________________
56
स्वर्ण जयन्ती गौरव-ग्रन्थ
है वह विवेक जिसके जागृत होने पर मानव कषाय निवृत्ति और समता तथा प्राणीमात्र से प्रेम को आत्मा का सुख मानने लगते हैं। मोह, परिग्रह, आक्रोश और विषाद, आसक्ति और कामना भाव जैन मुनियों के उपदेश को सुनकर तिरोहित हो जाते हैं तथा कष्टसाध्य जीवनवृत्ति तोष, समता और प्राणीजगत में प्रीति-व्यवहार को विकसित करती है। यहां लघुकथाओं के माध्यम से धर्म प्रचार मात्र नहीं है बल्कि लोक जीवन, राष्ट्रीय चेतना और उत्तम चरित्र की प्रवृत्ति को जगाना ही परम लक्ष्य है। डॉ. हीरालाल जैन द्वारा अनुदित यह कथाकोश, प्राकृत सोसायटी, अहमदाबाद से 1969 में प्रकाशित हुआ है। जैन शिलालेख संग्रह ( मा. दिग. जैन ग्रंथमाला
1928)
जैनधर्म का प्रसार भिन्न-भिन्न प्रदेशों में किस-किस रूप में और कब-कब हुआ इसका विधिवत इतिहास उपलब्ध नहीं है। भारतीय इतिहास नहीं है। भारतीय इतिहास व वाङ्गमय में जैन मनीषी और आचार्यों का क्या योगदान था और धर्म की पीठ कहाँ-कहाँ स्थापित थीं इसका प्रामाणिक विवरण पाने के लिए हिन्दी ग्रंथ रत्नाकर कार्यालय मुंबई के स्वत्वाधिकारी श्री नाथूराम प्रेमी के आग्रह पर डॉ. हीरालाल जैन ने 1926 में विभिन्न क्षेत्रों में धर्मपीठ, मंदिर और साधना - केन्द्र पर्वत गुफाओं में उपलब्ध शिलालेखों का अध्ययन, पाठालोचन और अर्थनिवृत्ति द्वारा महत्वपूर्ण किन्तु जैनधर्म के अज्ञात इतिहास से संबंधित सूचनाओं को एकत्र किया और उसका विद्वतापूर्वक संपादन कर प्रकाशनार्थ पांडुलिपि तैयार की। प्रेमीजी ने जैन शिलालेख संग्रह भाग-1 नाम से इसे पुस्तक रूप में प्रकाशित किया। उत्तरकाल में डॉ. जैन के शिष्य और सहयोगी डॉ. विद्याधर जोहरापुर ने इस विधा को आगे बढ़ाया और ज्ञानपीठ द्वारा इस सीरीज के भाग - 3, 4 और 5 प्रकाशित किये गये।
डॉ. हीरालाल जैन की कृतियों का परिचय देने के लिए जो योजना बनायी गयी योगायोग से उनकी सर्वप्रथम 1928 में प्रकाशित रचना जैन शिलालेख संग्रह को सबसे अंत में स्थान मिला। यह कृति डॉ. जैन के पिता मोदी बालचंद जैन को समर्पित है। डॉ. जैन का कोई अन्य ग्रंथ किसी व्यक्ति विशेष को समर्पित नहीं है। उनका संपूर्ण ज्ञान श्रम और उपलब्धि सदैव लोकार्पित रही। लिप्सा और एषणा से असंपृक्त इस सहस्राब्दि के अनूठे प्रज्ञापुरुष ने घोषणा तो लोकहित की भी नहीं की।
(साभार- स्मारिका, डॉ. हीरालाल जैन जन्मशताब्दी समारोह समिति, जबलपुर )
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org