SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ डॉ. हीरालाल जैन : ग्रंथ परिचय 49 अपभ्रंश चरित काव्य महाकवि पुष्पदंत 'तिसट्ठि-महापुरिस-गुणालंकार' लिखकर अमर हो गये। उनकी अन्य महत्वपूर्ण रचनाओं में 'जसहरचरिउ' और 'णायकुमार चरिउ' उल्लेखनीय हैं। जसहरचरिउ' का संपादन सन् 1931 में डॉ. पी. एल. वैद्य ने किया था। इस रचना की संशोधित आवृत्ति और उसका हिन्दी अनुवाद डॉ. हीरालाल जैन ने 1973 में अपने महाप्रयाण से कुछ ही समय पूर्व किया था। डॉ. जैन की प्रतिभा और प्रस्तुति कौशल से डॉ. वैद्य अभिभूत थे, इसीलिये उन्होंने अपने संस्मरणात्मक लेख में डॉ. जैन को उत्कृष्ट विद्वान निरूपित करते हुए इस दूसरे संस्करण पर संतोष और प्रसन्नता जाहिर की। 'जसहरचरिउ' चार संधियों में विभाजित है। संधि-1 में राजपुर के राजा मारिदत्त द्वारा आकाशगामिनी विद्या प्राप्ति हेतु नरबलि का आयोजन है। संधि-2 में नरबलि के लिए लाये गये जैनमुनि के स्वरूपवान शिष्य अभयरुचि के पूर्वजन्म का वृत्तांत है। संधि-3 में भव-भ्रमण के वृत्तांत से प्राप्त निष्कर्ष कि मारिदत्त ही अभयरुचि का पिता है। संधि-4 रोहित भैरव आदि सभी को वैराग्य होने और दीक्षा लेने का प्रकरण है। इस कथानक को पुष्पदंत ने बड़े काव्य-कौशल के साथ प्रस्तुत किया है। डॉ. जैन ने काव्य में प्रयुक्त भाषा की निवृत्ति, धर्म का लोकहितकारी रूप और कथानक का हृदय-नर्म अनुवाद आकर्षक रूप में किया है। णायकुमार-चरिउ (कारंजा 1933) महाकवि पुष्पदंत ने श्रुतपंचमी कथा के माहात्म्य को प्रगट करने के लिए कामदेव के अवतार नागकुमार का चरित्र, 9 संधियों में वर्णन किया है। मगध जनपद के कनकपुर राज्य में राजा जयंधर का पुत्र श्रीधर हुआ। राजा ने दूसरा विवाह गिरिनगर की राजकुमारी से किया। यथा समय इस रानी को भी एक पुत्र हुआ जो दुर्घटनावश वापी के मार्ग से नागलोक जा पहुंचा और वहीं नागसंस्कृति में पलकर बड़ा हुआ। उसका विवाह मनोहारी किन्नरी से हुआ। कालक्रम से उसे विमाता और सौतेले भाई का द्वेष भाजन बनना पड़ा। इधर नाग कुमार पिता के निर्देश से देशाटन को निकला किन्तु यही देश निकाला उसके यश और पराक्रम में वार्धक्य और वैभव के स्वामी बनने का कारण बना। फिर उसकी भेंट मुनिपिटिस्वव से हुई जिनके मुख से अपने और अपने पितकुल के पूर्वभव की कथा और श्रुतपंचमी व्रत के उपवास के फल का वर्णन सुना। इसी समय नागकुमार के पिता और परिवारजन आ गये और उन्होंने वैराग्य उत्पन्न होने पर नागकुमार को राज्य सौंप दीक्षा ले ली। नागकुमार भी लम्बे समय तक राज्य किया अंत में अपने राज्य पुत्र को सौंप दिगम्बरी दीक्षा ली और मरकर स्वर्गलोक को गया। इस जटिल कथानक ने महाकवि पुष्पदंत ने अनेकानेक वर्णनों, विविध छंदों के प्रयोग और विविध रस और भावपूर्ण चित्रणों से समृद्ध कर रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है। डॉ. हीरालाल जैन ने अपने पांडुलिपियों का अध्ययन और पाठालोचन कर मूल रचना का शुद्ध रूप प्रस्तुत किया है। कथा सौंदर्य में कवि के राज्याश्रय मान्यखेट की साहित्यिक गरिमा, भारत का राजनीतिक मानचित्र चरितनायक की लोकप्रियता आदि तत्वों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy