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________________ जैन महिलाओं के व्यक्तित्व का चतुर्मुखी विकास 467 अच्छा नजरिया सीखें, अच्छी प्रवृत्तियाँ अपनाएं, सकारात्मक प्रवृत्तियाँ विकसित करें। जिंदगी के युद्ध हमेशा सबसे शक्तिशाली या तेज व्यक्ति नहीं जीतता। वही व्यक्ति देर से या जल्दी जीतता है जो सोचता है कि वह जीत सकता है। हम अपने जीवन की परिस्थितियों को तुरंत ही परिवर्तित नहीं कर सकते हैं किन्तु हम अपने व्यक्तित्व में सहजता और सरलता से सहन करने की प्रवृत्ति और शक्ति विकसित कर सकते हैं। हम देश में फैल रहे नकारात्मक वातावरण को नियंत्रित नहीं कर सकते, परन्तु हम अपने और अपने बच्चों के मस्तिष्क को अपनी इच्छानुसार नियंत्रित कर उसे सकारात्मक ढंग से विकसित कर सकते हैं। 23. आप सतर्क रहें। संवेदनशील बनें। सही चिंतन करें। सही चिंतन करने वाले व्यक्तियों से मिले-जुलें। उनकी अच्छी आदते सीखें। अच्छे कार्यों को बार-बार करके हम अच्छी प्रवृत्तियाँ और अच्छी आदतें सीखें। आप प्रतिदिन सही शब्द बोलें, प्रतिदिन अच्छी पुस्तक पढ़ें, प्रतिदिन अच्छा आडियो टेप सुने, प्रतिदिन अच्छे व्यक्तियों के साथ रहें, प्रतिदिन सही और अच्छा काम करें और प्रतिदिन कुछ क्षण भगवान की प्रार्थना करें। आप कभी किसी को नीचा न दिखायें किसी की आलोचना नहीं करें। हंसी-मजाक में भी आलोचना नहीं करें। ऐसी आलोचना किसी को स्थायी चोट पहुंचा सकती है। नीचा दिखाने से किसी व्यक्ति का स्वाभिमान और आत्मविश्वास कम हो सकता है। जब कभी भी अवसर मिले अन्य व्यक्तियों की प्रशंसा करें। अपने से छोटे को बेहतर काम करने के लिए प्रेरित एवं प्रोत्साहित करें। प्रोत्साहन ऑक्सीजन की भांति उपयोगी होता है। प्रोत्साहन से व्यक्ति अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हैं। 24. अपने व्यक्तित्व को विकसित करें। अपने भीतर छुपे नेतृत्व के गुणों को उभारें। अपने व्यक्तित्व में विजयी होने का नजरिया (Winning Attitude) विकसित करें। अपने व्यक्तित्व में कुशलता एवं प्रभावी गुणों की स्थापना करें। अपने व्यक्तित्व के मूल्यांकन में वृद्धि करें। अपनी विशेष योग्यता की पहचान कर उसे विकसित करें। स्वयं को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करें। ऊँचा उठाने के लिए नई-नई जानकारी प्राप्त करें। 25. आप सदैव यह स्मरण रखें कि विभिन्न बाहरी साधनों को अपनाकर आप अपने चेहरे की सुंदरता में थोड़ी-सी ही वृद्धि कर सकती हैं परन्तु आप अपनी दुर्भावनाओं और अपनी दुष्प्रवृत्तियों को नियमित एवं नियंत्रित कर अपने व्यक्तित्व की सुन्दरता में चतुर्मुखी वृद्धि कर सकती हैं। हमारे जीवन में अल्पताएं, क्षुद्रताएं और दुष्प्रवृत्त्यिाँ आकर हमें सफल नहीं होने देती हैं और हमें आगे बढ़ने से रोक देती हैं। हमें महान नहीं बनने देती हैं। इन्हीं अल्पताओं और क्षुद्रताओं के कारण हम दूसरों की अनावश्यक आलोचना करते हैं। इस आलोचना के कारण हम सफलता के पथ से पतित हो जाते हैं। दुष्प्रवृत्तियाँ हमारे व्यक्तित्व के विकास एवं सफलता के लिए बाधक और अहितकर होती हैं। दुष्प्रवृत्तियों का प्रभाव सर्वप्रथम हमारे ऊपर, हमारे बच्चों और परिवार के सदस्यों के ऊपर एवं इसके पश्चात् हमारे समाज के ऊपर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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