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________________ Jain Education International प्रशस्ति-पत्र सम्महंसणतुंबं दुबालसंगारयं जिनिंदाणं । वयणमिदं जगे जयदि, धम्मचक्कं तवोधारं ॥ प्राकृत, संस्कृत एवं जैनदर्शन के अधीति विद्वान्, प्राचीन पाण्डुलिपियों के यशस्वी सम्पादक, अनुवादक, जैन-संस्कृति के प्रचारक-प्रसारक, जैन वाङ्मय के अनन्य सेवी, डॉ. ऋषभचन्द्र जैन वैशाली, बिहार के करकमलों में शौरसेनी प्राकृत भाषा एवं साहित्य के क्षेत्र में उनके योगदान को सम्मानित करने के लिए सिद्धान्तचक्रवर्ती परमपूज्य आचार्यश्री विद्यानन्द जी मुनिराज के मंगल आशीर्वाद एवं सत्प्रेरणा से भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली द्वारा प्रवर्तित शौरसेनी प्राकृत भाषा एवं साहित्य विषयक आचार्य विद्यानन्द पुरस्कार वर्ष 2001 ई. इक्यावन हजार रुपयों की सम्मान राशि के साथ सबहुमान समर्पित किया जाता है तथा उन्हें प्राकृत भाषा विशारद् के मानव विरुद से सादर विभूषित किया जाता है। विनीत साहू रमेशचन्द्र जैन प्रबन्धन्यासी भारतीय ज्ञानपीठ दिनांक : 15 जनवरी 2004 गुरुवार वीर निर्वाण संवत् 2530, समारोह स्थल : केन्द्रिय विद्यालय संगठन सभागार, शहीद जीत सिंह मार्ग, नई दिल्ली- 110016 सुरेश चन्द्र जैन मन्त्री कुन्दकुन्द भारती न्यास For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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