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________________ 52 स्वर्ण जयन्ती गौरव-ग्रन्थ अर्धमागधी, शौरसेनी, महाराष्ट्री आदि सभी भाषाओं को अपभ्रंश कहा जाना चाहिए। डॉ. हीरालाल जैन ने दोहा - पाहुड की प्रस्तावना में संस्कृत-काल और पश्चात युग के मध्यकाल की रचनाओं की भाषा गत विवेचना भरतमुनि से लेकर आचार्य हेमचंद्र तक के भाषा शास्त्रियों के तर्क को सामने रखकर बड़े मनोयोग से की है। जिनवाणी (ज्ञानपीठ-1975) जैन धर्म की संयम सम्बंधी शिक्षाएँ और दार्शनिक सिद्धांतों की मूल उद्भावनाओं की 856 प्राकृत गाथाओं का संकलन-संपादन कर मूल के साथ हिन्दी अनुवाद कर जिनवाणी को पुस्तकारूढ़ किया गया है। वस्तुतः जैन ज्ञान का पुंजीभूत रत्नराशि में से चुनचुनकर जिन अमूल्य मणि- माणिक्यों की माला डॉ. हीरालाल जी ने तैयार की थी वह उनके महाप्रयाण के पश्चात् ही पुस्तक रूप में प्रकाशित हो पायी। ग्रंथ की लगभग आधी गाथाएँ ज्ञान-विज्ञान से सम्बद्ध हैं और शेष गाथाएँ आचार-सम्बंधी हैं। ग्रंथ का प्रारंभ रत्नत्रय से होता है। यह रत्नत्रय ही मोक्ष का मार्ग है। पहले सम्यक दर्शन का स्वरूप बतलाया है। फिर छः द्रव्य, मार्गणा, कर्म सिद्धांत, गुणस्थान, स्याद्वाद और नयवाद के विवेचन के साथ सम्यक् ज्ञान का प्रकरण है। सम्यक् चारित्र्य वाले प्रकरण में श्रावकाचार और साधु आचार का विवेचन है। श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं की प्रस्तुति संक्षिप्त होते हुए भी परिपूर्ण है। मुनिआचार के अंतर्गत पाँच महाव्रत, पाँच समिति, तीन गुप्ति, इन्द्रिजय, तप, दस धर्म, बारह भावना, बाईस परिषहजय, ध्यान और सामायिक- विवरण का प्रस्तुति कौशल दृष्टिगोचर होती है। भगवान महावीर के वचनों पर आधारित अत्यंत प्राचीन और प्रामाणिक गाथाओं के इस संकलन में साररूप में जैन धर्म का सबकुछ मिलता है। गाथाओं का हिन्दी अनुवाद न केवल प्रामाणिक है बल्कि भाषिक विवेचना के साथ स्पष्ट हिन्दी पर्याय और आवश्यकतानुसार विशेषार्थ द्वारा तात्विक भाव भी प्रस्फुटित हुआ है। जैन दर्शन की मौलिक उद्भावनाओं को दर्शन, ज्ञान और चरित्र के अंतर्गत आने वाले सिद्धांतों की वस्तु और प्रस्तुति की ऐसी कला दुर्लभ है। तत्व- समुच्चय ( भ. जै. म. वर्धा 1952 ) तत्व समुच्चय में जैनधर्म के प्राचीन प्राकृत भाषा के ग्रंथों की गाथाओं का संकलन किया गया है। प्राकृत भाषा न समझने वालों के लिए हिन्दी अनुवाद भी दे दिया है । जिज्ञासुओं, स्वाध्यायियों आदि के हितार्थ शब्दकोष, ग्रंथ और ग्रंथकारों का प्रामाणिक परिचय भी डॉ. हीरालाल जैन ने दिया है। इस संकलन में सोलह पाठ हैं जिनमें जैनधर्म से सम्बन्ध रखने वाली नैतिक, आध्यात्मिक व दार्शनिक व्यवस्थाओं की रूपरेखा प्रामाणिक ग्रंथों के आधार पर दी गई है। पाठों में गाथाओं की संख्या लगभग 600 है। आरंभ में ही संकलन की भूमिका है। इस भूमिका में जैनधर्म, साहित्य और सिद्धांत सम्बंधी डॉ. हीरालाल जैन, की महत्वपूर्ण विवेचना है। उनकी मान्यता है कि धर्म का स्वरूप देश और काल के अनुसार सदैव बदलता रहा है। भारत प्रमुख और प्राचीन धर्म तीन है- ब्राह्मण, बौद्ध और जैन। वैदिक धर्म में जीवन का विभाग और समाज रचना का प्रयत्न दिखाई देता है। श्रमण सम्प्रदाय के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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