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________________ जैन महिलाओं के व्यक्तित्व का चतुर्मुखी विकास 465 कुछ वर्षों के लिए संतुष्ट करते हैं। किन्तु ज्ञान दान देकर उसे पूरे जीवन के लिए संतुष्ट करते हैं। ज्ञान दान प्राण दान से भी ऊँचा स्थान रखता है। शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने से व्यक्ति को एक निश्चित समय सीमा तक ही सुख और संतोष प्राप्त हो पाता है। ऐसा सुख एक निश्चित अवधि तक ही प्रभावी होता है किन्तु ज्ञान पाकर वह पूरे जीवन भर सुख और संतोष प्राप्त करता है। अपने परिवार को और अपने परिवार की अनेक पीढ़ियों को संतोष प्रदान करता है। ज्ञानदान से व्यक्ति के कष्ट एक घण्टे के लिए नहीं, एक दिन के लिए नहीं, एक वर्ष के लिए नहीं किन्तु पूरे जीवन के लिए दूर हो जाते हैं। अतः हम आज यह शपथ लें कि अपने परिवार, अपने संबंधियों और अपने समाज के सदस्यों को सदैव ज्ञानदान देने का प्रयास करें। 16. इस आलेख के प्रत्येक पाठक एवं विशेषतः प्रत्येक छोटी बहिन, बहू एवं बेटी से मेरा व्यक्तिगत आग्रह है कि:> आप राष्ट्रीय समाचार पत्रों को प्रतिदन पलटिए, पढ़ने का प्रयास कीजिए और रविवार को कम से कम एक राष्ट्रीय समाचार-पत्र अवश्य पढ़िए। भारत सरकार की संस्था राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् (एन. सी.ई.आर.टी.) द्वारा पहली से बारहवीं कक्षा तक की अधिकांश पाठ्य पुस्तकें हिन्दी तथा अंग्रेजी में प्रकाशित की गई है। इन पाठ्य पुस्तकों में प्रत्येक कक्षा के छात्र के स्तर की दृष्टि से न्यूनतम अपेक्षित ज्ञान, उपलब्धियों एवं जीवन मूल्यों का समावेश वैज्ञानिक ढंग से किया गया है। जब भी आपको समय मिले। आप इन पुस्तकों को पढ़ें। हिन्दी भाषा तथा अंग्रेजी भाषा की पुस्तकों को एक साथ रखकर पढ़ें। ऐसा करने से आपकी अंग्रेजी भाषा का ज्ञान बेहतर होगा। आप भाषा के चारों कौशल-सुनना, बोलना, पढ़ना और लिखना- विकसित करें। अपने उच्चारण पर विशेष ध्यान दें। आपका उच्चारण जितना स्पष्ट होगा, आपका लेखन और प्रस्तुतीकरण उतना ही शुद्ध और प्रभावी होगा। > अपने विषय से संबंधित एक राष्ट्रीय तथा एक अंतर्राष्ट्रीय मासिक पत्रिका अवश्य पढिए। पढ़कर इस पत्रिका को सुरक्षित रखिए। भविष्य में जब भी समय मिले, इन पुरानी पत्रिकाओं को पुनः पलटिए। 17. यह आवश्यक है कि हमारी शिक्षित महिलाएं आधुनिक विज्ञान और तकनीक अपने ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले प्रत्येक परिवार तक पहुंचायें। प्रत्येक मंदिर और धर्मशाला में ज्ञानकेन्द्र स्थापित करें। ग्रामों में और छोटे नगरों में रहने वाले जैन परिवारों का जीवन स्तर ऊँचा उठाएं। उन्हें इन तकनीकों से जोड़ें। जिससे वे भी हमारी प्रगतिशील समाज की मुख्य धारा में आ सके। हमारी महिलायें जैन संस्कृति और जैन कला के वैज्ञानिक एवं तकनीकी पक्षों का प्रचार-प्रसार करें। जैन मान्यताओं, परंपराओं, जैन जीवन पद्धतियों एवं पारंपरिक ज्ञान का दस्तावेजीकरण करें। 18. भारतीय संस्कृति माता को अनेकानेक उपाध्यायों और आचार्यों से श्रेष्ठ मानती है। इस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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