतिनिकेतन स्थित विश्वभारती विद्यालय में शोध छात्र के रूप में साहित्य की ओर उन्मुख हुए।
डॉ. जैन ने अपने कैरियर की शुरूआत अजमेर रियासत में एक स्कूल अध्यापक के रूप में की। जब मुख्य अध्यापक ने उनके गांधी टोपी पहनने पर आपत्ति की तब डॉ. जैन ने स्वाभिमान की रक्षा करते हुए नौकरी छोड़ देना ही बेहतर समझा। सन् 1948 में दिल्ली में गांधी जी की हत्या के सिलसिले में चल रहे मुकदमें में डॉ. जैन मुख्य गवाह थे।
कृतज्ञ भारत राष्ट्र ने 28 जनवरी 1998 को डॉ. जगदीश चन्द्र जैन की स्मति में 250 मल्य का डाक टिकिट जारी किया था जिसके बांयी ओर डॉ. जैन का चित्र एवं दायी ओर सिन्धु सभ्यता से प्राप्त दो सीलों को दर्शाया गया है।
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* सर्वोदय, जैन मण्डी, खतौली-251201.
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