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स्वर्ण-जयन्ती गौरव-ग्रन्थ
संदर्भ में निम्नांकित श्लोक, जिसका भावार्थ है कि दस उपाध्यायों से एक आचार्य, सौ आचार्यों से एक पिता तथा हजार पिताओं से एक माता श्रेष्ठ है, उल्लेखनीय है कि:
उपाध्यायान्दशाचार्यः आचार्याणां शतं पिता।
सहस्रांस्तु पितन माता, गौरवेणातिरिच्यते। 19. परम पूज्य विद्यासागर जी ने अपने सुप्रसिद्ध हिन्दी महाकाव्य मूकमाटी में एवं पूज्य
क्षमासागर जी ने अपनी पुस्तक आत्मान्वेषी में माँ का जीवंत तथा आदर्श चित्रण किया है। उन्होंने माँ को विश्व प्रसिद्ध एवं विश्व की अनेक भाषाओं में अनुवादित "माँ" उपन्यास के रचयिता गोर्की से भी अधिक ऊँचाई दी है। बाल ब्रह्मचारी दिगंबर संत द्वारा मातृत्व के सर्वोत्कृष्ट लक्ष्य का ऐसा विवेचन निश्चित ही अत्यधिक सराहनीय है:
माँ की गोद में बालक हो।
माँ उसे दूध पिला रही हो।। 20. पूज्य ज्ञानसागर जी ने बुन्देलखण्ड के ग्रामीण क्षेत्र की निर्धन युवा प्रतिभाओं की
पहचान की। उन्होंने ऐसी प्रतिभाओं एवं उनके परिवार का विश्वास अर्जित किया और हमें ऐसी प्रतिभाओं को उच्च शिक्षा प्रदान करने का अवसर दिया। नारी शिक्षा के क्षेत्र में उनकी यह व्यावहारिक एवं प्रभावी भूमिका अत्यधिक सराहनीय और
अनुकरणीय है। 21. इस आलेख के माध्यम से प्रत्येक छोटी बहिन, बहू एवं बेटी से मेरा विनम्र आग्रह
है कि हम ज्ञान आधारित समाज के सक्रिय एवं प्रभावी अंग बनें। लगातार कुछ नया करें। सदैव रचनात्मक कार्य करें। नई परिकल्पना करें। नई खोज करें। नई परिकल्पना और नई खोज को मिलाकर कुछ नया गढ़ने का प्रयास करें। घिसे पिटे विचारों को नया स्वरूप दें। पुराने विचारों को नए ढंग से लागू करें। अच्छे परिवर्तनों और नई प्रक्रियाओं को स्वीकार करने के लिए सदैव तत्पर रहें। प्रत्येक क्षण नई संभावना की खोज करें। अपने नजरिए में लोच रखें। अच्छी बात का आनन्द उठायें। भूल को सुधारें। हम किसी वस्तु या घटना को भले ही साधारण व्यक्ति की भांति देखें किन्तु उसपर विशिष्ट व्यक्ति की भांति सोंचे। सभी स्तरों पर निरंतर नूतन तरीका अपनाएं। नित नवीन करने की ललक रखें। नई कार्य संस्कृति विकसित करें। कुशाग्र बुद्धि एवं रचनात्मक मनोवृत्ति वाले युवक/युवतियों को सामने लाएं। उनके विचारों को व्यावहारिक स्वरूप दें। नए विचारों की प्रतिस्पर्धा विकसित करें। ऐसी प्रतिस्पर्धा को
संरक्षण और संवर्द्धन दें। नए विचार और सोच को पुरस्कृत और प्रोत्साहित करें। 22. आप अपने व्यक्तित्व में अच्छा नजरिया और सकारात्मक प्रवृत्ति विकसित करें।
तकनीकी प्रशिक्षण के कारण केवल 15 प्रतिशत सफलता मिलती है। शेष 85 प्रतिशत सफलता अच्छे व्यक्तित्व के कारण मिलती है और अच्छे व्यक्तित्व का मूलभूत गुण अच्छा नजरिया है। अच्छी और सकारात्मक प्रवृत्तियाँ हैं। अतः आप
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