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________________ वर्ष 2001 के 'आचार्य विद्यानन्द-पुरस्कार' से सम्मानित मनीषी डॉ. ऋषभचन्द्र जैन का यशस्वी जीवनवृत्त प्राकृत भाषा और जैन साहित्य के प्रचार-प्रसार में रत डॉ. ऋषभचन्द्र जैन का जन्म विद्वानों की जननी बुन्देलखण्ड में हुआ। 2 मार्च 1960 को श्री मल्लिकुमार जैन के यहाँ जन्मे डॉ. ऋषभचन्द्र जैन ने स्याद्वाद महाविद्यालय, वाराणसी से प्राकृत और जैनवर्शन में आचार्य (एम.ए.) उपाधि प्राप्त की। सर हरिसिंह गौड़ विश्वविद्यालय, सागर से संस्कृत विषयक स्नातकोत्तर उपाधि में स्वर्णपदक एवं सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय से 'नियमसार-पाहुड सुत्तस्स समीक्षात्मक-मध्ययनम्' विषय पर विद्यावारिधि (पीएच. डी.) की उपाधि प्राप्त की। सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी में अध्यापन कार्य प्रारम्भ कर वर्तमान में आप राजकीय प्राकृत जैन शास्त्र एवं अहिंसा शोध संस्थान, वैशाली (बिहार) में अध्यापन कार्यरत हैं। आप प्राकृत, संस्कृत, जैनदर्शन की प्राचीन पाण्डुलिपियों के वाचन, संपावन और अनुवाद के कार्यों के अधीति विद्वान् है। | संपादित एवं प्रकाशित रचनाएँ : . श्री जैनसिद्धान्त भवन ग्रन्थावली भाग 1-2-3 . अवधूरिजवो दव्यसंगहो सचित्र जैन रामायण नियमसार . लीलावई कहा प्राकृत-गद्य-पद्य बंध भाग 3 अर्हत्प्रवचन पं. जुगल किशोर मुख्तार स्मृतिग्रन्थ . आत्मकल्याण प्रकाश शोध पत्रिकाओं का संपादन : . जैन सिद्धान्त भास्कर एवं जैन एण्टीक्वेरी . वैशाली इन्स्टीदयट रिसर्च बलेटिन अनेकान्तः एक दृष्टि', 'अनेकान्त और स्याद्वाद', 'द्रव्यसंग्रह एक अध्ययन', 'जैन शिक्षा वर्तमान सन्दर्भ में, "भगवान महावीर और उनके द्वारा प्रतिपादित धर्म', 'लोकव्यवहार में अनेकान्तवाद', 'धार्मिक एवं सामाजिक समस्याओं के समाधान के क्षेत्र में पत्र-पत्रिकाओं की भूमिका', 'प्राकत शब्दों का वेशीकरण', 'प्राकत भाषाओं का वर्ण-विधान', 'जैन श्रमणाचार में समितियाँ', 'जैन प्रत्रकारिता : एक मूल्यांकन 'बारस अणुवेक्खा में वर्णित दशधर्म', "आचार्य कुन्दकुन्दस्य प्राकृतभक्तय', 'आचार्य कुन्तकुन्तस्य प्राकृतान्येषु सम्याज्ञानविमर्श', 'जैन परम्परा में आवक के भेद सहित पचहत्तर से अधिक शोध लेख आपनी लेखनी से प्रसूत हो चुके है। आपने पच्चीस संगोष्ठियों में सहभागी होकर अपने आलेख प्रस्तुत किए हैं। आप अनेक संस्थाओं के पदाधिकारी एवं सवस्य हैं। दो शोधार्थी आपके निर्देशन में शोध कार्यरत हैं। soLE भगवान महावीर की जन्मस्थली कुण्डपुर (विदेह) की एतिहासिकता के विषय में सप्रमाण शोधपूर्ण विस्तृत लेख लिखकर आपने इस विषय में व्याप्त अनेक प्रान्तियों का सशक्त निराकरण किया है। संप्रति राजकीय प्राकृत जनशास्त्र एवं अहिसा शोध संस्थान, वैशाली (बिहार) में स्नातकोत्तर कक्षाओं के अध्यापन के साथ-साथ आप देव कुमार जैन प्राच्य शोध संस्थान, आरा (बिहार) के मानव शोधाधिकारी हैं। शैक्षणिक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक सेवाओं का मूल्यांकन कर डॉ. ऋषभचन्द्र जैन, वैशाली को भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली द्वारा प्रवर्तित शौरसेनी-प्राकृतभाषा एवं साहित्य-विषयक "आचार्य विद्यानन्त पुरस्कार' सिद्धान्तचक्रवर्ती परमपूज्य आचार्यश्री विद्यानन्द जी मुनिराज के पावन सान्निध्य में सबहुमान समर्पित करते हुए हम उनके सुदीर्घ सक्रिय जीवन की मंगल कामना करते हैं। GIR L ... .. ... .. .. P49477171974 ....... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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